2002 दंगों के बाद हिंदुत्व का पोस्टर ब्वॉय बन गए उस समय के गुजरात के सीएम और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तिलिस्म लगता है गुजरात में टूट रहा है. गुजरात दंगों के बीस साल बाद शायद गृह मंत्री अमित शाह को ये भरोसा नहीं रह गया है कि गुजरात की जवान हो रही नई पीढ़ी जो इस बार पहली बार चुनाव में वोट डालेगी उसे गुजरात दंगों से पैदा हुए उन्माद से कोई मतलब है. बीजेपी को शायद लगता है कि उसकी पकड़ गुजरात में कमजोर हो रही है. इसलिए गुजरात दंगों के बीस साल बाद बीजेपी फिर उन ज़ख्मों को कुरेद रही है जो वैसे ही अल्पसंख्यक वर्ग के दिल में नासूर बनकर पल रहे हैं.
गुजरात चुनाव 2022- बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर
ऐसा लग रहा है कि बेरोज़गारी, महंगाई के मुद्दे पर घिरती मोदी सरकार दंगों की याद दिला गुजरात के तथाकथित गौरव को फिर से जगाना चाहती है. गुजरात विधानसभा चुनाव में विकास के मुद्दे से दूर बीजेपी विनाश की तस्वीरें लोगों को याद दिला रही है. उस नफरत और उन्माद को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है जिसके चलते वर्तमान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तकरीबन एक दशक तक अमेरिका का वीज़ा नहीं मिल पाया था. बीजेपी उन दंगों के दर्द को फिर से महसूस कराना चाहती है जिसके चलते दुनिया भर में देश का नाम खराब हुआ था. ऐसे दंगे जिनको रोकने के लिए खुद बीजेपी का सशक्त चेहरा और तबके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उस वक्त गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी को राज धर्म याद दिलाना पड़ा था.
2002 दंगे की याद दिलाकर वोट चाहती है बीजेपी
आखिर 20 साल बाद बीजेपी क्यों 2002 के सांप्रदायिक दंगों को चुनावी मुद्दे की तरह इस्तेमाल करना चाह रही है. पहले 15 अगस्त 2022 को जब प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से महिला सम्मान के दावे कर रहे थे. तब गुजरात सरकार केंद्र की रजामंदी के साथ गुजरात दंगों के सबसे वीभत्स कांड बिलकिस बानो के आरोपियों को आज़ाद कर देती है. 3 साल की बच्ची से लेकर 70 साल तक की महिलाओं के 11 हत्यारों को माफी दे दी जाती है. बलात्कार और पेट में पल रहे बच्चे तक को मार देने वाले हत्यारों को छोड़ दिया जाता है. हल्ला होता है तो कहा जाता है संस्कारी ब्राह्मण थे इसलिए आज़ाद कर दिया. केंद्र सरकार मामले में चुप्पी साध लेती है. मामला कोर्ट में पहुंचता है तो केंद्र की रज़ामंदी की बात सामने आती है.
फिर चुनाव की गहमागहमी शुरू होती है. बीजेपी बिलकिस के आरोपियों को संस्कारी ब्राहमण बताने वाले चंद्रसिह राउलजी को गोधरा से टिकट दे देती है. इतने पर ही जब देश हैरान हो रहा होता है तो शुक्रवार 25 नवंबर को देश के गृहमंत्री और गुजरात दंगों के दौरान तड़ीपार रहने वाले अमित शाह भरूच में चौंकाने वाला बयान दे देते हैं. गृह मंत्री 2002 गुजरात दंगों को लेकर कहते हैं कि पहले गुजरात में असामाजिक तत्व हिंसा करते थे और कांग्रेस उनका समर्थन करती थी लेकिन साल 2002 में उनको ‘सबक सिखाने’ के बाद, अपराधियों ने ऐसी गतिविधियां बंद कर दीं और भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में ‘स्थायी शांति’ कायम कर दी.
सबक सिखाने की बात कह रहे हैं गृह मंत्री
शाह कहते हैं कि गुजरात में साल 2002 में दंगे इसलिए हुए क्योंकि अपराधियों को हिंसा में शामिल होने की आदत हो गई थी. उन्हें कांग्रेस का समर्थन था. यानी गृहमंत्री साफ-साफ गुजरात दंगों के पीडितों को अपराधी भी कहते हैं और उन्हें सबक सिखाने को लेकर अपनी पीठ भी थपथपाते हैं. वो धर्म विशेष का नाम नहीं लेते क्योंकि वो जानते हैं कि कोर्ट में उन्होंने और तब की उनकी सरकार ने हलफनामा देकर कहा था कि दंगों में उनका हाथ नहीं है.
अमित शाह के बयान पर AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी तीखी प्रतिक्रिया
अमित शाह के बयान पर AIMIM के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि अमन स्थापित करने के लिए मज़लूमों के साथ इंसाफ होना ज़रुरी है. वो अमित शाह पर अहंकारी होने का आरोप लगाते हैं. याद दिलाते हैं कि सत्ता किसी के पास हमेशा नहीं रहती. सत्ता छिन जाती है. वो कहते हैं कि सत्ता के नशे में, गृह मंत्री कह रहे हैं कि उन्होंने सबक सिखाया.
अमित शाह का बयान ओवैसी की राजनीति को जमता है. दोनों को ही फायदा होता है जब हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के खिलाफ लामबंद होते हैं. ध्यान से देखें तो दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं. एक हिंदुओं को उकसाता है तो दूसरा मुसलमानों को.
क्या गुजरात मॉडल भी जुमला ही था
27 साल के राज में विकास की गंगा बहाने का दावा करने के बाद भी बीजेपी को आज भी कांग्रेस के तुष्टीकरण और दंगों के दर्द के बहाने वोट मांगने पड़ रहे हैं. तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि फिर विकास क्या हुआ. क्या मोरबी हादसे का दर्द गृह मंत्री 2002 के दंगों के ज़ख्मों को कुरेद कर कम करना चाहते हैं. क्या गुजरात जो अपनी बिजनेस मेंटेलिटी के लिए जाना जाता है, वो दंगों से खुद को जोड़ कर क्या सच में गौरवान्वित महसूस करता है. क्या नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और जाने कितने भ्रष्टाचारी व्यापारियों के देश को चूना लगा के भागने से गुजरात की अस्मिता को ठेस नहीं पहुंचती.
सवाल ये है कि क्या बीजेपी गांधी और सरदार पटेल के राज्य गुजरात को दंगाईयों और भ्रष्टाचारियों की पहचान दिला कर खुश करना चाहती है. देखना दिलचस्प होगा कि बेरोज़गारी, आदिवासी, महंगाई से परेशान गुजराती इस बार किन मुद्दों पर वोट करता है.