Friday, January 17, 2025

Bihar Politics: क्या महाराष्ट्र के बाद बीजेपी की नजर है बिहार के सीएम की कुर्सी पर? बीजेपी के खेल को क्या फेल कर पाएंगे नीतीश कुमार?

Bihar Politics: 2025 बिहार विधानसभा चुनाव का नीतीश कुमार की राजनीतिक पारी का अंत साबित होंगे. क्या 2025 विधानसभा चुनावों के बाद नीतीश कुमार का हाल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे या उड़िसा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जैसा होगा? क्या 2025 चुनाव से पहले ही बिहार में खेल हो जाएगा? क्या एक बार फिर सत्ता का ऊंट आरजेडी की करवट पलट जाएगा?

बिहार में एनडीए नहीं बीजेपी सरकार बनाने का है सपना

बिहार के सियासी गलियारों में आजकल जितने मुंह उतनी बात सुनाई दे रही है. एक तरफ जहां जेडीयू नेता नाराज़-नाराज़ लेकिन खामोश दिखाई दे रहे हैं वहीं बीजेपी नेताओं के बयान महत्वाकांक्षी होते जा रहे है. वो साफ साफ इस बार नीतीश कुमार से सीएम कुर्सी छीन लेने का इशारा कर रहे है. वहीं एनडीए में दिख रही दरारों में आरजेडी सेंध मारने की कोशिश कर रही है वो सीधे सीधे नीतीश कुमार को पाला बदल कुर्सी बचाने का ऑफर दे रही है.

Bihar Politics: अमित शाह के बयान से शुरु हुआ नीतीश के खिलाफ खेल

वैसे बिहार की राजनीति में आए इस भूचाल की शुरुवात दिल्ली से हुई जब एक निजी चैनल के
कॉन्क्लेव में गृह मंत्री अमित शाह से पूछा गया कि बिहार में बीजेपी की रणनीति क्या होगी और नेता कौन होगा? क्या बीजेपी बिहार में नीतीश के साथ वो ही करेगी जो महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ किया. इसके जवाब में अमित शाह ने अपने गोलमोल अंदाज में कहा कि इस पर फैसला बीजेपी का पार्लियामेंट बोर्ड करेगा. बीजेपी के चाणक्य के इस बयान ने जेडीयू के कान खड़े कर दिए. क्योंकि अबतक एनडीए और बीजेपी के नेता बार-बार यह कहते आए थे कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार ही रहेंगे.
हलांकि इसके बाद दिल्ली में एनडीए की एक बैठक हुई और उसमें कहा गया की बिहार में 2025 का विधानसभा चुनाव सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. लेकिन इन दो घटनाओं के बीच बिहार में भी ऐसी कुछ घटनाएं हुई जिसने बीजेपी की नियत पर सवाल खड़े कर दिए.

नीतीश और नवीन पटनायक के लिए भारत रतन की मांग का क्या है मकसद

सबसे पहले तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक को भारत रत्न दिया जाना चाहिए. गिरिराज सिंह ने संवाददाताओं से कहा, “नीतीश कुमार ने राज्य के विकास के लिए काम किया है. नवीन पटनायक ने भी वर्षों तक ओडिशा की सेवा की है. ऐसे लोगों को भारत रत्न जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना चाहिए.” केंद्रीय मंत्री के इस बयान ने राजनीतिक हलको में ये चर्चा आम कर दी कि बीजेपी एनडीए में भी एक मार्गदर्शक मंडल बनाने की फिराक में है. यानी नीतीश होंगे रिटायर और ललन सिंह के हाथ होगी जेडीयू की कमान.

उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने बोल दी दिल की बात

इसके बाद आई 25 दिसंबर देश भर में अटल बिहारी वाजपेयी का 100वां जन्मदिन मनाया जा रहा था. पटना के बापू सभागार में भी अटल जी की याद में कार्यक्रम हुआ. इस कार्यक्रम में बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि बिहार में बीजेपी की अपनी सरकार हो, यह अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था और इसे हम पूरा कर सकते हैं. सिन्हा के इस एक बयान ने पहले से ही सुलग रहे राजनीतिक माहौल को और भड़का दिया. हलांकि बाद में विजय सिन्हा ने इस बयान पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि बिहार में नेतृत्व नीतीश कुमार के पास ही रहेगा. लेकिन उनके पहले बयान ने एनडीए गठबंधन और जेडीयू-बीजेपी के रिश्तों पर सवाल खड़े कर दिए.

आरजेडी ने भी गर्म लोहे पर करा वार, चाचा की ओर बढ़ाया हाथ

और तेजस्वी यादव ने गर्म लोहे पर वार करते हुए बयान दे डाला की बिहार का सिएमओ दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह के कब्जे में हैं.
इतना ही नहीं राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के करीबी सहयोगी और विधायक भाई वीरेंद्र गुरुवार को ये कह माहौल और गर्मा दिया कि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ एक बार फिर से गठबंधन के लिए तैयार है, बशर्ते जदयू अध्यक्ष भाजपा के साथ संबंध तोड़ने की इच्छा दिखाएं, जो “सांप्रदायिक ताकतों” का प्रतिनिधित्व करती है. पत्रकारों ने भाई वीरेंद्र से पूछा कि क्या जदयू और भाजपा के बीच कथित तनाव के मद्देनजर उन्हें “खेला” की संभावना दिखती है, तो उन्होंने कहा, “बिहार कई राजनीतिक खेलों का गवाह रहा है और भविष्य में ऐसे और भी खेल खेले जा सकते हैं.”

आरिफ मोहम्मद खान के बिहार राज्यपाल बनकर आने का क्या है मतलब

वैसे ये तो वो सिर्फ है जिनसे राजनीति की सिगड़ी जलाई जा रही है. जानकार तो इस आग पर चढ़ी हांड़ी बिहार के नए राज्यपाल साहब की नियुक्ति को बता रहे है.
कहा जा रहा है कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का चयन 2025 विधानसभा चुनाव के बाद होने वाले बड़े खेला को ध्यान में रख कर किया गया है. खान साहब पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं और “स्पष्ट रूप से बीजेपी समर्थक” भी है. उनकी तुलना उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ से भी की जाती हैं जिन्होंने बंगाल के राज्यपाल रहते हुए सीएम ममता बनर्जी की नाक में दम कर दिया था. खबर ये भी है कि जेडी(यू) नेताओं का एक वर्ग आरिफ मोहम्मद खान के राज्यपाल बनकर आने से खुश नहीं है.

अपने ही सेनापति से हार जाएंगे नीतीश कुमार

ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह के बयान से शुरु हुआ सिलसिला जो राजनीतिक विश्लेषकों को राज्यपाल की नियुक्ति तक नीतीश कुमार के लिए बिछाए जाल जैसा नज़र आने लगा है. क्या नीतीश कुमार को भी बेचैन करने लगा है? क्या किस्मत के धनी नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदल कुर्सी बचाने के दाव पर बाजी लगाएंगे? या इस बार अपने ही सेनापति (ललन सिंह) जो फिलहाल बीजेपी के करीबी बने हुए हैं उनके हाथ मात खा जाएंगे?

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