बिहार और बिहारी बहुत तेज़ी से खुद को माहौल के अनुसार बदल लेते हैं. शायद यही वजह है कि बिहार की राजनीति हर दम बदलती नज़र आती है. एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि बिहार बदल रहा है. बिहार के लोग बदल रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो बिहार की राजनीति बदल रही है. कभी राजनेताओं के हेलिकॉप्टर देखने हजारों की भीड़ जमा हो जाने वाले बिहार ने अब राजनेताओं को पैदल कर दिया है. कभी सरकारी गाड़ी और लाल बत्ती की धमक से चकाचौंध हो जाने वाली बिहार की जनता अब ऑर्गेनिक यानी ज़मीन से जुड़े शुद्ध नेताओं को पसंद करने लगी है.
आप सोच रहे होंगे कि हमारे इस दावे के पीछे ऐसे क्या तथ्य हैं. तो जनाब हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या . पिछले करीब तीन महीने से आप देश के जाने माने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को बिहार की सड़कों की खाक छानते तो देख और सुन ही रहे होंगे. जी हां हम जन सुराज यात्रा की ही बात कर रहे हैं.
प्रशांत किशोर जिनको डेटा का मास्टर माना जाता है. वो बिहार की जनता के दिल का हाल जानने उनके बीच 3,000 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा करने निकले हैं. प्रशांत किशोर, जो अपनी यात्रा के जरिए अपने लिए सियासी ज़मीन तलाशने तो निकले ही हैं लेकिन साथ ही वो डेटा जमा करने भी निकले हैं. उन्होंने खुद कहा था कि उनकी यात्रा के तीन मकसद हैं. पहला मकसद, जमीनी स्तर पर सही लोगों की पहचान करना. दूसरा मकसद, उन सही लोगों को एक लोकतांत्रिक मंच जन सुराज पर लाना और तीसरा मकसद, यात्रा के जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योग सहित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के विचारों को शामिल करके राज्य के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट बनाना.
कुल मिलाकर कहें तो प्रशांत किशोर अपनी कंपनी आई पैक के लिए डेटा जमा करने निकले हैं. डेटा जो चुनाव में उनके या उनके क्लाइंट के काम आएगा. जो ये बताएगा कि कैसा और कौन सा वादा औऱ नारा उनके या उनके क्लाइंट के लिए बिहार में बहार लाने की ताकत रखता है. प्रशांत किशोर ने बहुत कोशिश की कि उनकी यात्रा इवेंट बन जाए लेकिन बदलते बिहार ने पीके को हाथों हाथ लेने से इनकार कर दिया. लेकिन उनकी यात्रा ने ये साबित कर दिया की बिहार बदल रहा है और शायद यही वजह है कि कभी प्रशांत किशोर के क्लाइंट रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यात्रा की ताकत को पहचान गए हैं.
वैसे नीतीश कुमार 2005 में भी यात्रा की ताकत का इस्तेमाल कर चुके हैं लेकिन पिछले दो चुनावों से वो जनसंपर्क से ज्यादा संचार माध्यमों पर भरोसा करने लगे थे. उनको प्रशांत किशोर के दिए गए नारे पर यकीन हो गया था कि बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है लेकिन इस बार जब बीजेपी ने ज़ोर का झटका देने का प्लान बनाया तो सीएम नीतीश सीधे लालू यादव की शरण में पहुंच गए और अब फिर एक बार ज़मीन पर राजनीति करने के लिए यात्रा निकालने जा रहे हैं.
खबर है कि शराबबंदी के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मुख्यमंत्री एक बार फिर यात्रा शुरू करेंगे. सिर्फ सीएम ही नहीं कांग्रेस भी अपने नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से प्रेरित होकर बिहार की सड़कों की खाक छानने निकलने वाली है. बताया जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई दोनों 5 जनवरी, 2023 से पूरे बिहार में अलग-अलग यात्रा शुरू करने वाले हैं.
नीतीश कुमार 5 जनवरी को पश्चिम चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया से अपनी यात्रा शुरू करेंगे. छपरा जहरीली शराब हादसे के बाद नाराज मुख्यमंत्री ने कहा था कि जो शराब पीयेगा वो मरेगा. इस बयान के बाद नीतीश कुमार की बहुत आलोचना हुई. इस संवेदनहीन जवाब के लिए जनता ने भी बहुत खरी खोटी सुनाई. अब वो ही नीतीश कुमार राज्य में शराबबंदी के लाभों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए यात्रा शुरू करेंगे.
दरअसल नवंबर 2005 में नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद से अलग-अलग मुद्दों को लेकर कई यात्राएं की हैं. उन्होंने सबसे पहले “न्याय यात्रा” शुरू की, उसके बाद “विकास यात्रा”, “धन्यवाद यात्रा”, “प्रवास यात्रा”, “विश्वास यात्रा”, ” सेवा यात्रा”, “अधिकार यात्रा”, “संकल्प यात्रा”, “संपर्क यात्रा”, “निश्चय यात्रा”, “जल-जीवन-हरियाली यात्रा” और “समाज सुधार यात्रा”. क्या हुआ लिस्ट सुनकर चकरा गए. खुद नीतीश जी को भी याद नहीं होगा.
यात्राओं की लंबी लिस्ट देख कर आप समझ ही गए होंगे कि नीतीश कुमार को यात्राओं का काफी अनुभव रहा है लेकिन कांग्रेस ने हाल फिलहाल में ही यात्राओं के महत्व को समझा है. इस लिए अपने नेता राहुल गांधी के नक्शे कदम पर चलते हुए बिहार कांग्रेस भी मार्च करेगी. कांग्रेस पार्टी की बिहार इकाई ने घोषणा की है कि वह 5 जनवरी, 2023 को बांका से बोधगया तक इसी तरह की पदयात्रा करेगी. ये मार्च भागलपुर, खगड़िया, बेगूसराय, दरभंगा और पटना सहित 17 जिलों से गुजरेगा.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बांका जिले के मंदार हिल्स से पदयात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे. इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी (BPCC) के नवनियुक्त अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से बड़ी संख्या में पदयात्रा में शामिल होने की अपील की है. बीपीसीसी सूत्रों ने कहा है कि राहुल गांधी बोधगया में पदयात्रा के समापन पर एक जनसभा को संबोधित कर सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि अगर सब कुछ अच्छा रहा तो पदयात्रा में जान फूंकने के लिए सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी पदयात्रा के पटना पहुंचने पर एक जनसभा को संबोधित कर सकती हैं.
कुल मिलाकर अगर आप देखें तो प्रशांत किशोर पहले से ही पैदल हो गए हैं. सीएम नीतीश भी पैदल होने वाले हैं और कांग्रेस का पूरा कुनबा भी पैदल होने वाला है. मतलब ये कि ऑर्गेनिक राजनीति का दौर लौट रहा है. बिहार की राजनीति जो कभी मसखरे अंदाज वाले ऑर्गेनिक लालू यादव के लिए जानी जाती थी वो फिर से अपनी जड़ों की तरफ लौट रही है. यानी हेमा मालिनी की गालों जैसी सड़कों पर अब फिर गाड़ियां नहीं पैदल यात्रियों के जत्थे का बोल बाला होगा. मोबाइल के इस दौर में नेता घर-घर जाकर वोट मांगेंगे और अपने मुद्दे समझाएंगे. यानी संवाद अब फिर दो तरफा होगा. केवल मन की बात से काम नहीं चलेगा. जनता को सुनने के लिए फिर उसके बीच जाना होगा.