मोदी सरनेम टिप्पणी मामले में सूरत की सत्र अदालत का फैसला आ गया. कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका पर सिर्फ एक लाइन का फैसला सुनाते हुए कहा कि -याचिका खारिज. अब बीजेपी इस फैसले पर खुशी जताते हुए कह रही है कि कांग्रेस और राहुल गांधी खुद को कानून से ऊपर समझते थे. अब उन्हें पता चला की कानून सबके लिए बराबर है.
कानून सबके लिए बराबर-बीजेपी
बीजेपी नेता संबित पात्रा ने राहुल पर आए फैसले पर कहा कि” आज जो सूरत की कोर्ट का फैसला आया है, उससे पूरे देश में खुशी का माहौल है. जिस पिछड़े वर्ग के लिए राहुल गांधी ने आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था, उन्हें गाली देने का काम किया था और ये सब करके गांधी परिवार को लगता था कि वो बचकर निकल जाएंगे, वह नहीं हो पाया है. कोर्ट का फैसला गांधी परिवार के मुंह पर तमाचा है. आज सूरत की कोर्ट से सिद्ध होता है कि कानून सबके लिए बराबर है”
वहीं केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “हमने पहले भी ऐसा कहा कि उन्होंने(राहुल गांधी) खुद को कानून से ऊपर मान लिया है. उन्हें विशेष दर्ज़ा क्यों नहीं दिया जा रहा है, ऐसा उनके कुछ लोग बोल रहे हैं. जब कोई व्यक्ति खुद को कानून से ऊपर समझता है तो उसे लगता है कि मैंने कुछ गलती थोड़ी की है.”
क्या सच में कानून सबके लिए बराबर है?
यानी राहुल के मामले पर आए फैसले के बाद बीजेपी ने एलान कर दिया है कि कानून सबके लिए बराबर है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये सच है. क्या कानून सबके लिए बराबर है. शायद इसका जवाब इतना सीधा भी नहीं है. अगर मोदी-अडानी मामले पर जेपीसी की मांग और केंद्रीय एजेंसियों की जांच को छोड़ भी दें. तो भी ऐसे कई उदाहरण हैं जब लगा कि कानून एक तरफ झुका हुआ है.
अनुराग ठाकुर पर हेट स्पीच मामले में 3 साल बाद भी नहीं हुई एफआईआर
इसी महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर ध्यान दीजिए. 17 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी को ले लीजिए जिसमें जस्टिस जोसेफ ने हेट स्पीच मामले में सुनवाई के दौरान कहा, “कोर्ट ने क्रेंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की ‘गोली मारो’ वाली टिप्पणी पर भी ध्यान देते हुए कहा, “मेरा मानना है कि गद्दार का मतलब देशद्रोही होता है? यहां पर गोली मारो दवाई से संबंधित निश्चित रूप से नहीं था.” इसके बाद कोर्ट ने हैरानी जताई की मामले को तीन साल हो गए और अब तक इस मामले में एफआईआर क्यों नहीं हुई. इतना ही नहीं कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के फैसले को भी गलत बताते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया, मजिस्ट्रेट का यह कहना कि मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए मंजूरी की आवश्यकता है, गलत प्रतीत होता है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह में जवाब देने को कहा.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता बृंदा करात ने भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा के खिलाफ 2020 में कथित रूप से नफरत फैलाने वाले भाषण देने के लिए एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी जिसको निचली अदालत ने ठुकरा दिया था.अब इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
एफआईआर नहीं होने पर कोर्ट भी हैरान
जस्टिस जोसेफ ने इस मामले में ये भी जानना चाहा कि, ” यदि कोई व्यक्ति “गोली मारो” बयान देता है तो क्या किसी के लिए धर्म के बावजूद देशद्रोहियों को मारने के लिए कहना अपराध होगा। क्या यह अपने आप में एक संज्ञेय अपराध होगा? भारतीय दंड संहिता केवल निजी बचाव में हिंसा की अनुमति देती है। यदि आप कहते हैं कि “गोली मारो”, 153A के बावजूद, क्या अन्य प्रावधान हैं? ” याचिकाकर्ता के वकील अग्रवाल ने जवाब दिया कि आईपीसी की धारा 107 के तहत उकसाने का अपराध लगेगा। इसपर जज ने कहा, ” भले ही यह धारा 153 ए या 153 बी नहीं है, अगर बयान एक उकसावा है और यहां तक कि अगर उकसावे से अंतिम कार्य नहीं होता है – हालांकि अगले दिन एक जेंटलमेन बंदूक उठाते हैं और मुकुट पर गोली चलाते हैं – यह एक होगा अपराध। इसकी जांच की आवश्यकता है, क्या बयान सांप्रदायिक है, ओवरटोन क्या हैं आदि. 3 साल से कोई जांच नहीं हुई है. ”
यानी की केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के लिए कानून बराबर नहीं था. उनके भड़काऊ बयान पर निचली अदालत और दिल्ली पुलिस की क्लीन चिट से सुप्रीम कोर्ट भी हैरान था.
चलिए अब बात करते हैं दूसरे मामले की. 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के एक फैसले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती’, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती.”
बिलकिस बानो के आरोपियों को छोड़ना क्या न्याय है?
ये मामला था साल 2002 गुजरात दंगे के दौरान हुआ बिलकिस बानो बलात्कार कांड से जुड़ा. पिछले साल यानी 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के 11 अरोपियों को उनके कथित अच्छे व्यवहार के चलते सजा पूरी होने से पहले छोड़ दिया था. छोड़े गए आरोपियों का स्वागत सत्कार भी हुआ और उनके रिश्तेदारों को गुजरात चुनाव में बीजेपी ने टिकट भी दिया.
इन्हीं दोषियों की माफी के खिलाफ बिलकिस और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये टिप्पणी की थी. इस मामले में जस्टिस केएम जोसेफ ने ये भी कहा कि “आज बिलकिस बानो है. कल आप और मुझमें से कोई भी हो सकता है. ऐसे में तय मानक होने चाहिए . आप हमें कारण नहीं देते हैं तो हम अपना निष्कर्ष निकाल लेंगे.” आपको बता दें गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को रिहाई की फाइल दिखाने का विरोध किया था. अब इस मामले में अंतिम सुनवाई 2 मई को होगी.
अगर न्याय गरीब के हाथ में होता तो न्याय कुछ और होता
यानी मामला बिलकिस बानो का हो या अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा का. यहां देश की सर्वोच्च अदालत को ही इंसाफ एक तरफ झुका हुआ नज़र आया.
यहां हाल में आई अनुराग कश्यप की लॉक़ डाउन पर बनी फिल्म भीड़ के डायलॉग का जिक्र करना शायद ठीक रहेगा जिसमें नायक कहता है कि अगर न्याय गरीब के हाथ में होता तो न्याय कुछ और होता. यानी न्याय सत्ता और ताकत के साथ होता है. हलांकि लोकतंत्र में न्यायपालिका का सबसे महत्वपूर्ण काम इसी सत्ता और ताकतवर के पक्ष वाले न्याय को काबू करना है ताकि सत्ता जनता के लिए जनता के द्वारा और जनता से ही बन और चल सके.
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