गुजरात में मतदान की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है बीजेपी और राजनीतिक विश्लेषकों की बेचैनी बढ़ने लगी है. एक तरफ गुजरात में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोक दी है. प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक और केंद्रीय मंत्रियों से लेकर दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री तक, पार्टी अध्यक्ष और बड़े नेता शायद ही कोई बचा हो जो गुजरात में प्रचार नहीं कर रहा हो. प्रचार भी ऐसे की एक-एक नेता एक दिन में 3-3 4-4 रैलियां कर रहा है. अखबारों और टीवी चैनलों पर बीजेपी की कारपेट प्रचार (बॉम्बिंग) की तस्वीरें छाई हुई है. मोदी का नारा “आ गुजरात मैं बनव्यू चे” हिट हो रहा है. गुजरात के विकास को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कही जा रही है.
आम आदमी पार्टी को प्रतिद्वांदी नहीं समझती बीजेपी
दूसरी तरफ दिल्ली और पंजाब में सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी प्रधानमंत्री को उनके ही घर में हराने के दावे कर रही है. आम आदमी पार्टी का प्रचार ऐसा है कि देखने वाले को लगे की इस बार गुजरात में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा. हलांकि जानकारों की माने तो आप की ये हवा सिर्फ प्रचार तक है. ज़मीन पर आम आदमी पार्टी की हकीकत बहुत अलग है. लेकिन बीजेपी किसी भी पार्टी को हलके में नहीं लेती इस लिए छठ से लेकर यमुना की सफाई और अब सतेंद्र जैन मामले को उठा बीजेपी आप को दिल्ली में घेरे रखने की कोशिश कर रही है ताकि गुजरात के रण में उसकी पकड़ ढीली पड़ जाए. बीजेपी गुजरात में आप की जगह कांग्रेस को अपना प्रतिद्वांदी देखना चाहती है. लेकिन कांग्रेस है कि प्रचार से गायब है. कांग्रेस की ये गुमशुदगी सिर्फ बीजेपी को नहीं राजनीतिक विश्लेषकों और बड़े पत्रकारों को भी परेशान कर रही है. अब तक राहुल गांधी सिर्फ दो दिन गुजरात में गए और इन दो दिनों में भी उन्होंने सिर्फ दो रैलियां की. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जो हिमाचल में कांग्रेस के चुनावी प्रचार की कमान संभाले हुए थी वो अभी तक गुजरात में नज़र ही नहीं आई. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी जिनका नाम कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल था वो भी अभी तक गुजरात नहीं पहुंची. मोरबी पुल हादसे को भी राहुल गांधी ने ये कहकर की ये राजनीतिक मुद्दा नहीं है हाथ से जाने दिया. हलांकि अब वो ये सवाल जरूर पूछ रहे है कि मोरबी के दोषी आज़ाद कैसे घूम रहे है. ऐसे में सभी हैरान है कि आखिर कांग्रेस की गुजरात चुनाव प्रचार की रणनीति क्या है.
कांग्रेस की खामोशी से बीजेपी हैरान
कांग्रेस की इस खामोशी से बीजेपी कितनी हैरान है इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा ले कि बीजेपी नेता राहुल गांधी को गुजरात आने की चुनौती दे रहे हैं. कोई कह रहा है राहुल गांधी जानते है जहां जाएंगे वहां हार का मुंह देखना पड़ेगा इसलिए गुजरात नहीं आ रहे. कोई नेता कह रहा है राहुल जानते है मोदी के गुजरात में उनको हराना नामुमकिन है इसलिए कांग्रेस गुजरात में मेहनत करना ही नहीं चाहती. छोटे मोटे नेता तो छोड़िए. 11 अक्तूबर को खुद पीएम मोदी कांग्रेस की गुपचुप रणनीति से अपने कार्यकर्ताओं को सावधान कर रहे थे. गुजरात के जामकंदोरना में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा पिछले चुनावों में गुजरात की जनता ने कांग्रेस की रणनीति को फेल कर दिया. अब कांग्रेस सभाएं नहीं कर रही है. प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर रही है. मोदी को गाली नहीं दे रही है. कांग्रेस चुपचाप गांवों में जाकर लोगों से वोट मांग रही हैं.
हालात ये है कि असम के मुख्यमंत्री गुजरात में चुनाव करते हुए राहुल गांधी को इतना मिस कर रहे है कि उन्होंने राहुल के दाढ़ी वाले लुक की चर्चा करते हुए कहा कि अगर राहुल को लुक बदलना ही था तो गांधी या पंडित नेहरू जैसा लुक बनाते ये सद्दाम हुसैन जैसा लुक क्यूं बनाया. कहने का मतलब ये की कांग्रेस के प्रचार नहीं करने से बीजेपी परेशान है.
काम कर रही है कांग्रेस की रणनीति
वैसे विश्लेषकों की माने तो गुजरात में कांग्रेस की रणनीति काम कर रही है. कांग्रेस की कमी सिर्फ बीजेपी को नहीं जनता को भी खल रही है. इस बार गुजरात कांग्रेस के नेता पीएम मोदी के आत्मनिर्भर बनने की बात को मानते हुए गांव-गांव प्रचार कर रहे है. कांग्रेस का प्रचार लो प्रोफाइल है लेकिन भारत जोड़ो यात्रा की खबरें उसे बाहर से समर्थन दे रही है.
बीजेपी कुछ भी कहें राहुल 2000 किलोमीटर चलकर अपनी पप्पू वाली छवि को तोड़ने में कामयाब रहे है. वह पप्पू से राजनेता तो बन गए है और अब कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर उत्तर भारत में राहुल की यात्रा को अच्छा रिस्पोंस मिलता है तो वह राहुल गांधी को जननेता के तौर पर स्थापित करने में कामयाब हो जाएगी.
बीजेपी से सीधी टक्कर नहीं लेने की है कांग्रेस की नई रणनीति
वैसे कुछ जानकारों का कहना है कि गुजरात में कांग्रेस के गुपचुप प्रचार की रणनीति के कई कारण है. पैसे के मामले में कांग्रेस और बीजेपी का अब कोई मुकाबला नहीं है. इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बीजेपी ने 80 से 85 प्रतिशत राजनीतिक फंड पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है. मीडिया भी बीजेपी की जेब में है इसलिए अगर कांग्रेस प्रचार में पूरी ताकत झोंक भी देती तो उसे मीडिया में उतनी तवज्जोह नहीं मिलती. इसके अलावा कांग्रेस के पास प्रियंका, सनिया और राहुल गांधी के अलावा ऐसे नेता कम ही बचे है जिनकी पूरी देश में अपील हो. ऐसे में कांग्रेस के पास घर-घर जाकर प्रचार करने का ही एक मात्र विकल्प बचा था. उनके अपने इस विकल्प को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से जोड़ लिया अब कार्यकर्ता जोश में है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को जो भी थोड़ी बहुत पब्लिसिटी मिल रही है वो पॉजिटिव है. कार्यकर्ता के पास अपने नेता की अच्छाई दिखाने का मौका है. राहुल गांधी कई बार बीजेपी से सीधी टक्कर लेना का रिस्क ले चुकें है और हर बार उनको बीजेपी प्रचार तंत्र के हाथों मुंह की खानी पड़ी है. ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस एक तीर से दो शिकार कर रही है. एक वो अपने नेता की छवि सुधार रही है दूसरा बिना चुनावी बिगुल बजाए वो मुद्दे उठा रही है जिनसे जनता का सरोकार है. राहुल गांधी मंदिर दर्शन से लेकर लोक कलाकारों, बच्चों और महिलाओं के साथ सहजता से मिलते जुलते, रोजगार, महंगाई, सरकारी संपत्तियों की लूट, उग्र हिंदुत्व, देश में बढ़ रही नफरत जैसे मुद्दों को बार-बार उठा रहे है. ये सवाल भले की मीडिया में उतनी जगह नहीं पा रहे है. लेकिन सोशल मीडिया के ज़रिए गुजरात चुनाव में ये सवाल पहुंच रहे है और साथ ही पहुंच रही है राहुल गांधी की निडर नेता की छवि जो बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार से न डरता है न किसी को डराने का इरादा रखता है. लंबे समय से कांग्रेस की रणनीतियों को बेकार कहने वाले राजनीतिक विश्लेषक अब 8 दिसंबर के इंतज़ार में है वो ये देखना चाहते है कि हिमाचल और गुजरात में कांग्रेस की अलग-अलग रणनीति का क्या असर होता है. खासकर गुजरात की रणनीति को लेकर सभी कि जिज्ञासा बहुत ज्यादा है.