Saturday, November 9, 2024

जाति को पंडितों की देन बता, हिट विकेट हुए मोहन भागवत, बीजेपी के सामने सवाल रामायण बचाए या सवर्ण वोट बैंक?

“सत्य ही ईश्वर है, सत्य कहता है कि मैं सर्वभूति हूं, रूप कुछ भी रहे योग्यता एक है, कोई ऊंच नीच नहीं है, शास्त्रों के आधार पर कुछ पंडित जो बताते हैं वो झूठ है. जाति की श्रेष्ठता की कल्पना में ऊंच-नीच में अटक कर हम गुमराह हो गए, भ्रम को दूर करना है.” जी नहीं हम कोई दार्शनिक नहीं हो गए हैं. आजकल राजनीति में भक्तिकाल चल रहा है. इसलिए बड़े-बड़े लोग धर्म और पुराणों की व्याख्या करने लगे हैं

जाति और पंडितों को लेकर ये बयान है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का. मोहन भागवत कह रहे हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये जातियों का विभाजन भगवान का किया हुआ नहीं है. ये विभाजन तो कुछ पंडितों ने किया और अब इस विभाजन के चलते समाज में भ्रम फैल रहा है और समाज गुमराह हो रहा है. जी हां मतलब ये कि अब तक आप जो जाति को लेकर गौरवान्वित महसूस करते थे. जाति को लेकर अपने-अपने जो समाज बना लिये थे. उन समाजों की रक्षा के नाम पर रोज़ नए विवाद हो रहे थे. अब आरएसएस प्रमुख ने उस मुसीबत की जड़ को तलाश लिया है.

इसबार धर्म और जाति को लेकर विवाद कहा से शुरु हुआ

खैर ये तो अच्छी बात है कि आरएसएस को हिंदू समाज में फैली जात-पात की बुराई नज़र आई और उसने इस गलती को माना और सुधारने की बात कही. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये दिव्य ज्ञान अचानक आरएसएस प्रमुख को प्राप्त कैसे हुआ. तो चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं. नए साल की शुरुआत पर गृहमंत्री अमित शाह ने एक बयान दिया. अमित शाह ने कहा कि, “जो कहते थे मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे वह जान लें कि एक जनवरी 2024 को राम मंदिर तैयार हो जाएगा.” इस बयान में निशाना तो राहुल गांधी थे लेकिन इस तीर को बीच में लपक लिया गई आरजेडी. आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने अमित शाह के बयान पर तंज कसते हुए कहा कि, “हम हे राम में विश्वास करते हैं, जय श्रीराम में नहीं. हमारे हृदय में राम हैं.” जगदानंद सिंह ने कहा कि “श्रीराम ना तो अयोध्या में हैं और ना ही लंका में बल्कि श्रीराम सबरी की कुटिया में आज भी मौजूद हैं. उन्होंने कहा अब इस देश में इंसानियत नहीं बची है. अब उन्मादियों के राम बचे हुए हैं.”

बिहार में रामायण विवाद में बीजेपी रही आरजेडी पर भारी

जगदा बाबू के बयान को बीजेपी किसी तरह शांति से हजम कर गई. लेकिन इसके बाद मैदान में आए शिक्षा मंत्री चंद्र शेखर जिन्होंने नालंदा ओपन विश्वविद्यालय (एनओयू) के 15वें दीक्षांत समारोह में मनुस्मृति, रामचरितमानस और गुरु गोलवलकर के बंच ऑफ थॉट्स को समाज को बांटने वाला बता दिया. शिक्षा मंत्री ने कहा कि, “रामचरितमानस ग्रंथ समाज में नफरत फैलाने वाला ग्रंथ है. यह समाज में दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को पढ़ाई से रोकता है. उन्हें उनका हक दिलाने से रोकता है. शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने कहा कि मनु स्मृति को क्यों जलाया गया, क्योंकि उसमें एक बड़े तबके को गालियां दी गईं हैं.”

इस बार बीजेपी खामोश नहीं रही. खामोश रहती भी कैसे आखिर हमला उसके हिंदू एकता के एजेंडे पर था. वो एजेंडा जिसे वो अयोध्या के प्रोजेक्ट की भव्यता दिखा कर पूरा करना चाहती थी. शिक्षा मंत्री को अशिक्षित कहा गया. उनकी जबान काटने पर इनाम का एलान भी हुआ लेकिन इस मुद्दे ने दलित चिंतकों को एक जुट कर दिया. अगर शिक्षा मंत्री पर वार हुए तो उनका बचाव भी हुआ.

यूपी में अखिलेश और मायावती ने बीजेपी को फंसा दिया

अभी ये मुद्दा शांत होता दिख ही रहा था कि यूपी के स्वामी प्रसाद मौर्या की इसमें इंट्री हो गई. बिहार में तो बात सिर्फ आलोचना तक थी यूपी में रामायण जलाने तक बात पहुंच गई. स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ एफआईआर भी हो गई लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्या अपने बयान से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए. पहले लगा कि एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्या को खामोश करा देंगे लेकिन अखिलेश खामोश रहे. चाचा शिवपाल यादव ने मामला शांत कराने की कोशिश, लेकिन विवाद बढ़ता ही चला गया. लखनऊ में समाजवादी पार्टी के दफ्तर के बाहर “गर्व से कहो हम शूद्र हैं” के पोस्टर लगे. फिर होली पर रामायण जलाने का आह्वान हो गया. इस बीच समाजवादी दफ्तर के बाहर कुछ और पोस्टर भी लग गए जिनमें से एक पोस्टर में लिखा था “शूद्र समाज की जो बात करेगा वही दिल्ली पर राज करेगा”.

एक के बाद एक रामायण पर हो रहे हमलों के बीच बीजेपी नेता समझ नहीं पा रहे थे कि करें तो करें क्या. इस बीच इस विवाद में मायावती की भी इंट्री मारी. मायावती के निशाने पर बीजेपी या ब्राह्मण समाज नहीं था. उन्होंने सीधा वार किया समाजवादी पार्टी पर. मायावती ने एक के बाद एक चार ट्वीट किये. मायावती ने समाजवादी पार्टी के दलित प्रेम को निशाना बनाया. उन्होंने लिखा कि “देश में कमजोर व उपेक्षित वर्गों का रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संविधान है जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है. अतः इन्हें शूद्र कहकर समाजवादी पार्टी इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे”  इसके साथ ही मायावती ने एसपी को गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाते हुए लिखा कि “सपा प्रमुख द्वारा इनकी वकालत करने से पहले उन्हें लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस के दिनांक 2 जून सन् 1995 की घटना को भी याद कर अपने गिरेबान में जरूर झाँककर देखना चाहिए, जब सीएम बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार में जानलेवा हमला कराया गया था.”

यानी अमित शाह के राम मंदिर बयान को लेकर जो तीर आरजेडी ने पटना में पकड़ा था उसे यूपी में समाजवादी पार्टी ने लपक लिया और बीजेपी की राम मंदिर, हिंदू एकता जैसे एजेंडों के खिलाफ बखूबी इस्तेमाल कर लिया. पटना में जो बीजेपी शिक्षा मंत्री चंद्र शेखर के इस्तीफे की मांग कर रही थी. उन्हें अशिक्षित बता रही थी वो यूपी में एसपी-बीएसपी में मची दलित वोट बैंक की लड़ाई को देख हैरान-परेशान हो गई. रामायण के अपमान से शुरु हुआ विवाद अब दलितों के सम्मान तक आ गया.

जाति पर बयान देकर हिट विकेट हुए मोहन भागवत

जो बीजेपी चंद्र शेखर और स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान को हिंदू विरोधी बता नीतीश कुमार और अखिलेश यादव को घेरने के फिराक में थी उसे दलित स्वाभिमान की लड़ाई ने चारों खाने चित कर दिया. जब बीजेपी से मुद्दा नहीं संभला तो अब मैदान में आए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, उन्होंने रामायण पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन जाति विभाजन को लेकर बड़ा बयान दे डाला. भागवत साहब ने जाति प्रथा कुछ पंडितों की देन है. आरएसएस के इस बयान से दलित संतुष्ट होंगे कि नहीं. रामायण को लेकर ये विवाद खत्म होगा कि नहीं ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन भागवत के इस तीर से उच्च जाति खास कर पंडित ज़रूर नाराज़ हो गए. सोशल मीडिया पर #माफी-मांगो-भागवत ट्रेंड करने लगा. लोग भागवत से माफी मांगने की मांग करने लगे.

एक यूजर अभिनव मिश्रा ने लिखा “अरे भागवत ब्राह्मणों ने तुम्हे RSS चीफ भी बनाया है, ब्राह्मणों ने तुम्हारी देश में सरकार भी बनाई है. यह हमारी सबसे बड़ी गलती है और रही बात जाति की, तो जाति और वर्ण में अंतर है, वर्णों के हिसाब से कार्य निर्धारित किये गए थे. #भागवतमाफीमांगो”.

 

एक और यूजर शेनिक शुक्ला ने लिखा “@RSSorg @VHPDigital आज मुझे शर्म आ रही है कि आज तक मैंने ब्राह्मण विरोधी संगठन का साथ दिया. आज से मैं आरएसएस छोड़ रहा हूं.”

इतना ही नहीं सुशील शर्मा नाम के एक यूज़र ने लिखा “मोहन भागवत अपने बयान पर स्पष्टीकरण दें अन्यथा पूरे प्रदेश में पुतला जलाएंगे , समाज सर्वोपरि-अपमान बर्दाश्त नहीं – विप्र समाज”

एक यूजर दुर्गेश पांडे ने तो आरएसएस को बैन ही करने की मांग कर डाली “ब्राह्मणों के खिलाफ नफरत फैला रहा है RSS प्रमुख मोहन भागवत , बोला जाति ब्राह्मणों ने बनाई , भगवान ने नहीं. समय आ गया है कि आरएसएस जैसे तथाकथित फर्जी हिन्दू संगठनों को देश में अब बैन कर देना चाहिए. क्योंकि RSS अब हिन्दू संगठन नहीं रह गया है. सेक्युलर हो गया है.”

कुल मिला के कहें तो अमित शाह का राम मंदिर निर्माण को लेकर छाती ठोंकना इस विवाद की जड़ बन गया. ऊपर से मोहन भागवत के बयान ने आग में घी का काम कर दिया है. पहले ही दलित समाज की रामायण से अपमानजनक चौपाइयां हटाने की मांग सवर्णों को नहीं भा रही थी उसपर से पंडितों को जाति प्रथा का जिम्मेदार बता आरएसएस ने बीजेपी के लिए आगे कुआं, पीछे खाई जैसी स्थिति पैदा कर दी है.

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