खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी, काफिले के बीच घुसेंगे कार-बाइक सवार गुर्गे- आजतक, गाड़ी से उतरा अतीक…. अब होगा खेला- जी न्यूज़, गाड़ी पलटना या नहीं पलटना हमारे हाथ में नहीं, जैस अपराधी वैसी कार्रवाई-मंत्री जयवीर सिंह टीवी 9, टीवी 9- झांसी के बाद क्या होगा.
रविवार से एक तमाशा टीवी चैनलों पर चल रहा है. माफिया से नेता बने अतीक अहमद को यूपी पुलिस उमेश पाल केस के सिलसिले में गुजरात से यूपी क्या लाने निकली ऐसा लगा कोई सस्पेंस थ्रिलर शुरू हो गया. पल पल की खबर पहुंचाने के नाम पर बार बार ऐसे सवाल टीवी के स्क्रीन पर फ्लैश किए जाने लगे कि लगा कानून और न्याय नाम की चीज़ बची भी है या नहीं.
जो आप सड़क पर नहीं देखना चाहते वो टीवी पर दिखाया गया
गाड़ी रुकी क्या अब होगा खेला…..गाड़ी रुकी क्या वैन बदली जा रही है. अरे नहीं ये तो अतीक अहमद को हलका होने देने के लिए रोकी गई है. फिर दिखा मैदान की तरफ मुंह करके खड़ा अतीक अहमद और फिर स्क्रीन पर वो भी दिखाया गया जिसे आप सड़क पर देख के मुंह फेर लेते हैं.
इतना ही नहीं एबीपी न्यूज़ बताने लगा कि अतीक अहमद जिस वैन में है उसके ड्राइवर ने कहा कि अगर ऐसे ही हमारा पीछा करोगे तो एक्सीडेंट करा देंगे तुम्हारा, एंकर चिल्ला चिल्ला के बोलने लगा कि हमें धमकी मिली है. वहीं टीवी 9 दावा कर रहा था कि उन्हें ड्राइवर ने कहा कि ऐसे ही पीछा करोगे तो गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाएगा.
फिर उत्तर प्रदेश की सीमा में आने से पहले ही अतीक अहमद की वैन के साथ एक हादसा हो गया. जब जेल वैन झांसी से पहले एमपी शिवपुरी रोड़ पर लश्कर थाने के पास से गुजर रही थी , उसी समय एक गाय अचानक अतीक अहमद की वैन के सामने आ गई. वैन से गाय की जोरदार टक्कर हुई. जब तक कोई कुछ समझ पाता दुर्घटना घट चुकी थी. ड्राइवर ने गाड़ी को ब्रेक लगाया और देखा तो तब तक गाय की मौत हो चुकी थी. दुर्घटना होते ही सुरक्षाकर्मियों में हड़कंप मच गया. हलांकि इस दुर्घटना में अतीक अहमद समेत पूरी टीम सही सलामत है. इस हादसे पर टीवी के स्क्रीन अपशकुन शब्द से भर गए.
गाड़ी पलटने की चर्चा बीजेपी के नेताओं ने शुरु की
वैसे ये जो हंगामा हो रहा है इसकी शुरुआत तब हुई जब उमेश पाल हत्याकांड में अतीक अहमद का नाम आया. तभी से ये चर्चा आम हो गई की अतीक की गाड़ी भी पलटेगी. गाड़ी पलटने से आपको बिकरू कांड के आरोपी विकास दुबे की याद तो आ गई होगी. कैसे पुलिस से बचने के लिए उसने एमपी में सरेंडर किया था और फिर यूपी लाने के दौरान संदिग्ध हालात में उसकी गाड़ी पलट गई थी. अब इसी घटना को नज़ीर मान कर अतीक की गाड़ी भी पलट सकती है ये कहा जाने लगा. ये कहने वालों में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी शामिल हैं. बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक ने तो साफ कहा कि उन्हें “इस बात में कोई हैरानी नहीं होगी अगर अतीक अहमद की भी गाड़ी पलट जाए.”
अतीक की बहन ने किया यूपी पुलिस की गाड़ी का पीछा
मंत्रियों और संतरियों के बयानों का डर इतना हुआ कि अतीक अहमद के काफिले के पीछे उसकी बहन भी साये की तरह चलने को मजबूर हो गई. जो गाड़ी काफिले का पीछा कर रही थी उसमें बहन के अलावा अतीक के वकील भी थे. यानी अगर एनकाउंटर होता है या गाड़ी पलटती है तो इंसाफ के दरवाज़े पर अपना केस मज़बूत करने परिवार अभी से तैयारी में लगा है. खुद अतीक अहमद ने भी साबरमती जेल से निकलते हुए अपनी हत्या का डर जाहिर किया था. इस तरह गाड़ी का पलटना हत्या ही तो होगी. जिस सरकार पर राज्य के नागरिकों की रक्षा करने की जिम्मेवारी हो वो एक आदमी को सिर्फ इसलिए मार दे कि उससे अपराधियों में डर बैठ जाएगा. इससे बुरा क्या हो सकता है. समाज में व्यवस्था डर से नहीं सुरक्षा की भावना से आती है. तो ये कैसी कानून व्यवस्था है जिसमें न कोर्ट कचहरी की बात हो रही है ना सुनवाई की. केवल गाड़ी पलटा कर जान ले लेने की बात हो रही है.
क्या फिर काले युग में लौट रहे है हम जब खेल के नाम पर होता था वैहशीपन
रोमन स्टेट में होने वाले ग्लैडिएटर्स की लड़ाई पर बनी फिल्में तो आपने देखी होगी. जहां निहत्थे आरोपी को जिंदा रहने के लिए योद्धाओं से लड़ाई लड़नी होती थी और इस लड़ाई को देखने जमा हुई भीड़ मारो काटो ऐसे चिल्लाती थी जैसे ये इंसान की जिंदगी से जुड़ा मामला ही न हो. एक वहशीपन लोगों के दिमाग पर सवार होता था. खून का लाल रंग उनके रोमांच को बढ़ाता था ठीक उसी तरह जैसे टीवी के स्क्रीन पर आज अतीक अहमद को लेकर चल रही वैन को देख बहुत से लोग रोमांचित हो रहे हैं.
न्यूज़ चैनल वाले खुशी से कूद कूद कर बता रहे हैं कि कैसे वो मौत के मंज़र को आप तक लाने के लिए तैयार हैं. वहशीपन सिर्फ टीवी की स्कीन पर नहीं सोशल मीडिया पर भी नज़र आ रहा है. कोई बुरके में नमाज़ पढ़ती महिलाओं की वीडियो लगा कर लिख रहा है कि अतीक के लिए हूरें इंतजार कर रही हैं तो कोई बता रहा है कि यही वो मोड़ है जहां विकास दूबे की गाड़ी पलटी थी. कोई सवाल पूछ रहा है कि इस बार गाड़ी कब पलटेगी. ये रोमांच, ये मज़ा क्या एक सभ्य समाज की निशानी है. क्या लोग इतने अमानवीय हो गए हैं कि अब उन्हें खून , तड़प , मौत देखकर रोमांच का एहसास होने लगा है. क्या राज्य का ऐसा पतन हो गया है कि कानून पर सरकारों को विश्वास ही नहीं रहा. क्या लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनावी जीत बनकर रह गया है जिसके लिए किसी की जान भी ली जा सकती है.
मीडिया चैनलों और राज्य के पतन दिखा पिछले दो दिन में
मीडिया चैनलों पर दो दिन से हो रही कवरेज किसी अपराध से कम नहीं है. इसे पत्रकारिता तो कतई नहीं कहा जा सकता. कैसे कोई दिन रात सिर्फ हर पल ये उम्मीद लगाए बैठ सकता है कि अब गाड़ी पलटेगी और वो जश्न में डूब जाएगा. मौत का जश्न या डर का जश्न. मौत चाहे कानपुर के ब्राह्मण परिवार की मां-बेटी की हो, विकास दूबे की हो पहलू खान की हो. भले ही उससे आपको तकलीफ न हो लेकिन अगर आप खुद को सभ्य कहते हैं तो आप उसपर जश्न तो नहीं मना सकते. अतीक अहमद अपराधी होगा, गुंड़ा और माफिया भी हो सकता है लेकिन सिर्फ इसलिए उसकी सरकारी तंत्र के द्वारा हत्या कर दी जाए ये तो जायज नहीं है. ऐसे में अपराधियों के बाद उनका भी नंबर आएगा जिनसे सत्ता के विचार मेल नहीं खाते होंगे. जब धर्म और विचारधारा की लड़ाई नहीं होगी तो जाति और रसूख का खेल खेला जाएगा. यानी आज नहीं तो कल गाड़ी पलटने में सबका नंबर आएगा. इसलिए आज ही संभल जाइए वरना कल आपको बचाने कोई नहीं आएगा.