Sunday, December 8, 2024

Lok Sabha Election 2024: फॉर्म 17 सी पर दायर हलफनामे के बाद सवालों के घेरे में चुनाव आयोग, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

लोकसभा चुनाव 2024 Lok Sabha Election 2024 के खत्म होने में अभी दो चरण बाकी हैं लेकिन ये चुनाव इतिहास रच रहा है. हार-जीत से परे इस चुनाव को कई चीजों के लिए याद किया जाएगा. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण होगी चुनाव आयोग की भूमिका जिसके निष्पक्ष होने को लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं.
22 मई को चुनाव आयोग ने फॉर्म 17 सी को लेकर ऐसा जवाब दिया जिसने चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया. दरअसल फॉर्म 17 सी वो डॉक्यूमेंट है जिसमें वोटिंग खत्म होने के बाद ये लिखा जाता है कि आज कितने वोट पड़े. इस फॉर्म पर वहां मौजूद पार्टियों के पोलिंग एजेंट के भी हस्ताक्षर होते हैं.

Lok Sabha Election 2024, फार्म 17 सी का डाटा देने से आयोग का इंकार

कानूनी मामलों के वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दिए गए अपने हलफनामे में कहा है कि फार्म 17 सी के वोटिंग आंकड़ों के बाद जोड़े गये वोटों की संख्या डाकपत्रों से मिले वोटों की संख्या से मिलान किया जाता है. इसलिए , इस तरह का अंतर वोटर्स को समझ नहीं आयेगा और चुनावों के दौरान गलत प्रभाव डालेगा, मतदाताओं के बीच अराजकता पैदा करने के लिए लोग इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके साथ ही आयोग ने कहा कि, 17 सी के डेटा को वेब साइट पर डालने से कोई इसका फोटोशॉप करेगा और भ्रम की स्थिति पैदा होगी.”
यानी सीधे शब्दों में कहें तो चुनाव आयोग ये बताने को तैयार नहीं कि वोट कितने पड़े. अब सवाल उठता है कि ये मामला कोर्ट पहुंचा क्यों. असल में लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण 19 अप्रैल और दूसरे चरण 26 अप्रैल के मतदान का डाटा चुनाव आयोग ने 30 अप्रैल की शाम को जारी किया और ये डेटा पहले जारी किए गए डेटा से 6 परसेंट ज्यादा था. यानी करीब करीब एक करोड़ वोट बढ़ गए थे.

एडीआर ने की थी चुनाव आयोग की शिकायत

इसके बाद एसोसियेशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. ADR ने अपनी शिकायत में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मतदान खत्म होने के 48 घंटे के अंदर चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर केंद्रवार मतदान प्रतिशत सार्वजनिक करें. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से 24 मई तक इस मामले में जवाब मांगा. जिसके जवाब में चुनाव आयोग की ओर से ये हलफनामा दायर किया गया है और बताया कि 48 घंटे में डेटा नहीं दिया जा सकता है. चौंकाने वाली बात ये है कि बीजेपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अभी तक इस डेटा की मांग नहीं की है? जबकि बाकी पार्टियां और उम्मीदवार फॉर्म 17सी का डेटा मांग रहे हैं. कुल मिलाकर चुनाव में विश्वास और पारदर्शिता दो बहुत महत्वपूर्ण चीजें हैं और चुनाव आयोग का ये हलफनामा उनपर ही सवाल खड़े कर रहा है.

क्या कांग्रेस का घोषणापत्र चुनाव आयोग ने नहीं पड़ा?

अब बात दूसरे मुद्दे की करें. तो बुधवार को बीजेपी और कांग्रेस के अध्यक्षों को चुनाव आयोग ने फिर कड़े निर्देश जारी किए. एक तरफ जहां चुनाव आयोग ने बीजेपी को सांप्रदायिक और धार्मिक बयानबाजी से परहेज करने को कहा वहीं कांग्रेस से कहा कि वो अग्निवीर योजना खत्म करने और संविधान बदलने जैसे मुद्दों पर बयानबाजी कर भ्रम न फैलाए.
चुनाव आयोग का कांग्रेस को ये निर्देश बेहद चौंकाने वाला है. पहली बात ये कि अग्निवीर योजना को खत्म करने का वादा कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया है. तो क्या 5 चरण बीतने तक चुनाव आयोग ने कांग्रेस का घोषणा पत्र देखा ही नहीं. दूसरा चुनाव आयोग ने कहा कि कांग्रेस रक्षा बलों का राजनीतिकरण करने से परहेज करे और रक्षा बलों की सामाजिक-आर्थिक संरचना के बारे में संभावित विभाजनकारी बयान न दे. लेकिन सवाल ये है कि अग्निवीर तो एक सरकारी योजना है जिसे सेना ने नहीं मोदी सरकार ने बनाया और लागू किया, फिर इसको खत्म करने से रक्षा बलों का राजनीतिकरण कैसे होगा.

संविधान बचाने की बात करना गलत कैसे?

इसी तरह बीजेपी के थिंक टेंक, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और कई बीजेपी नेता, मंत्री और उम्मीदवार संविधान को बदलने की बात कर चुके हैं….इनकी शिकायतें भी चुनाव आयोग से की गई हैं जिसपर आयोग ने चुप्पी साध रखी है. ऐसे में चुनाव आयोग का संविधान बचाने की बात करने पर सवाल उठाना चौंकाने वाला है. सबसे बड़ी बात ये है कि चुनाव के शुरुआत से ही इंडिया गठबंधन इन चुनावों को संविधान बचाने का चुनाव कह रहा है ऐसे में अब 6ठे चरण के करीब इसपर आपत्ति जताना विपक्ष के उस आरोप को बल देता है जिसमें वो चुनाव आयोग को बीजेपी का सहयोगी बताता है.

खैर चुनाव आयोग अपनी गरिमा का ख्याल रखे या नहीं रखे लेकिन फॉर्म 17 सी का मामला कोर्ट में है और ईवीएम को लेकर उठे सवालों पर विराम लगाते हुए कोर्ट ने कह दिया था कि वो चुनाव को निष्पक्ष रखने के लिए हर ज़रूरी फैसले लेगा. ऐसे में 2024 का चुनाव सिर्फ संविधान नहीं लोकतंत्र की लड़ाई में भी एक मील का पत्थर साबित होने जा रहा है.

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