Supreme Court : उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में कमला नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट के 125 एकड़ जमीन का आवंटन सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने UPSIDC के उस फैसले को सही बताया जिसमें KNMT ट्रस्ट को ‘पुराना डिफॉल्टर’ बताया गया था. ये ट्रस्ट लोकसभा में नेता विपक्ष कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की परदादी कमला नेहरू के नाम पर बनाया गया था.
Supreme Court : जमीन आवंटन को लेकर चल रहा था केस
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर केस चल रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (UPSIDC) के फैसले को सभी लोगों के हित में जरूरी बताया. कोर्ट ने कहा कि जमीन के इतने बड़े हिस्से का आवंटन बिना किसी औद्योगिक आकलन के किया गया था, जो जनहित में नहीं है. इस जमीन को 2003 में कमला नेहरु के नाम पर बनाये गये ट्रस्ट के लिए आवंटित किया था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच में ट्रस्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (UPSIDC) के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी , जिसे खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि साल 2003 में जमीन के आवंटित होने के बावजूद ट्रस्ट ने समय पर भुगतान नहीं किया.ट्रस्ट बार-बार ब्याज मांफ करने और बाकी पैसे के पेमेंट के लिए नई तारीखें लेने की अनुचित मांगें करता रहा. सुप्रीम कोर्ट ने इसी आधार पर जगदीशपुर पेपर मिल्स को किए दिये गये आवंटन को भी रद्द कर दिया है.
डिफॉल्टर KNMT को लेकर UPSIDC का फैसला सही
सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि KNMT ‘पुराना डिफॉल्टर’ है और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (UPSIDC) की तरफ से इसे डिफॉल्टर मानना न्यायसंगत होने के साथ साथ ज़रूरी भी है, ताकि ज़मीनों के आवंटन की प्रक्रिया में शुचिता बनी रहे. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर ऐसे मामलों के डिफॉल्टर्स को नजरअंदाज किया जाएगा तो ये जमीन वितरण का पूरा तंत्र को कमजोर हो जायेगा .
सुप्रीम कोर्ट ने UPSIDC को भी लगाई लताड़
मामले में बहस के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने UPSIDC की आलोचना करते हुए कहा कि आपने भी सार्वजनिक हित के सिद्धांत का पालन नहीं किया है. हलांकि कोर्ट ने डिफॉल्ट के कारण KNMT का आवंटन रद्द करने के फेसले को सही ठहराया लेकिन ये भी कहा कि मूल आवंटन प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं. कोर्ट ने कहा कि कमला नेहरु मेमोरियाल ट्रस्ट को आवेदन के बाद केवल दो महीने के अंदर जमीन आवंटित कर दी गई जो प्रक्रियों के भीतर मौजूद विसंगतियों की गंभीरता पर सवाल उठाता है.
लाभार्थी की योग्यता का सही मूल्यांकन जरुरी
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि जो मामले जनहित से जुड़े होते हैं, ऐसे मामलों में आवंटनों से पहले ये तय करना जरुरी है कि जो लाभार्थी है उसकी योग्यता, रोजगार सृजन, सार्वजनिक हितों की पूर्ति, पर्यावरणीय स्थिरता और क्षेत्र के विकास के उद्देश्यों का अच्छी तरह से मूल्यांकन किया जाये. KNMT और जगदीशपुर पेपर मिल्स को दी गई जमीनों में भी इन बातों का मूल्यांकन नहीं किया गया , इसलिए दोनों ही भूमि के आवंटन को रद्द किया जाता है.
शीर्ष न्यायलय ने UPSIDC को भी लताड़ लगाते हुए कहा कि आपने भी पारदर्शिता नहीं अपनाई, जिससे ना केवल सरकारी खजाने को राजस्व की हानि हुई, बल्कि ऐसी व्यवस्था को बढ़ावा मिला जिसमें कुछ विशिष्ट लोगों को तरजीह दी जाती है.यहां आवंटन में समान अवसरों की अनदेखी की गई जो राज्य और नागरिकों के बीच मौजूद विश्वास के रिश्ते के साथ विश्वासघात है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के अंत में उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (UPSIDC) को निर्देश दिया कि भविष्य में सभी तरह के जमीन आवंटन की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता रहे, आवंटन भेदभावरहित और निष्पक्ष तरीके से किए जाएं ताकि राज्य के राजस्व को किसी तरह का नुकसान ना हो. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे आवंटन राज्य के औद्योगिक विकास, क्षेत्रीय आर्थिक लक्ष्यों और पर्यावरणीय स्थिरता की पूर्ति को सुनिश्चित करें, इसका ध्यान रखा जाये.
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