बिहार की सियासत में अपने दम पर खड़े होने के लिए बेताब कांग्रेस विधानसभा चुनाव से पहले दो धड़ों में बंटी नजर आ रही है. बिहार की सियासी पिच पर कन्हैया कुमार के एक्टिव होने से आरजेडी से ज्यादा कांग्रेस के नेता ही बेचैन माने जा रहे हैं. कन्हैया कुमार के बिहार सक्रिय होने से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद खुश नहीं हैं. इसके चलते ही राहुल गांधी के साथ बुधवार को बिहार कांग्रेस नेताओं के साथ होने वाली बैठक टल गई है. कन्हैया बनाम अखिलेश की लड़ाई में बिगड़ न जाए कांग्रेस का 2025 गेम?
कांग्रेस साढ़े तीन दशक से बिहार की सत्ता से बाहर है, जिसके चलते उसका जनाधार पूरी तरह से खिसक गया है. कांग्रेस के तमाम नेता पार्टी छोड़कर चले गए हैं तो कार्यकर्ता भी जमीनी स्तर पर सक्रिय नहीं है. ऐसे में कांग्रेस बिहार में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की बैसाखी के सहारे राजनीति करती रही. दिल्ली चुनाव के बाद कांग्रेस अब आत्मनिर्भर बनने की जुगत में है, जिसके चलते ही सियासी माहौल गर्मा गया है. कांग्रेस की नजर बिहार की सियासत पर ही अपने दम पर खड़े होने की है, जिसके चलते ही सियासी उठा पटक शुरू हो गई है.
कांग्रेस के दो भूमिहार नेता में शह-मात
कांग्रेस कन्हैया कुमार के जरिए बिहार में अपने लिए सियासी उम्मीदें देख रही है, जिसके चलते ही उन्हें उतारा है. ऐसे में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का मानना है कि कांग्रेस पार्टी जिस तरह कन्हैया कुमार को बिहार में प्रमोट कर रही है, उससे कांग्रेस और आरजेडी के संबंध बिगड़ सकते हैं. इसका पॉलिटिक्ल इम्पैक्ट सिर्फ गठबंधन की राजनीति पर ही नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी सियासत पर भी पड़ता दिख रहा, जिसमें दो भूमिहार नेता आमने-सामने खड़े हुए नजर आ रहे हैं.
बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और कन्हैया कुमार एक ही पार्टी से हैं और एक ही समाज से आते हैं. दोनों नेता भूमिहार समाज से आते हैं और दोनों ही गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं.अखिलेश प्रसाद को सोनिया गांधी की लॉबी का माना जाता है तो कन्हैया कुमार राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. राहुल के साथ भारत जोड़ो यात्रा में कन्हैया कुमार कंधे से कंधा मिलकर पदयात्रा करते नजर आए थे. अब बिहार कांग्रेस के दोनों ही दिग्गज नेताओं के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है.
कन्हैया बनाम अखिलेश प्रसाद
बिहार की राजनीति में अचानक कन्हैया कुमार का सक्रिय होना अखिलेश सिंह समर्थकों को नागवार गुजर रहा है. ऐसे में दोनों अब बिहार में अपना दम दिखाना चाह रहे हैं. अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. इनका ओरिजनल रूट कांग्रेस नहीं है, लालू यादव की पार्टी आरजेडी से होते हुए कांग्रेस सियासी ठिकाना बना है. लालू यादव और अखिलेश सिंह की गोटी बिल्कुल सेट है. लालू यादव की वजह से ही वह राज्यसभा भी पहुंचे हैं. कांग्रेस और आरजेडी को राज्य में गठबंधन की डोर में बांधे रखने में अखिलेश सिंह की अहम भूमिका मानी जाती.
वहीं कन्हैया कुमार वामपंथी राजनीति से कांग्रेस में आए हैं. राहुल गांधी के करीबी हैं और युवा नेता है. कन्हैया की युवाओं में मजबूत पकड़ मानी जाती है. बेबाकी तरीके से कन्हैया अपनी बात रखने की ताकत रखते हैं और सामने वाली की बोलती बंद करने की क्षमता है. राहुल गांधी अब कन्हैया कुमार को बिहार में आगे बढ़ा रहे हैं तो अखिलेश प्रसाद सिंह को रास नहीं आ रहा है. इस तरह कन्हैया कुमार और अखिलेश सिंह को लेकर बिहार कांग्रेस अब दो खेमे में बंट गई है. ऐसे में एक गुट प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ है जबकि दूसरा गुट कन्हैया कुमार के साथ. फीडबैक लेने वाले थे.
कांग्रेस का बिगड़ न जाए सियासी गेम
कांग्रेस पार्टी के भीतर एक ऐसा वर्ग है जो लालू की छाया से निकलना चाह रही है. शायद यही वजह है नए कांग्रेस प्रभारी और कन्हैया कुमार की सक्रियता वैसे लोगों को खटक रही है. कांग्रेस पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कन्हैया कुमार की भूमिका को और बड़ा करना चाहती है. कन्हैया कुमार के नेतृत्व में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई की टीम रोजगार और पलायन के मुद्दे पर 16 मार्च से पश्चिम चंपारण से पदयात्रा शुरू कर रही. कन्हैया इस पदयात्रा में मुख्य आकर्षण होंगे. कन्हैया कांग्रेस में रहते हुए बिहार में अपना भविष्य देख रहे हैं और ठीक वैसे ही कांग्रेस भी कन्हैया कुमार से वैसी ही उम्मीद बिहार में पाल रखी है, जिसके चलते बिहार की सियासी पिच पर उतारने का दांव चला है.
वहीं, बिहार की सियासत में हमेंशा इस बात की चर्चा रहती है कि लालू यादव हमेशा बिहार कांग्रेस को अपनी मुट्ठी में रखना चाहते हैं. कांग्रेस जैसे ही ताकतवर होगी, लालू यादव को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए, बिहार में जो भी कांग्रेस का अध्यक्ष रहा लालू यादव का कृपा पात्र रहा. मदन मोहन झा और भक्त चरण दास की जोड़ी ने लालू यादव के नाक में दम जरूर कर दिया था. इसके बाद लालू यादव ने अपनी केमिस्ट्री के नेता अखिलेश प्रसाद को प्रदेश की कमान दिलाई, लेकिन कन्हैया कुमार अचानक सक्रिय होने से बिहार की सियासत में तूफान खड़ा हो गया है.
बिहार कांग्रेस में विवाद इतना बढ़ गया है कि पार्टी को 12 मार्च को राहुल गांधी के साथ बिहार के नेताओं की बैठक स्थगित करनी पड़ी है. इस बैठक में राहुल गांधी प्रदेश के नेताओं से विधानसभा चुनाव पर फीडबैक लेने वाले थे. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह बहुत नाराज चल रहे हैं. बिहार के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावारु जिस स्टाइल में काम कर रहे हैं, उससे प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं. हालांकि वह इसका विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि प्रभारी को सीधा केंद्रीय नेतृत्व का आशीर्वाद मिला हुआ है. इसी बीच कन्हैया कुमार की बिहार वापसी ने आग में घी डालने का काम किया है. ऐसे में कांग्रेस का मिशन-2025 कहीं गड़बड़ा न जाए?