Wednesday, October 23, 2024

Taslima Nasreen: बांग्लादेशी लेखिका ने अमित शाह से भारत में रहने देने का किया अनुरोध, कहा- ‘मेरा दूसरा घर’

निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन Taslima Nasreen ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अपील की कि उन्हें भारत में रहने दिया जाए.

एक्स पर पोस्ट लिख किया अमित शाह से अनुरोध

नसरीन ने एक एक्स पोस्ट में अमित शाह को टैग करते हुए कहा, “प्रिय अमित शाह जी नमस्कार. मैं भारत में रहती हूँ क्योंकि मुझे इस महान देश से प्यार है. पिछले 20 सालों से यह मेरा दूसरा घर रहा है. लेकिन गृह मंत्रालय ने 22 जुलाई से मेरे निवास परमिट को आगे नहीं बढ़ाया है. मैं बहुत चिंतित हूँ. अगर आप मुझे रहने देंगे तो मैं आपकी बहुत आभारी रहूँगी. हार्दिक शुभकामनाएँ.”

पुस्तकों के प्रतिबंधित होने पर छोड़ना पड़ा था बांग्लादेश

सांप्रदायिकता की कट्टर आलोचक नसरीन 1994 से निर्वासन में रह रही हैं. बांग्लादेश में सांप्रदायिकता और महिलाओं की समानता पर अपने लेखन के लिए इस्लामी कट्टरपंथियों की आलोचना का सामना करने के बाद उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा.
उनकी कुछ पुस्तकों, जिनमें उनका सफल उपन्यास “लज्जा” (1993) और उनकी आत्मकथा “अमर मेयेबेला” (1998) शामिल हैं, को उनके विषय-वस्तु के कारण बांग्लादेश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था.
“लज्जा” की कड़ी आलोचना हुई क्योंकि इसमें भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बंगाली हिंदुओं पर हिंसा, बलात्कार, लूटपाट और हत्याओं का विस्तृत विवरण था.

2004 में भारत आई थी तस्लीमा नसरीन

नसरीन ने अगले 10 साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए. 2004 में, नसरीन भारत में कोलकाता चली गईं और 2007 तक रहीं.
इसके बाद वह तीन महीने के लिए दिल्ली चली गईं, जहाँ उन पर शारीरिक हमला होने के बाद वह घर में नज़रबंद रहीं. हालाँकि, उन्हें 2008 में भारत छोड़कर अमेरिका जाना पड़ा. कुछ सालों के बाद, नसरीन भारत लौट आईं.

‘बांग्लादेश का हाल भी अफगानिस्तान जैसा हो सकता है’: Taslima Nasreen

हाल ही में, तस्लीमा नसरीन ने शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद बांग्लादेश में पैदा हुए राजनीतिक संकट पर बात की. लेखिका ने दावा किया कि इस्लामी कट्टरपंथी युवाओं का दिमाग खराब कर रहे हैं और उन्हें “भारत विरोधी, हिंदू विरोधी और पाकिस्तान समर्थक” बनाने के लिए उन्हें भड़का रहे हैं.
पीटीआई ने नसरीन के हवाले से कहा, “हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, पत्रकारों को निशाना बनाना और जेलों से “आतंकवादियों” को रिहा करना जैसी हालिया कार्रवाइयों से पता चलता है कि यह छात्रों का आंदोलन नहीं था, बल्कि “इस्लामिक जिहादियों द्वारा योजनाबद्ध और वित्तपोषित था.”

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