बिलकिस बानो के 11 दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केम जोसेफ ने कहा कि “आज बिलकिस बानो है. कल आप और मुझमें से कोई भी हो सकता है. ऐसे में तय मानक होने चाहिए हैं. आप हमें कारण नहीं देते हैं तो हम अपना निष्कर्ष निकाल लेंगे.”
2 मई को अंतिम सुनवाई करेगा कोर्ट
कोर्ट बिलकिस बानो की याचिका पर 2 मई को अंतिम सुनवाई करेगा. मंगलवार को गुजरात सरकार ने कोर्ट में फैसले से जुड़ी फाइल दिखाने के आदेश का विरोध किया. सरकार का कहना था कि फैसला कोर्ट के आदेश के आधार पर ही लिया गया है.
इसपर मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस केम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती’, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे जघन्य अपराध जो कि समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं, ऐसे मामलों में फैसला लेते समय जनता के हित को दिमाग में रखना चाहिए. कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य के फैसले के साथ सहमति जताई इसका मतलब ये नहीं था कि राज्य सरकार को अपना दिमाग इस्तेमाल करने की जरूरत ही नहीं थी.
कौन है इस मामले में याचिकाकर्ता
आपको बता दें. बिलकिस बानो के दोषियों को छोड़े जाने के फैसले के खिलाफ पहले सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली और टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने याचिका दर्ज की थी. बाद में खुद बिलकिस बानो ने बी फैसले के खिलाफ याचिका डालकर अपने 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की है.
क्या है बिलकिस बानो मामला
2002 में हुए गुजरात दंगे के दौरान हुआ बिलकिस बानो बलात्कार कांड वह काला औऱ मानवता को शर्मसार करने वाला अध्याय है जिसमें एक 21 साल की पांच महीने की गर्भवती बिलकिस के साथ ना केवल सामूहिक बलात्कार किया गया बल्कि उसकी आंखों के सामने उसकी तीन साल की मासूम बच्ची को इन वहशियों ने कत्ल कर दिया. उसकी मां और बहन के साथ भी बलात्कार किया गया. और परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई.