नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो बीते पांच दिनों से गंभीर परिचालन संकट में है, जिससे हजारों यात्रियों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी है। उड़ानों के लगातार रद्द और विलंब होने से एयरपोर्ट्स पर अराजकता का माहौल बना हुआ है। इस घटना ने न केवल इंडिगो के संचालन मॉडल पर सवाल उठा दिए हैं, बल्कि कंपनी के हाई-प्रोफाइल बोर्ड और उसकी आंतरिक निगरानी प्रणाली की क्षमता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या इंडिगो प्रबंधन और बोर्ड ने संकट की आशंका को देखकर कोई ठोस रणनीति बनाई गई थी।
मामले के केंद्र में पायलटों के लिए लागू होने वाले फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) नियम हैं, जिन्हें नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने जनवरी 2024 में अधिसूचित किया था। शुरुआत में यह नियम 1 जून 2024 से लागू होने थे, लेकिन एयरलाइंस कंपनियों के विरोध के चलते इन्हें बाद में दो चरणों में 1 जुलाई और 1 नवंबर 2025 से लागू करने का फैसला हुआ। इसके बावजूद, इंडिगो इन्हें लागू करने की तैयारी समय रहते नहीं कर सकी, इसके परिणामस्वरूप पायलटों की कमी और ड्यूटी शेड्यूल में अव्यवस्था पैदा हुई और संचालन चरमरा गया।
रिपोर्ट के अनुसार, इंडिगो के बोर्ड में कई जानी-मानी हस्तियां हैं, लेकिन उनके बावजूद ऐसी चूक होना हैरान करने वाला है। बोर्ड में इंटरग्लोब एंटरप्राइजेज के ग्रुप मैनेजिंग डायरेक्टर और एयरलाइन के सह-संस्थापक राहुल भाटिया, पूर्व जी20 शेरपा अमिताभ कांत, सेबी के पूर्व चेयरमैन दामोदरन, पूर्व एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ, शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी की मैनेजिंग पार्टनर पल्लवी श्रॉफ, ट्रांस वर्ल्ड एयरलाइंस के पूर्व वकील माइक व्हिटेकर और चेयरमैन विक्रम मेहता जैसे नाम शामिल हैं। इसके बावजूद, तैयारी में कमी उजागर होने से बोर्ड की जवाबदेही पर तीखी आलोचना हो रही है।
वहीं डीजीसीए पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या नियामक समय रहते स्थिति को भांप सका था। हालांकि डीजीसीए ने कहा है कि उसने तैयारी पूरी करने के लिए एयरलाइन को लगातार चेतावनी और निर्देश दिए थे। यह पूरा मामला न केवल प्रबंधन क्षमता, बल्कि भारत की विमानन नियामक व्यवस्था की प्रभावशीलता पर भी गंभीर बहस छेड़ चुका है। यात्रियों की असुविधा का सिलसिला जारी है और अब सभी की निगाहें इंडिगो की सुधारात्मक कार्रवाई पर टिकी हैं।

