Shashi Tharoor (PM Modi Special Team) : ऑपरेशन सिंदूर भले ही स्थगित हो गया हो लेकिन मोदी सरकार पाकिस्तान के नापाक मंसूबों के दरकिनार करने के लिए तैयार नहीं है. पीएम मोदी ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को बेनकाब करने के लिए एक खास रणनीति तैयार बनाई है जिसके तहत पक्ष विपक्ष के बैरियर को तोड़ते हुए 40 सासंदों को चुना है जिन्हें 7 टीमों में बांट कर अलग अलग देशों में भेजा जायेगा. ये सांसद अलग अलग टीमों में बंटकर दुनिया के देशों मे पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की पोल खोल करेंगे. पीएम मोदी के इस स्पेशल 7 टीम में भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, जनता दल यूनाइटेड से संजय कुमार झा, डीएमके से कनिमोझी, एनसीपी शऱद पवार गुट से सुप्रिया सुले और शिवसेना शिंदे गुट से श्रीकांत शिंदे शामिल हैं.
Shashi Tharoor : कांग्रेस की सलाह को दरकिनार कर शशि थरुर का चुनाव
पीएम मोदी के बनाये इस सात सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल में दो नाम चौकाने वाले हैं. इस प्रतिनिधि मंडल के नेतृत्व की जिम्मेदारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरुर को सौंपी गई है, वहीं पीएम मोदी के कट्टर आलोचक AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी को भी इसमें शामिल किया गया है.
इन दो नामों के आने बाद चर्चा शुरु हो गई है इसके पीछे भी क्या कोई रणनीति है. क्योंकि टीम मोदी ने क्योंकि शशि थरुर का चयन कांग्रेस पार्टी के सहमति के बैगर किया है. कांग्रेस पार्टी ने इस प्रतिनिधि मंडल में शामिल करने के लिए चार नाम दिये थे – आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार लेकिन पीएम मोदी ने कांग्रेस से मिले इन चार नामों की जगह पर शशि थरुर को तरजीह दी और उन्हें इस सात सदस्यीय दल के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी.
शशि थरुर और ओवैसी को लाकर क्या होगा फायदा
दरअसल पीएम मोदी अक्सर अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते हैं. इस समय जब देश में भारत सरकार की कार्रवाईयों के लेकर अलग अलग दलों से असहमति की आवाजें आ रही हैं, देश में हिंदु मुसलमान को लेकर नैरेटिव बनाये जा रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस नेता शशि थरुर और असदुद्दीन ओवैसी को शामिल करने का फैसला चौंकाता है.
कौन हैं शशि थरुर ?
शशि थरुर की पहचान एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता होने से पहले एक बड़े डिप्लोमैट की रही है. शशि थरूर के पास संयुक्त राष्ट्र में काम करने का लंबा अनुभव होने के साथ साथ कूटनीति की भी पकड़ है.ऐसे में उम्मीद है कि शशि थरुर अपनी कूटनीती और रणनीति से पाकिस्तान के नापाक इरादों को हर स्तर पर बेनकाब करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. शशि थरुर के पास अंतराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ का करने का लंबा अनुभव है.थरुर यूएनएचसीआर से 1978 में अपने कैरियर की शुरुआत की और 1981 से 1984 तक सिंगापुर में यूएनएचसीआर के प्रमुख रहे.
1989 में थरुर यूगोस्लाविया में शांति अभियानों को चलाने के लिए विशेष सहायक बने.
2001 में थरुर संचार और जन सूचना विभाग (DPI) के अंतरिम प्रमुख बने और फिर 2002 में उन्हें संचार और जन सूचना के लिए अवर महासचिव बनाया गया.
शशि थरुर एक राजनीयिक रहते हुए ये जानते है कि किस देश की क्या फितरत है, कौन से राजनेता की क्या कूटनीतिक ताकत है और इससे आगे उन्हे किस तरह से जवाब देना है.यही कारण है कि जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पाकिस्तान सीजफायर पर बोला तो थरुर ने पीएम मोदी की चुप्पी का समर्थन किया. थरुर ने इसे पीएम मोदी की कूटनीति का हिस्सा बताया. इससे पहले भी शशि थरुर रुस-यूक्रेन युद्ध में पीएम मोदी की चुप्पी का समर्थन कर चुके हैं.
शुरु से ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक रहे
शशि थरुर ने ऑपरेशन सिंदूर के शुरुआत से ही समर्थन दिया था. यहां तक की हमले के दौरान अलग-अलग मीडिया चैनलों पर जाकर भारत के स्टैंड को दुनिया के सामने रखा है. जिस तरह से थरुर ने अंतराष्ट्रीय मीडिया में बारत के पक्ष को रखा विपक्षी नेता भी इसके कायल हो गये.
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी क्यों ?
प्रधानमंत्री मोदी के विशेष टीम में AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी को भी जगह मिली है. लोग हैरान हैं कि हमेशा पीएम मोदी की ओलोचना करने वाले ओवैसी को पीएम ने अपनी टीम मे क्यों रखा है .
दरअसल पहलगाम हमले के बाद से ही AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी पाकिस्तान पर जम कर बोल रहे हैं.ओवेसी ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर का जमकर समर्थन करते हुए कहा कि आतंकवाद को पालने वाले को ऐसी सजा मिलनी चाहिये कि फिर कभी दूसरा पहलगाम ना हो.पकिस्तान के आतंकी स्ट्रक्चर को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिये.
आपरेशन सिंदूर को लेकर दिये गये बयानो के बाद ओवैसी की छवि एक कट्टर मुस्लिम नेता से काफी अलग बन गई.इस दौरान भाजपा के कई नेता भी ओवैसी का तरीफ करते नजर आये.
मुस्लिम होने के नाते मुस्लिम देशो को साध सकते हैं
AIMIM प्रमुख ओवैसी भारत में मोदी का विरोध करने वाले मुखर नेताओं में रहे हैंस लेकिन उनके इस टीम में शामिल करने के फैसले को लेकर माना जा रहा है कि एक मुस्लिम चेहरा और पढ़े लिखे होने के कारण ओवैसी मुस्लिम देशों को साध सकते हैं. ओवैसी की छवि एक कट्टर मुस्लिम नेता की है , ऐसे में माना जा रहा है कि मुस्लिम देशों में उनकी बात का बड़ा महत्व होगा. ओवैसी नेता बनने से पहले एक बड़े वकील है जिन्होंने लंदन से पढ़ाई की है. वो अपनी बातों को तर्को के साथ रखने के लिए मशहूर हैं.
1994 में अटल बिहार वाजपेयी को पीवी नरसिंहा राव ने भेजा था जीनेवा
हलांकि ये पहला मौक नहीं है जब अतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखने के लिए आपसी राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर सारा देश एक साथ है. सारे राजनीतिक दल देशहित में सरकार और सरकार की नीतियों के साथ खड़े हैं. इससे पहले 1994 में कांग्रेस की सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने दलगत रातनीति से ऊपर उठकर भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना था. अटल बिहारी वाजपेयी के वहां पहुंचने पर पाकिस्तान भी हैरान था.