Friday, July 4, 2025

Kolhapuri chappals: प्रादा का विवाद पहुंचा अदालत, 2026 के कलेक्शन में ‘कोल्हापुरी चप्पल’ को लेकर मांगा मुआवजा

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Kolhapuri chappals: प्रादा का विवाद पहुंचा अदालत, 2026 के कलेक्शन में ‘कोल्हापुरी चप्पल’ को लेकर मांगा मुआवजा
इटैलियन लग्जरी फैशन हाउस प्रादा के कोल्हापुरी चप्पलों Kolhapuri chappals से “प्रेरित” फुटवियर पेश करने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. ब्रांड के विरोध के बाद चुप्पी तोड़ने के बावजूद अब बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें कोल्हापुरी चप्पल कारीगरों के लिए मुआवजे की मांग की गई है.

प्रादा के ‘टो रिंग सैंडल’ को लेकर डाली गई पीआईएल

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इतालवी ब्रांड ने प्रादा मेन्स 2026 फैशन शो में कोल्हापुरी चप्पलों के डिज़ाइन की नकल की है. हालाँकि, ब्रांड ने पहले एक बयान जारी कर कहा था कि जूते “सदियों पुरानी विरासत वाले पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित जूतों से प्रेरित हैं”.
प्रादा ने ‘टो रिंग सैंडल’ के नाम से जूते लॉन्च किए थे, जिसके बारे में जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह शैलीगत और सांस्कृतिक रूप से जीआई-टैग वाली कोल्हापुरी चप्पलों से काफी मिलता-जुलता है.

भौगोलिक संकेत (जीआई) वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत एक दर्जा है.

पीआईएल में की गई Kolhapuri chappals कारीगरों के लिए मुआवजे की मांग

याचिका में कहा गया है कि 22 जून को इटली के मिलान में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय फैशन कार्यक्रम के दौरान ₹1 लाख प्रति जोड़ी से अधिक की कीमत वाले सैंडल दिखाए गए थे और उनकी वास्तविक उत्पत्ति को स्वीकार किए बिना यूरोपीय लेबल के तहत रीब्रांड किया गया है.
समाचार एजेंसी एएनआई ने याचिका का हवाला देते हुए कहा, “यह जनहित याचिका जीआई-टैग वाले उत्पाद के अनधिकृत व्यावसायीकरण के लिए निषेधाज्ञा और क्षतिपूर्ति/मुआवजा सहित दिशा-निर्देश और उचित राहत की मांग करती है, जिससे पारंपरिक रूप से इससे जुड़े समुदाय को, विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य में, काफी नुकसान हुआ है.”
इंटेलेक्चुअल राइट्स अधिकार अधिवक्ता गणेश एस हिंगमीरे ने 2 जुलाई को याचिका दायर की थी, जिसमें प्रादा पर कोल्हापुरी चप्पल के गलत चित्रण, सांस्कृतिक विनियोग और अनधिकृत वाणिज्यिक दोहन का आरोप लगाया गया है.

प्रादा ने क्या कहा?

कोल्हापुरी चप्पलों से जूतों की समानता और उनकी कीमत ₹1 लाख होने के कारण आलोचनाओं का सामना करते हुए, प्रादा ने सैंडल की विरासत को स्वीकार करते हुए एक बयान जारी किया था. “हम मानते हैं कि हाल ही में प्रादा मेन्स 2026 फैशन शो में दिखाए गए सैंडल सदियों पुरानी विरासत के साथ पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित जूते से प्रेरित हैं. हम इस तरह के भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्व को गहराई से पहचानते हैं,” प्रादा समूह के कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रमुख लोरेंजो बर्टेली ने लिखा.
ब्रांड ने यह भी कहा कि डिज़ाइन अभी शुरुआती चरण में हैं और अभी तक उत्पादन के लिए स्वीकृत नहीं किए गए हैं.

ब्रेंड ने अभी तक कोई औपचारिक माफ़ी नहीं जारी की है- पीआईएल

हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका में इतालवी लक्जरी ब्रांड से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने की मांग की गई है. याचिका में तर्क दिया गया है कि कोल्हापुरी चप्पलों से लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं और ब्रांड की स्वीकृति न तो सार्वजनिक थी और न ही आधिकारिक थी और सोशल मीडिया पर काफी आलोचना का सामना करने के बाद ही यह किया गया था.
पीआईएल में कहा गया है, “ब्रांड ने अभी तक किसी भी नुकसान, मुआवजे और हकदार उपाय के साथ कोई औपचारिक माफ़ी नहीं जारी की है और यह बयान आलोचना को दूर करने का एक सतही प्रयास मात्र प्रतीत होता है.”
इसमें भारत में पारंपरिक भारतीय डिज़ाइनों और जीआई-टैग वाले उत्पादों के लिए सख्त सुरक्षा लागू करने का भी आह्वान किया गया है.

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