सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा Justice Yashwant Varma को तत्काल प्रभाव से न्यायिक कर्तव्यों से हटा दिया. इससे पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की कथित घटना से उपजे आरोपों की जांच के लिए शनिवार को तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था.
सर्कुलर जारी कर दी न्यायिक काम से हटाने की जानकारी
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा सोमवार को जारी एक सर्कुलर में कहा गया, “हाल की घटनाओं के मद्देनजर, माननीय श्री यशवंत वर्मा से न्यायिक कार्य अगले आदेश तक “तत्काल प्रभाव” से वापस ले लिया गया है.”
यह निर्णय शनिवार को सीजेआई खन्ना द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा को फिलहाल कोई न्यायिक कार्य न सौंपे जाने की सिफारिश के बाद लिया गया है.
जांच के लिए सीजेआई ने बनाई 3 सदस्य कमेटी
Justice Yashwant Varma मामले में इन-हाउस कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं.
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच की सिफारिश के बाद सीजेआई खन्ना ने यह फैसला लिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा देर से जारी अपनी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति उपाध्याय ने कहा: “मेरी पहली नजर में राय है कि पूरे मामले की गहन जांच की जरूरत है.”
क्या है Justice Yashwant Varma से जुड़ा पूरा विवाद
विवाद की शुरुआत 14 मार्च को रात करीब 11:35 बजे तुगलक रोड पर जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास में लगी आग से हुई. दिल्ली अग्निशमन सेवा (DFS) ने तुरंत कार्रवाई की और कुछ ही मिनटों में आग बुझा दी. हालांकि, माना जाता है कि सबसे पहले बचाव दल- जिसमें DFS और संभवतः पुलिस के कर्मचारी शामिल थे- ने स्टोररूम में ढेर सारे पैसे पाए, जिनमें से कुछ कथित तौर पर जले हुए थे. उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे.
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की सिफारिश की – जो उनका पैतृक उच्च न्यायालय है. हालांकि, विचार-विमर्श के दौरान, कम से कम दो सदस्यों ने तर्क दिया कि केवल स्थानांतरण पर्याप्त नहीं है और तत्काल आंतरिक जांच के लिए दबाव डाला. एक न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा को तुरंत न्यायिक कार्य से हटा दिया जाना चाहिए, जबकि दूसरे ने संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए औपचारिक जांच के लिए दबाव डाला.
इस मामले ने न्यायपालिका और कानूनी बिरादरी से भी प्रतिक्रियाएँ पैदा की हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (HCBA) ने न्यायमूर्ति वर्मा के तबादले का कड़ा विरोध किया, और सवाल उठाया कि क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय को “डंपिंग ग्राउंड” के रूप में देखा जा रहा है.
संसद में भी गूंजा Justice Yashwant Varma का मामला
यह विवाद संसद में भी गूंजा है. 21 मार्च को राज्यसभा में, अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश के न्यायिक जवाबदेही के लिए किए गए आह्वान का जवाब देते हुए कहा कि वे इस मुद्दे पर संरचित चर्चा के लिए तंत्र तलाशेंगे.
धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पर बहस को पुनर्जीवित करने का संकेत दिया, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.