Friday, November 8, 2024

Mission 2024: जीतन राम मांझी-अमित शाह मुलाकात का क्या है मतलब, क्यों छोटे साथियों की तलाश में है बीजेपी?

राहुल गांधी के अडानी वाले सवाल और अब कांग्रेस को मिले नीतीश कुमार के साथ के बाद बीजेपी की बेचैनी बढ़ गई है. अंदर ही अंदर बीजेपी परेशान है. उसके नेता पूरी ताकत से नीतीश और कांग्रेस पर ठगबंधन कहकर वार कर रहे हैं. लेकिन जब विपक्ष के हथियार नए हैं तो पक्ष के पुराने जुमले कहां काम आएंगे. ऐसी विकट स्थिति में नीतीश और राहुल की तस्वीरों का जवाब बीजेपी को अमित शाह और जीतन राम मांझी की तस्वीर के रूप में मिल गया है.

जीतन राम मांझी क्या लगा सकते है बीजेपी की नैय्या पार

गुरुवार यानी 13 अप्रैल का दिन जीतन राम मांझी के नाम था. लोगों को उम्मीद थी कि जीतन राम मांझी गृहमंत्री अमित शाह से मिलेंगे और फिर कांग्रेस-नीतीश गठबंधन का जवाब बीजेपी बिहार में मांझी को साध कर दे देगी. मांझी एनडीए में शामिल हो सकते हैं इस बात पर विश्वास करने के कई कारण भी थे. पिछले बयानों पर नजर डालें तो मांझी कई बार नीतीश का विरोध करते नजर आए थे. फिर चाहे बात शराबबंदी की हो या फिर नीतीश के तेजस्वी यादव को भावी मुख्यमंत्री बताने की हो. मांझी ने तेजस्वी का नाम लिए बिना उनपर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था, मेरा बेटा संतोष एक युवा और अच्छी तरह से शिक्षित है. जिन लोगों का नाम सीएम पद के लिए आया है, उनसे मेरा बेटा ज्यादा योग्य है.

अमित शाह के साथ मांझी की तस्वीरों का क्या है मतलब

ऐसे में जब माझी दिल्ली में गृहमंत्री के घर पहुंचे. दोनों तरफ की मुसकुराती तस्वीरों ने सुर्खियां बटोरी. बीजेपी के मन में लड्डू फूटा लेकिन जैसे ही मांझी मुलाकात के बाद बाहर आए और अपना मुंह खोला वैसे ही बीजेपी समर्थकों की उम्मीदों का गुब्बारा फूट गया. मीडिया के सवालों के जवाब में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा, “ मैंने प्रण लिया है कि मैं नीतीश कुमार के साथ रहूंगा. नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण हैं. वह विपक्षी दलों को एकजुट करने का ईमानदार प्रयास कर रहे हैं.”

मांझी ने बीजेपी को क्यों दिया झटका

मांझी ने एनडीए से जुड़ने की हर संभावना पर विराम लगाते हुए कहा, “NDA में ऐसे लोग हैं जिन्होंने खुलकर कहा है कि हिंदुस्तान में छोटी पार्टियों को रहने की ज़रूरत नहीं है और मैं छोटी पार्टी में हूं. मैंने कई बार कहा भी है और हमने कसम भी खाई है कि हम उनके साथ नहीं जाएंगे.” यहां मांझी के बयान के दो मतलब निकाले जा सकते हैं. पहला कि वो ईमानदारी से नीतीश कुमार के साथ हैं और दूसरा कि वो 2025 तक अपने बेटे के मंत्री पद को खतरे में नहीं डालना चाहते.

बिहार में बीजेपी की नज़र छोटे खिलाड़ियों पर

वैसे जब से बिहार में जदयू, राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन की सरकार बनी है तब से बीजेपी महागठबंधन को टक्कर देने के लिए छोटे-छोटे गठबंधन सहयोगी की तलाश में है. बीजेपी की नजर चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जदयू के पूर्व नेता आरसीपी सिंह, वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ियों पर है.

“अच्छे काम के लिए अच्छे लोगों से मिलने आए थे”-मांझी

एक बार फिर अगर बात मांझी की करें तो उनकी नीतीश के प्रति प्रेम में कुछ दम इसलिए लग रहा है क्योंकि वो 1 अप्रैल यानी जब नीतीश और राहुल के मिलने की चर्चा भी नहीं थी तब पर्वत पुरुष बाबा दशरथ मांझी के लिए भारत रत्न की मांग को लेकर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करने पहुंचे थे और आज की ये मुलाकात भी उसी बात का एक्सटेंशन मानी जा रही है.
हलांकि कुछ सस्पेंस मांझी ने ये बोल के छोड़ा ज़रूर है कि “अच्छे काम के लिए अच्छे लोगों से मिलने आए थे”

अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार की मुलाकात से घबराई बीजेपी

वैसे मांझी के मन की बात भले ही बता पाना मुश्किल है लेकिन बीजेपी की बेचैनी बहुत साफ नज़र आ रही है. खास कर राहुल के बाद नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से हुई मुलाकात के बाद तो बीजेपी ने अपने तेवर काफी कड़े कर लिए हैं. ऐसा होना जायज भी है. वो केजरीवाल जो लालू यादव से मिलना तो दूर उनके साथ दिखना भी अपनी शान के खिलाफ समझते थे. वही केजरीवाल लालू के बेटे का स्वागत करते नज़र आए और मुलाकात के बाद ये भी कहा कि “इस वक्त देश बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा है. आजादी के बाद की सबसे भ्रष्ट सरकार आज देश के अंदर है इसलिए ये बहुत जरूरी है कि सभी विपक्षी पार्टी एक साथ आकर केंद्र के अंदर सरकार बदले और ऐसी सरकार आनी चाहिए जो देश को विकास दे सके”
ऐसे में बीजेपी नेता तीर तो चला रहे हैं लेकिन उसकी धार पुरानी ही है. वो अब भी नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा और कांग्रेस की डूबती नैय्या का जिक्र कर ही विपक्ष और नीतीश पर वार कर रहे हैं. ऐसे में ये तो साफ है कि फिलहाल विपक्ष का पलड़ा भारी है और बीजेपी को अपने अकेले पड़ जाने का डर भी सता रहा है.

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