Friday, November 22, 2024

Bihar caste survey पर बिहार सरकार की बड़ी जीत, HC ने जातीय सर्वेक्षण को चुनौती देनेवाली याचिकाएं खारिज की

पटना :  जातीय जनगणना caste survey को लेकर आज पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए जातीय सर्वेक्षण caste survey को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है.

caste survey पर पटना हाइकोर्ट का आदेश

हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद अब बिहार में एक बार फिर से जातीय सर्वेक्षण caste survey जारी रहेगा. सरकार का कहना है कि जातीय जनगणना नही बल्कि जातीय सर्वेक्षण है. इसके जरिये सरकार को जन कल्याणकारी योजनाओं के निष्पादन करने में मदद मिलेगी.बिहार सरकार के हलफनामे के मुताबिक जातीय सर्वेक्षण का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है .

 बिहार सरकार की हाइ कोर्ट में दलील

आपको बता दें कि बिहार सरकार की जातीय सर्वेक्षण कराने के फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में 6 याचिकाएं डाली गई थी. इन याचिकाओं में सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग की गई थी. वहीं राज्य सरकार ने अपनी दलील में कहा कि  सरकार की योजनाओं का फायदा उठाने के लिए जनता अपनी जाति बताने के लिए आतुर है.

बिहार सरकार ने अपनी दलील में आरक्षण का हवाला देते हुए कहा कि पिछले नगर निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में सही जातिगत संख्या की जानकारी ना होने के कारण उन्हे आरक्षण नहीं मिल पाया था.जबकि ओबीसी को 20 प्रतिशत , SC को 16 प्रतिशत और ST को एक प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जातीय आधार  पर 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है. बिहार सरकार ने कहा कि सरकार 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है इसलिए भी जातिय जनगणना जरुरी है .

राज्य को सर्वेक्षण  का अधिकार- बिहार सरकार की दलील

सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने अपनी दलील में कहा कि जातियां समाज का हिस्सा हैं. हर धर्म में अलग अलग जातियां होती हैं.यहां तक कि शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नियुक्ति के लिए जाति संबंधी सूचना दी जाती है. सरकार की तरफ से किसी पर जबरन इस सर्वेक्षण में शामिल होने का दवाब नहीं है. सरकार के वकील ने अदालत में सरकार के अधिकार की बात करते हुए कहा कि ऐसा सर्वेक्षण सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. राज्य सरकार जन कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने के लिए ऐसा सर्वेक्षण करवा सकती हैं.

 2023 में बिहार में शुरु हुई थी जातीय जनगणना

बिहार सरकार ने 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 में सभी पार्टियों की सहमति से जातीय जणगणना के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया था. हलांकि बाद में केंद्र की बीजेपी सरकार ने इस जातीय सर्वेक्षण का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जनगणना पर रोक लगाने की मांग थी.

 पिछड़ी जाति (OBC) जनगणना पर बिहार सरकार का तर्क

बिहार सरकार ने बहस के दौरान ये कहा कि 1951 से अब तक SC-ST जातियों का डेटा जारी किया जाता है लेकिन पिछड़ी जाति  का डेटा जारी नहीं होता है, इसलिए ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि पिछड़ी जातियों की सही संख्या क्या है. 1990 में तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने 1931 की जनगणना के आधार पर दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल कमिशन) की सिफारिश को लागू किया, जिसके मुताबिक देश में OBC संख्या देश में लगभग 52 प्रतिशत  होने का अनुमान लगाया गया था.  इस के आधार पर देश में पिछड़ी जातियों (OBC) को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया.  जानकारों के मुताबिक देश में SC-ST को जो आरक्षण मिल रहा उसका आधार उनकी जनसंख्या है लेकिन ओबीसी के  आरक्षण के  लिए ऐसा कोई आधार नहीं है.

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