जोशीमठ में भूधंसाव का डर हिमालय पर बसे सभी लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है. सिर्फ उत्तराखंड के दूसरे इलाकों से नहीं अब तो कश्मीर के डोडा से भी भूधंसाव और घरों में दरार पड़ने की खबरें आने लगी है. ऐसे में लद्दाख को बचाने और वहां के संवेदनशील पर्यावरण की ओर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक कभी उपवास रख रहे हैं तो कभी धारा 370 और उग्रवाद की दुहाई देकर प्रधानमंत्री मोदी तक लद्दाख के मन की बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें- इनकम टैक्स की न्यू रिजीम में टैक्स रेट्स तो कम हैं लेकिन आपकी सेविंग्स का क्या होगा?
विरोध की आवाज़ दबाने से उग्रवाद के बीज पनप सकते हैं-वांगचुक
लद्दाख में सब ठीक नहीं है, All is not well in Ladakh. लद्दाख की मन की बात. इसी शीर्षक के साथ असल जीवन के फुनसुख वांगडू, आमिर खान की फिल्म 3 इडियट्स के किरदार को इंस्पायर करने वाले सोनम वांगचुक ने एक वीडियो पोस्ट कर प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है. सोनम वांगचुक 26 जनवरी से 1 फरवरी तक लद्दाख के माइनस 20 डिग्री तापमान में खुले आसमान के नीचे लद्दाख को बचाने के लिए 5 दिन के उपवास पर भी बैठे. इस दौरान उन्होंने अपने विरोध-प्रदर्शन को दबाने और खत्म करने के लिए सरकार पर गैरकानूनी तरीके अपनाने का आरोप भी लगाया. अलग-अगल अखबारों को दिए अपने बयान में सोनम वांगचुक ने कहा- जब मैं खारदुंग ला में उपवास करना चाहता था, तो मुझे घर में नजरबंद कर दिया गया. चार दिन पहले लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एल-जी) लेह के एक स्टेडियम में आइस हॉकी प्रतियोगिता के समापन पर पुरस्कार वितरण समारोह के लिए आए थे. उन्हें देखते ही बच्चे छठी अनुसूची के नारे लगाने लगे. जिसपर बच्चों को पुलिस थाने ले गई. वांगचुक ने पूछा, क्या अब सार्वजनिक रूप से छठी अनुसूची कहना अपराध हो गया है? क्या ऐसा करने पर पुलिस नाराज़ और बेरोज़गार बच्चों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा करेगी. उन्होंने दावा किया कि सरकार ने एक पत्रकार पर सिर्फ इसलिए मामला दर्ज कर दिया क्योंकि उसने छठी अनुसूची के पक्ष में एक संदेश पोस्ट किया था. वांगचुक का कहना है कि सरकार अगर इसी प्रकार विरोध की आवाज़ को दबाने की कोशिश करेगी तो ऐसे में बेरोज़गार लद्दाख का युवा अलग-थलग पड़ जाएगा और हो सकता है इस दमनकारी नीति से सरकार के खिलाफ उसके मन में उग्रवाद का बीज पनप जाए.
दिल्ली-मुंबई से अलग है लद्दाख के युवा की लड़ाई-वांगचुक
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वांगचुक ने कहा-डर यह नहीं है कि लोग भारत के खिलाफ हो जाएंगे, डर यह है कि भारत के लिए प्यार कम हो जाएगा और यह उस देश के लिए खतरनाक है जो चीन का सामना कर रहा है. उन्होंने कहा मुंबई और दिल्ली के लोगों के विपरीत, यहां के लोगों ने युद्ध के दौरान कुलियों के रूप में काम करके और भोजन और रसद पहुंचा कर सेना की मदद की है. ऐसे में उनकी आवाज़ को दबाना सरकार को महंगा पड़ सकता है.
धारा 370 से बची हुए थे हमारी ज़मीन और संसाधन-वांगचुक
अबतक ये तो आप समझ गए कि वांगचुक सरकार के रवैये से नाराज़ हैं. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर लद्दाख के लोगों की ऐसी क्या मांग है जिसे लेकर वांगचुक कह रहे हैं कि अगर पूरी नहीं हुई तो लद्दाख के युवाओं के मन में उग्रवाद के बीज पनप जाएंगे. तो ये जान लीजिए कि लद्दाख के लोग भी बेरोज़गारी से परेशान हैं. जब 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया गया था और उसके दो हिस्से कर दिए गए थे. तब सोनम वांगचुक ने सरकार के इस कदम की प्रशंसा करते हुए उम्मीद जताई थी कि अब लद्दाख में इंडस्ट्री आएंगे. यहां रोजगार पैदा होगा और यहां के युवा खुशहाल होंगे. लेकिन धारा 370 हटने के तीन साल बाद वांगचुक को उसकी याद सताने लगी है. वो कह रहे हैं कि इस केंद्र शासित प्रदेश से जम्मू-कश्मीर के साथ धारा 370 में हम सुरक्षित थे. हमारी ज़मीन सुरक्षित थी. हमारा पर्यावरण सुरक्षित था. वांगचुक का अनशन लद्दाख के ग्लेशियरों, पहाड़ों, भूमि और लोगों की रक्षा करने और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए था. वांगचुक चाहते हैं कि लद्दाख में इंडस्ट्री तो आए लेकिन लद्दाख की ज़मीन पर उसके अपने लोगों का नियंत्रण हो. वो पहाड़ों पर सोलर पैनल लगाने के पक्ष में तो हैं लेकिन खनन और बेतहाशा निर्माण का विरोध कर रहे हैं. वो पांच महीने में छह लाख पर्यटकों के लद्दाख आने को यहां के इको-सेंसिटिविटी के लिए खतरनाक बता रहे हैं.
उनका कहना है कि कल्पना कीजिए 5 महीनों में अगर 5 वर्ग किमी में छह लाख पर्यटकों के आने से इको-सेंसिटिविटी को नुकसान हो रहा है तो उद्योग और खनन इसका क्या हाल करेंगे.
पीएम मोदी के प्रशंसक रहे है सोनम वांगचुक
वांगचुक का डर वो ही है जो उत्तराखंड के लोगों का है. विकास की चाहत में विनाश का खेल जो उत्तराखंड के लोगों ने देखा उसे वांगचुक लद्दाख में दुहराना नहीं चाहते. वो विकास और रोजगार तो चाहते हैं लेकिन पर्यावरण की कीमत पर नहीं. वांगचुक के 1 फरवरी को उपवास तोड़ने के दौरान वहां 2000 लोगों का मौजूद रहना भी ये दिखाता है कि लद्दाखी वांगचुक की बात से सहमत हैं. ऐसा नहीं है कि वांगचुक बीजेपी या प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी हैं. वो तो कई मौकों पर मोदी जी और उनकी सरकार की तारीफ भी कर चुके हैं. 29 नवंबर, 2021 को लेह हवाई अड्डे को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए सरकार ने जो पहल की है उसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया था. वांगचुक ने अपने ट्वीट में कहा था, “धन्यवाद, नरेंद्र मोदी जी. इससे ज्यादा संवेदनशील सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती. #LehAirport को बचाने की अपील करने वाले मेरे ट्वीट के बाद, उप सचिव एम घिल्डियाल के नेतृत्व में PMO की एक टीम लेह में उतरी, नए हवाई अड्डे का निरीक्षण किया और #CarbonNeutral लद्दाख का जवाब खोजने के लिए हमारी #HIAL टीम के साथ 4 घंटे बिताए.
पीएम मोदी को करना चाहिए सोनम वांगचुक से संवाद
तो फिर आज ऐसा क्या हो गया कि उन्हीं सोनम वांगचुक की बात केंद्र सरकार नहीं सुन रही है. क्या सरकार पर इंडस्ट्री का इतना दबाव है कि वो पर्यावरण को लेकर चिंता करना ही नहीं चाहती? या फिर उसकी सस्टेनेबल विकास की समझ में खोट है? क्या विपक्ष का ये आरोप की सरकार सूट-बूट वालों की है और प्रधानमंत्री मोदी अपने दोस्तों के लिए ही काम करते हैं, यही सच है क्या? जब दुनिया सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर मुड़ रही है ऐसे में भारत सरकार को विकास की ऐसी क्या जिद है कि वो स्थानीय लोगों की बात सुनना और समझना नहीं चाहती? क्या जोशीमठ का धंस जाना सरकार के लिए चेतावनी नहीं है? जब सरकार बजट में 25 साल का रोड मैप बनाती है तो 2 से 3 साल में पहाड़ों का विकास करने पर क्यों आमादा है? सवाल कई हैं लेकिन जवाब एक ही है. प्रकृति अपने नियम खुद बनाती है. उससे ज्यादा छेड़छाड़ की जाएगी तो वो विनाश की ऐसी गाथा लिख जाएगी जो इंसान के लिए सोच पाना भी मुश्किल होगा.
ऐसे में सरकार को सोनम वांगचुक से बात करनी चाहिए, क्योंकि बातचीत से ही रास्ता निकल सकता है. हर विरोध को देशद्रोह समझ लेना देश के लिए ही खतरनाक है.