Monday, July 7, 2025

अफसरशाही की भाषा कैसे हो गई अभद्र? एलीट माने जाने वाले आईएएस कैसे देने लगे हैं मां-बहन की गाली?

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बिहार की नौकरशाही में अभद्र भाषा का मुद्दा आजकल खूब छाया हुआ है. पहले IAS अधिकारी केके पाठक के गाली गलौच का वीडियो वायरल हुआ था, और अब होमगार्ड एंड फायर सर्विसेज की डीजी शोभा अहोटकर पर होमगार्ड के IG विकास वैभव ने गाली गलौच और बिहारी बोल बेइज्जत करने का आरोप लगाया है. बिहार के कड़क आईपीएस विकास वैभव की बिहारी अस्मिता “बिहारी कामचोर” और “bloody IG” कहें जाने से चोटिल हुई है.

मेरे साथ गंभीर अप्रिय घटनाएं घट हो सकती हैं

बिहार का एक काबिल आईपीएस अधिकारी सरकार से गुहार लगा रहा है कि उसे तत्काल होमगार्ड आईजी के पद से कार्यमुक्त कर दिया जाए. विकास वैभव ने बिहार के गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखा है कि मेरा अब एक भी दिन उनके (डीजी शोभा अहोटकर) अधीन काम करना गंभीर खतरे की घंटी से कम नहीं है. मुझे आशंका है कि वहां काम करने पर कार्य स्थल पर ही मेरे साथ गंभीर अप्रिय घटनाएं घट सकती हैं. मुझे ऐसी क्षति पहुंचाई जा सकती है जो मेरे लिए अपूर्णीय हो. इसलिए मुझे वहां से मुक्त कर किसी दूसरी जगह पर तैनात किया जाए.

हलांकि इसके जवाब में गृह विभाग ने IPS विकास वैभव को नोटिस भेजा है. गृह विभाग ने विकास वैभव से पूछा है कि आप सरकारी नौकरी में रहते हुए “लेट्स इंस्पायर बिहार “ जैसी संस्था और सोशल मीडिया पर क्यों हैं और इसे कैसे चला सकते हैं. इससे पहले आईजी विकास वैभव को विभागीय नोटिस भी जारी किया गया था.

यानी सरकार का रवैया आईजी विकास वैभव की तरफ उदासीन ही है. उनकी गाली गलौच की शिकायत पर कुछ कार्रवाई तो दूर उल्टा उनपर ही नए आरोप लगाये जा रहे हैं.

कौन है आईपीएस विकास वैभव?

इससे पहले कि आप विकास वैभव के बारे में कोई राय बनाएं उससे पहले एक बार विकास वैभव के बारे में आपको कुछ जानकारी दे देते हैं. आईपीएस विकास वैभव भागलपुर, गया, रोहतास, दरभंगा में बतौर एसपी काम कर  चुके हैं. इसके अलावा दिल्ली में एनआईए का भी हिस्सा रहे हैं. उनका नाम काफी तेज तर्रार आईपीएस अफसरों में शुमार होता है. विकास वैभव से जुड़े कई दिलचस्प किस्से भी हैं जो इनकी काम के प्रति समर्पण और निडर होने के सबूत भी हैं.

आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट, विकास वैभव 2003 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. विकास वैभव को UPSC परीक्षा में पूरे भारत में 60वां स्थान प्राप्त हुआ था. विकास वैभव के बारे में कहा जाता है कि बड़े से बड़े अपराधी उनसे खौफ खाते हैं. उनके बारे में ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि जब 2005 में नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब उनके सामने प्रदेश में अपराधियों को ठिकाने लगाने की बड़ी चुनौती थी. ऐसे दौर में जब बिहार में जंगल राज की चर्चा आम थी तब 2006 में पश्चिम चंपारण के बगहा में विकास वैभव की तैनाती हुई, वह एक ऐसा दौर था जब उत्तर बिहार का ये क्षेत्र मिनी चंबल के नाम से जाना जाता था. यानी इसे डकैतों का इलाका कहा जाता था जहां अपराध को अंजाम देकर यहां से लगी नेपाल की सीमा का फायदा उठा कर डकैत भाग जाते थे. ऐसे में अपनी सूझ बूझ से आईपीएस विकास वैभव ने न सिर्फ इस इलाके को अपराधियों से मुक्त करवाया बल्कि डकैतों का आत्मसमर्पण भी करवाया था. विकास वैभव अपने काम में कितने ईमानदार थे इसका एक सबूत अब भी बगहा में मौजूद है. विकास के काम से खुश जनता ने तब इस इलाके के एक चौक का नाम उनके नाम पर रख दिया.

बगहा के बाद विकास फिर साल 2008 में सुर्खियों का हिस्सा बने. विकास को 2008 में सासाराम के रोहतास का एसपी बनाया गया था. रोहतास का फोर्ट उस समय नक्सलियों के कब्जे में था लेकिन एसपी साहब की सूझबूझ और जांबाज़ी ने वहां से नक्सलियों को खदेड़ दिया और रोहतास किले पर पहली बार तिरंगा झंडा फहराया गया. वैसे 2008 से 2011 के बीच रोहतास में रहने के दौरान उनकी जान पर भी बन आई थी जब एक बार सीधे नक्सलियों के साथ आमना-सामना होने पर गोली उनके सिर के ऊपर से निकल गई थी. इस दौरान उनके साहसिक कारनामों की चर्चा आम थी.

विकास वैभव अपनी एनआईए में पोस्टिंग के दौरान भी काफी चर्चा में रहे. साल 2013 में पटना के गांधी मैदान बम बलास्ट से लेकर बोधगया ब्लास्ट तक एनआईए की जांच टीम की अगुवाई करने से लेकर कई दूसरी आतंकी घटनाओं की गुत्थी सुलझाने का सेहरा भी उनके सर पर बंधा है.

एनआईए से लौट कर जब विकास वापस बिहार आए तो 2015 में उन्होंने फिर सुर्खियां बटोरी, 2015 में पटना के एसएसपी बनने के अगले दिन ही उन्होंने बाहुबली विधायक अनंत सिंह को गिरफ्तार किया था.

अब तक तो आप जान ही गए होंगे कि अपने सीनियर की गाली-गलौज से आहत होने वाला ये आईपीएस अफसर असल में एक बहुत बहादुर पुलिस अधिकारी है. इसके अलावा आईपीएस विकास वैभव एक प्रेरक वक्ता, इतिहास के जानकार और साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं. वो अपनी मुहिम “लेट्स इंस्पायर बिहार “ को लेकर सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव भी रहते हैं. उनकी ये मुहिम बिहार के गरीब और कमजोर छात्रों तक शिक्षा पहुंचाने से जुड़ी हुई है.

शोभा अहोटकर को विकास वैभव से क्या परेशानी है

सवाल ये है कि आखिर इतने बेहतरीन पुलिस अधिकारी से किसी को क्या परेशानी हो सकती है. उनकी सीनियर अधिकारी शोभा अहोटकर आखिर विकास वैभव के पीछे क्यों पड़ी है.

आपको बता दें शोभा अहोटकर मराठी हैं और विकास के अलावा होमगार्ड विभाग के कई कर्मचारी उनपर दबी ज़बान में बिहारी कह कर अपमानित करने का आरोप लगा चुके हैं. पुलिस उप महानिरीक्षक विनोद कुमार के मामले का तो विकास वैभव ने अपने विभागीय नोटिस के दिए जवाब में जिक्र भी किया है. जिनके बारे में बताया गया है कि वो मैडम के गुस्से से इतना घबरा गए थे कि उनकी डांट सुनकर ऑफिस में ही बेहोश हो गये थे और लगभग 45 मिनट के बाद ही उन्हें होश आया था.

यानी डीजी शोभा अहोटकर पर गाली गलौच के आरोप सिर्फ विकास वैभव ही नहीं लगा रहे हैं बल्कि कई दूसरे कर्मचारी भी इसकी गवाही दे रहे हैं. ऐसे में दो सवाल उठते हैं. पहला सवाल क्या विकास वैभव का अपमान वाली भाषा को बर्दाश्त नहीं करना कोई अपराध है. दूसरा सवाल ये है कि बिहार में नौकरी के दौरान ही कोई अफसर अपने मातहतों को बिहारी बोल कर अपमानित करता है तो क्या बिहारी अस्मिता के लिए आवाज़ उठाना गलत है.

सरकार विकास वैभव के साथ क्यों नहीं है

सवाल सरकार के उदासीन रवैये को लेकर भी उठते हैं. एक जांबाज अधिकारी अगर अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है तो क्या सरकार को उसकी बात सुननी नहीं चाहिए.

ऐसा कैसे हो सकता है कि देश की सबसे बेहतरीन सिविल सर्विस परीक्षा पास कर…..देश की सबसे अच्छी ट्रेनिंग पाने वाली एक अधिकारी की ज़ुबान इतनी गंदी है कि वो अपने जूनियर्स से तमीज़ से बात भी नहीं कर सकती है. एक अधिकारी जो देश की सेवा की शपथ लेती है उसके मन में एक राज्य को लेकर ये धारणा है कि यहां के लोग कामचोर हैं. एक महिला अधिकारी अपने जूनियर की पत्नी के बारे में अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल कैसे कर सकती है. कुल मिलाकर विकास वैभव के ये आरोप गंभीर हैं.

IAS अधिकारी केके पाठक के मामले में जैसा वीडियो सामने आया उसके बाद इन आरोपों को बेबुनियाद कहना भी गलत होगा. हां विकास का ट्वीट कर अपने सीनियर पर आरोप लगाना भी सही नहीं कहा जा सकता है लेकिन उनके सर्विस रिकॉर्ड को देख कर, उनके बिहार में किए गए शानदार काम को देख कर, उनकी इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है. उनके आरोपों के जवाब में उन्हें सोशल मीडिया पर एक्टिव होने और समाज कल्याण की मुहिम चलाने के लिए सवाल पूछना सिर्फ मामले को भटकाने के जैसा है.

क्या बिहारी अस्मिता की बात करना गलत है

सवाल ये है कि मुंबई में बिहारियों को भैय्या कह कर पीटने पर नाराजगी जताने वाली बिहार सरकार बिहार में ही अपने अधिकारी के अपमान पर चुप क्यों है. पहले ही कहा जाता है कि बिहार के प्रतिभाशाली लोग बिहार को छोड़ दूसरे राज्यों और देशों में बसना पसंद करते हैं. उन्हें बिहार में सम्मान, मौके और प्रोत्साहन की कमी के चलते दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. ऐसे में सिर्फ एक सर्विस प्रोटोकॉल के नाम पर अपने प्रतिभावान अफसर के साथ खड़ा नहीं होना क्या बिहार सरकार और बिहार के आईएएस-आईपीएस लॉबी की बिहारी अस्मिता को लेकर उदासीन होने का सबूत नहीं है.

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