बिहार के सीएम मंगलवार रात (11 अप्रैल 2023) को दिल्ली पहुंच गए. लंबे समय से मीडिया लगातार नीतीश कुमार से पूछ रहा था कि आप दिल्ली कब जाएंगे और नीतीश कहते थे की समय आएगा तो जाएंगे. तो क्या अब सही समय आ गया है. क्या नीतीश कुमार ने 25 फरवरी को जो कहा था कि उन्हें कांग्रेस के जवाब का इंतज़ार है. क्या कांग्रेस का वो जवाब मिल गया है.
लालू -नीतीश ने रोका था पीएम मोदी का विजय रथ
2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी भारी बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज़ हुए थे. जब एक के बाद एक राज्य कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दलों के हाथों से निकलकर बीजेपी के हाथ जा रहे था. तब बिहार में मोदी के विजय रथ को नीतीश कुमार और लालू यादव ने रोका था. 2015 विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की पीक पॉपुलैरिटी के दौर में महागठबंधन ने 178 सीटें अपने नाम की तो एनडीए के खाते में महज 58 सीटें आईं थी. आप सोच रहे होंगे कि हम 2023 में जब 2024 और 25 की बात होनी चाहिए हम 2015 में क्यों अटक गए. तो संविधान के रचेता बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था जो कौम अपना इतिहास तक नहीं जानती है, वे कौम कभी अपना इतिहास भी नहीं बना सकती है. यानी इतिहास की गोद में ही भविष्य के बीज होते हैं. तो इतिहास बताता है कि जब नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ होते हैं तो वो बीजेपी को बड़ा झटका दे जाते हैं. ये एक नहीं कई बार नीतीश बिहार में बीजेपी को दिखा भी चुके हैं कि उनके साथ के बिना बीजेपी का बिहार में कुछ हो नहीं सकता. अब वो ही नीतीश दिल्ली में हैं. तो क्या नीतीश ने इस बार पीएम मोदी को उखाड़ फेंकने का प्लान तैयार कर लिया है.
मोदी के खिलाफ क्या प्लान लेकर राहुल से मिले नीतीश कुमार
बुधवार को दिल्ली में ये चर्चा आम है कि नीतीश विपक्षी मोर्चे के संयोजक बनाए जाएंगे. नीतीश कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ हुई बैठक में कांग्रेस की तरफ से मल्लिकाअर्जुन खड़गे के साथ राहुल गांधी भी मौजूद थे. इस बैठक में सीएम नीतीश कुमार के साथ बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह , कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, आरजेडी नेता मनोज झा शामिल थे.
चर्चा आम है कि यूपीए संयोजक का पद जो अब तक सोनिया गांधी के पास था अब उसकी कमान नीतीश कुमार को सौंप दी जाएगी. तो सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस नीतीश को मोदी के खिलाफ खड़ा करने का प्लान कर रही है. क्या राहुल गांधी सत्ता की दौड़ से पीछे हटकर नीतीश कुमार को कमान सौंपने वाले हैं.
क्या टीएमसी, बीआरएस, केजरीवाल मानेंगे नीतीश को अपना नेता
सवाल ये भी है कि अगर ऐसा होने वाला है तो फिर तेलंगाना के केसीआर, तमिलानाडु के एम के स्टालिन, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और आप के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को छोड़ कांग्रेस नीतीश कुमार के नाम पर ही क्यों राजी हो गई. नीतीश कुमार का इतिहास तो पलटू कुमार का रहा है. वो बिहार में बीजेपी और आरजेडी के बीच पेंडुलम की तरह पाला बदलते रहे हैं. सवाल ये भी है कि आखिर इस बार बीजेपी ने नीतीश को ऐसा कौन सा जख्म दे दिया कि नीतीश कुमार ने बिहार बीजेपी को नहीं सीधे मोदी को ही अपना निशाना बना लिया. क्या अमित शाह के वो बोल कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो गए हैं, अब बीजेपी को ही भारी पड़ने वाले हैं. तो चलिए पहले बात करते हैं उन प्वाइंट की जो नीतीश को मोदी के खिलाफ सबसे मज़बूत उम्मीदवार बनाते हैं.
मोदी के किन मामलों में बेदाग है नीतीश कुमार
जैसा कि आप जानते हैं बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के दो सबसे बड़े आरोप विपक्ष पर होते हैं, एक भ्रष्टाचार और दूसरा परिवारवाद. जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो इन दिनों पीएम मोदी को खुद भ्रष्टाचार ने घेर रखा है. कोरोना के समय बनाया गया पीएम केयर फंड हो या फिर अडानी कंपनियों का स्कैम. पीएम एक का भी जवाब नहीं दे पा रहे हैं. और अब उनके ही नेता और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने भी उनपर 300 करोड़ की रिश्वत ऑफर करने का आरोप लगा दिया है. वहीं दूसरी तरफ बतौर मुख्यमंत्री बिहार में सबसे लंबी पारी खेलने वाले नीतीश कुमार. जो केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं, फिर भी अब तक बेदाग हैं. उनको न कभी सीबीआई ने तलब किया है न ईडी ने. ऐसे में भ्रष्टाचार के मामले में वो अब मोदी से ज्यादा बेदाग हैं.
सांप्रदायिकता और परिवारवाद में मोदी से साफ है नीतीश कुमार की छवि
बात अगर परिवारवाद की करें तो यहां भले ही पीएम मोदी का कोई परिवार न हो लेकिन उनका अपनी पत्नी को छोड़ देना उन्हें परिवार के प्रति काफी असंवेदनशील साबित करता है. वहीं नीतीश कुमार का अपनी पत्नी से प्रेम और उनके बेटे-भाई-भतीजे सभी का राजनीति से दूर रहना उन्हें यहां भी मोदी पर अपर हैंड देता है.
अब बात करते हैं सांप्रदायिकता के आरोप की. तो जहां मोदी की छवि कट्टर हिंदूवादी नेता की है वहीं नीतीश कुमार के दामन पर अल्पसंख्यकों के खून के एक भी दाग नहीं है. वो धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ यहां भी प्रधानमंत्री मोदी को मात देते हैं.
ओबीसी वोट बैंक के भी मोदी से ज्यादा मज़बूत दावेदार है नीतीश कुमार
अब चलिए बात जाति की कर लेते हैं, तो प्रधानमंत्री मोदी खुद को ओबीसी बताते हैं. हलांकि उनके ओबीसी होने पर विपक्ष हमेशा सवाल उठाता रहा है. जबकि कुर्मी जाति से आने वाले नीतीश कुमार के ओबीसी होने पर कोई शक नहीं है. इसके अलावा 2019 में ओबीसी आरक्षण को 27 से 56 प्रतिशत करने के पक्ष में बोल कर नीतीश कुमार ओबीसी समाज के चहेते भी बन गए थे. इतना ही नहीं नीतीश कुमार ने बिहार में जो जाति जनगणना शुरु करवाई है उससे वो वैसे ही पिछड़े और ओबीसी समाज के हितैषी खुद को साबित कर चुके हैं.
2020 में अमित शाह को पटखनी दे चुकें है नीतीश कुमार
अब बात नीतीश की कूटनीति की बात करते हैं . तो 2020 बिहार लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में जैसे बीजेपी ने साम-दाम दंड-भेद का इस्तेमाल कर नीतीश और उनकी पार्टी जेडीयू को खत्म करने की कोशिश की थी. उसके जवाब में बीजेपी को बिहार की सत्ता से बाहर कर नीतीश साबित कर चुके हैं कि वो अमित शाह से भी बड़े चाणक्य हैं. उनको कमतर आंकना बेवकूफी होगी.
क्या पलटू चाचा विश्वास करना विपक्ष को महंगा तो नहीं पड़ेगा
ये तो थे नीतीश कुमार के प्लस प्वाइंट्स लेकिन नीतीश कुमार के कुछ माइनस पॉइंट्स भी तो हैं. जैसे कि क्या अरविंद केजरीवाल और ममता बैनर्जी नीतीश को स्वीकार करेंगे. क्या यूपी में अखिलेश यादव और मायावती मानने को तैयार होंगे. केसीआर जो अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदल कर भारतीय राष्ट्र समिति कर चुके हैं वो अपने सपनों को तिलांजलि देकर नीतीश का नेतृत्व स्वीकार करेंगे.
और इन सब से भी ऊपर है एक सवाल कि पलटू चाचा पर कांग्रेस जो भरोसा कर रही है उसपर वो खरे उतरेंगे क्या. कहीं आखिरी मौके पर नीतीश कुमार बिहार के हित का हवाला देकर विपक्ष को ठेंगा तो नहीं दिखा देंगे.
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