बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी. अगर नहीं सुनी या आपको इसका मतलब नहीं पता तो अब समझ आ जाएगा. ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के बाद से अपने देश में अजब बहस चल रही है. पक्ष—विपक्ष इस बात पर राजनीतिक बयानबाजी में लगा है कि क्या देश में एक मुसलमान प्रधानमंत्री बन सकता है. मंगलवार का दिन इस बहस में चिदंबरम और शशी थरूर के नाम रहा तो बुधवार को ओवैसी बनाम शाहनवाज हुसैन चल रहा है.
बुधवार को AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बयान दे दिया कि वो अपनी जिंदगी या उसके बाद एक हिजाब वाली महिला को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं.
मैं भारत की प्रधानमंत्री के रूप में हिजाब वाली महिला को देखना चाहता हूं: AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (25.10)
(वीडियो सोर्स-AIMIM) pic.twitter.com/dEJoaGqitm
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 26, 2022
ओवैसी के इस बयान को बीजेपी के शाहनवाज हुसैन ने लपक लिया, BJP नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि “वो (ओवैसी) जानबूझकर इस तरह की बयानबाजी करते हैं ताकि उनके ऊपर दिनभर डिबेट हो और वो चैनल की हेडलाइन बन जाएं. वो चाहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव पैदा हो”
लेकिन ओवैसी का मकसद समझने के बाद भी बीजेपी नेता ने अपनी बात जारी रखी. शाहनवाज हुसैन ने कहा कि “आज अल्पसंख्यक समाज को सब कुछ उपलब्ध कराया जा रहा है चाहे वो कोरोना का टीका हो,अनाज, आयुष्मान भारत कार्ड या पक्के मकान हों, उन्हें सब दिया जा रहा है. मुस्लिमों के लिए भारत से अच्छा देश और कोई नहीं है लेकिन ओवैसी जी को ये सब नहीं दिखता उन्हें सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के बीच में तनाव पैदा करना आता है. जिस तरह की भाषा वो बोल रहे हैं वो दुर्भाग्यपूर्ण है ऐसा उन्हें नहीं बोलना चाहिए. उन्हें मालूम होना चाहिए कि पूरी दुनियां में अगर कहीं अल्पसंख्यक वर्गों को हक़ और अधिकार मिला है तो वो हमारा देश भारत है”
ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजनेता और आम लोग इस बहस में शामिल हैं. जम्मू-कश्मीर के चर्चित आईएएस शाह फैसल ने भी इस मामले में अपने विचार रखने के लिए ट्वीटर का सहारा लिया. उन्होंने कहा कि देश में मुसलमानों को बराबरी का हक़ मिल रहा है और इसका उदाहरण मैं ख़ुद हूं, आईएएस बनने के बाद मैंने अपना पद छोड़ जो ग़लती की उसे इसी सरकार ने सुधार कर मुझे मेरे पद पर बहाल कर दिया.
It's possible only in India that a Muslim youngster from Kashmir can go on to top the Indian Civil Service exam, rise to top echelons of the government, then fall apart with the government and still be rescued and taken back by the same government. Rishi Saunak's appointment 1/4
— Shah Faesal (@shahfaesal) October 25, 2022
मंगलवार को क्या हुआ था
सोमवार को ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की ख़बर आते ही ट्वीटर पर लोग खुशी का इज़हार करने लगे. एक भारतीय मूल के शख्स के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर अलग-अलग मीम भी बनने लगे. लोग कहने लगे “अंग्रेजों ने हमें गांधी के रुप में Father of nation (राष्ट्रपिता) दिया और अब 75 साल बाद हमने उन्हें ऋषि सुनक के रुप में son-in-law (दामाद) दे दिया है”. मीम के साथ-साथ सोशल मीडिया पर ऋषि सुनक के पूजा पाठ वाले वीडियो भी ट्रेंड करने लगे. बस फिर क्या था सोशल मीडिया की ये मस्ती गंभीर बहस में बदल गई. विवाद ये शुरु हुआ कि क्या भारत में भी अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री बन सकता है. विवाद को जन्म दिया शशि थरूर और पी चिदंबरम ने जिन्होने ट्वीट के ज़रिए सवाल किया की क्या भारत में ऐसा हो सकता है. ऐसा मतलब अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री. पी. चिदम्बरम ने अपने tweet में लिखा “पहले कमला हैरिस, अब ऋषि सुनक. यूएस और यूके के लोगों ने अपने देशों के गैर-बहुसंख्यक नागरिकों को गले लगा लिया है और उन्हें सरकार में उच्च पद के लिए चुना है. मुझे लगता है कि भारत और बहुसंख्यकवाद का पालन करने वाली पार्टियों(भाजपा पर तंज) द्वारा सीखने के लिए एक सबक है.“
चिदम्बरम के साथ ही शशि थरूर ने भी ऐसी ही बात लिखी, थरूर ने लिखा “यदि ऐसा होता है, तो मुझे लगता है कि हम सभी को यह स्वीकार करना होगा कि ब्रितानियों ने दुनियां में कुछ बहुत ही दुर्लभ काम किया है, एक दृश्य अल्पसंख्यक के सदस्य को सबसे शक्तिशाली कार्यालय(PMO) में रखने के लिए. जैसा कि हम भारतीय इस उपलब्धि का जश्न जश्न मनाते हैं, आइए ईमानदारी से पूछें, क्या यह यहां(भारत में) हो सकता है?”
निशाना बीजेपी पर था तो जवाब भी आना ही था. बीजेपी ने पूछा क्या कांग्रेस डॉ मनमोहन सिंह को भूल गई है? BJP प्रवक्ता शहजाद जय हिंद ने दोनों नेताओं के ट्वीट को टैग करते हुए लिखा. “मुझे लगता है कि डॉ. थरूर और पी चिदंबरम ने कभी भी डॉ. मनमोहन सिंह को स्पष्ट कारणों(गांधी फैमिली की ओर इशारा) से प्रधान मंत्री के रूप में नहीं माना! जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अहमद, ज्ञानी जैल सिंह, अब्दुल कलाम भी राष्ट्रपति बने.MeritNotMinority का मापदंड होना चाहिए. दु:ख की बात है कि कांग्रेस को यह नहीं मिला.“
अभी विवाद हिंदू मुस्लिम तक ही पहुंचा था कि जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की इसमें इंट्री हो गई, उन्होंने भी एक ट्वीट कर बीजेपी पर निशाना साध दिया. उन्होंने लिखा. “यह याद रखना हमारे लिए अच्छा होगा कि यूके ने एक जातीय अल्पसंख्यक सदस्य को अपने पीएम के रूप में स्वीकार कर लिया है, फिर भी हम एनआरसी और सीएए जैसे विभाजनकारी और भेदभावपूर्ण कानूनों से बंधे हैं।”
मेहबूबा की इंट्री के साथ ही विवाद हिंदू-मुस्लिम से मुस्लिम हिंदू हो गया. बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने महबूबा के ख़िलाफ़ मोर्चा संभालते हुए सवाल किया “क्या महबूबा मुफ्ती जी! आप अपने राज्य जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगी?”
क्या सुनक के प्रधानमंत्री बनने से भारत को होगा फायदा
ऋषि सुनक जिन हालातों में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं वो कितने ख़राब हैं इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने पहले ही बयान में ब्रिटेन के लोगों को ये चेतावनी दे डाली कि आने वाले समय में वो कड़े फैसले के लिए तैयार रहें. पिछली प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने देश के ख़राब आर्थिक हालात के चलते ही इस्तीफा दिया था. इसलिए सुनक का पहला काम ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को संभालने का है. जिसका मतलब साफ है कि सुनक जो भी करेंगे इसमें ब्रिटेन के फायदा का सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाएगा. भारत या दुनिया का दूसरा कोई भी देश उनकी प्राथमिकता में नहीं होगा. अपने प्रचार के दौरान सुनक साफ कर चुके हैं कि वो एक ब्रिटिश है और उनका दिल ब्रिटेन के लिए धड़कता है. ऐसे में सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर भारत में छिड़ी बहस बेमानी लगती है. पहले ही देश में हिंदू-मुसलमान को लेकर काफी विवाद है ऐसे में अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक की ये बहस हमारे लोकतंत्र के लिए फायदेमंद नहीं है. अगर सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर खुश होना ही है तो इस बात पर हो सकते हैं कि ब्रिटेन का लोकतंत्र कितना मज़बूत है. ब्रिटेन में लोगों को आगे बढ़ने के समान अधिकार हैं. वहां की जनता के दिलों में देशी-विदेशी का कोई भेद नहीं है. लेकिन सच में देखा जाए तो ये सच नहीं है. पिछली बार लिज ट्रस के मुकाबले सुनक की हार कि बड़ी वजह सुनक का एशियाई गैर गोरा होना था. फिलहाल सुनक ब्रिटेन और कंज़र्वेटिव पार्टी की मजबूरी हैं. उनकी पारी कितनी लंबी होगी ये भी अभी तय नहीं है. ऐसे में हमारी प्राथमिकता अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने की होनी चाहिए ताकि कल को हमें किसी सुनक की जरूरत न पड़े.