Wednesday, January 22, 2025

Manipur मामले में अमेरिका ने क्यों की मदद की पेशकश ? PM ने क्यों साध ली है चुप्पी ?

मणिपुर Manipur जल रहा है. 3 मई से जुलाई आ गया लेकिन न पीएम ने उसपर कुछ कहा और न वहां जाने की ज़रुरत महसूस की. जबकि विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत दूसरी कई पार्टियों के नेता वहां होकर आ गए हैं. गृहमंत्री भी 2 दिन मणिपुर Manipur में गुजार आए. इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक भी हो गई लेकिन देश के मुखर प्रधानमंत्री चुप हैं. लेकिन शायद पीएम अब कुछ बोल दें. क्योंकि उनके मित्र देश के राजदूत ने मणिपुर Manipur में मदद करने की इच्छा जाहिर कर दी है.

Manipur को लेकर अमेरिका चिंतित

6 जुलाई यानी गुरुवार के दिन कोलकाता में अमेरिकन सेंटर में एक प्रेस वार्ता में बोलते हुए अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा है कि मणिपुर Manipur में हिंसा के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका को “मानवीय चिंताएं” हैं और यदि कहा जाए तो वह “किसी भी तरह से सहायता करने के लिए तैयार, इच्छुक और सक्षम” है. हलांकि साथ ही गार्सेटी ने यह भी कहा कि पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति भारत का आंतरिक मामला है.  राजदूत गार्सेटी ने उम्मीद जताई कि मणिपुर में शांति लौटेगी और वहां अधिक प्रगति और निवेश का मार्ग प्रशस्त होगा. गार्सेटी ने एक पत्रकार के उस सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की जिसमें पत्रकार ने पूछा था कि क्या पिछले दो महीनों में मणिपुर में जारी हिंसा, जिसमें राज्य के ईसाई अल्पसंख्यकों पर हमले और उनकी मौतें शामिल हैं, अमेरिका के लिए चिंता का विषय है.

मणिपुर भारत का आंतरिक मामला

इसके जवाब में अमेरिकी राजदूत ने कहा, “पहले मैं मणिपुर के बारे में बोलूं, यानी कि हम वहां शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. जब आप पूछते हैं कि क्या यह संयुक्त राज्य अमेरिका से संबंधित है, तो मुझे नहीं लगता कि यह रणनीतिक चिंताओं के बारे में है, मुझे लगता है कि यह मानवीय चिंताओं के बारे में है, ” गार्सेटी ने कहा, “जिस तरह की हिंसा हम देखते हैं उसमें जब बच्चे या व्यक्ति मरते हैं तो आपको इसकी परवाह करने के लिए भारतीय होने की ज़रूरत नहीं है.”  उन्होंने आगे कहा, “अगर कहा जाए तो हम किसी भी तरह से सहायता करने के लिए तैयार, इच्छुक और सक्षम हैं लेकिन हम जानते हैं कि यह एक भारतीय मामला है. हम वहां शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.

अगर देखा जाए तो अमेरिकी राजदूत ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिसपर आपत्ति जताई जाए या शर्म की जाए लेकिन इस मामले में चिंता इसलिए है कि राजदूत के बयान से ऐसा लग रहा है जैसे भारत सरकार से मणिपुर का मामला संभल नहीं रहा है. इसलिए अमेरिका मदद की पेशकश कर रहा है और वहां शांति बहाली के लिए दुआ कर रहा है.

कांग्रेस ने सरकार को घेरा

अमेरिकी राजदूत की इस टिप्पणी पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि किसी अमेरिकी दूत के लिए “भारत के आंतरिक मामलों के बारे में इस तरह का बयान देना बहुत दुर्लभ है. ” मनीष तिवारी ने अपने ट्वीट में कहा कि, “मैंने कभी किसी अमेरिकी राजदूत को भारत के आंतरिक मामलों के बारे में इस तरह का बयान देते नहीं सुना. मनीष तिवारी ने कहा कि भारत कभी भी बंदूक से होने वाली हिंसा पर अमेरिका को लेक्चर नहीं देता है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे को संसद में उठाएगी.

सरकार ने दिया जवाब

कांग्रेस के लिए अमेरिकी राजदूत का ये बयान ज़रूर आपत्तिजनक हो सकता है लेकिन सरकार ऐसा नहीं सोचती. गुरुवार को जब पत्रकारों ने गार्सेटी की टिप्पणियों के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें अमेरिकी दूत की टिप्पणी की पूरी जानकारी नहीं है और उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हम भी वहां शांति देखना चाहते हैं और मुझे लगता है कि हमारी एजेंसियां और हमारे सुरक्षा बल काम कर रहे हैं और हमारी स्थानीय सरकार इस पर काम कर रही है. बागची ने आगे कहा कि, “मुझे यकीन नहीं है कि विदेशी राजनयिक आमतौर पर भारत में आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करेंगे.”

क्यों चुप हैं पीएम

यानी न सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि उनकी पूरी सरकार मणिपुर हिंसा को लेकर गंभीर नज़र नहीं आती. मणिपुर को लेकर जब प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे के दौरान व्हाइट हाउस के पास प्रदर्शन हुआ तब भी सरकार ने उसे नज़र अंदाज ही किया. तो सवाल ये है कि क्या सरकार मान चुकी है कि मणिपुर के हालात इतने खराब हो गए हैं कि वहां शांति की उम्मीद कम ही है. क्या पीएम मणिपुर पर चुप्पी साध कर इस मुद्दे को बस टालना चाहते हैं. खासकर तब जब मणिपुर के मुख्यमंत्री इसमें चाइना और म्यांमार की साजिश होने की बात कह चुके हैं. क्या लद्दाख की तरह यहां भी चीन से सीधे भिड़ने से बचने के लिए इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली गई है.

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