Thursday, December 12, 2024

WhatsApp University : मोबाइल के बाहर भी हैं वाट्सएप विश्वविद्यालय

अशोक शर्मा
पिछले करीब दस वर्षों से भारत में वाट्सएप यूनिवर्सिटी WhatsApp University  के तो खूब चर्चे होते आये हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता था कि इसके समांतर ही देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के जरिये भी ज्ञानगंगाएं प्रवाहित हो रही है जो युवाओं को उसी तरह से दीक्षित कर रहे हैं जैसे कि वाट्सएप विवि। इसका एक उदाहरण दिल्ली में दिखलाई दिया जब देश की राजधानी से सटे ग्रेटर नोएडा के एक निजी विवि के छात्र-छात्राओं ने कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन किया।

WhatsApp University का ज्ञान किसी काम का नहीं

इस विश्वविद्यालय में पल्लवित हो रही प्रतिभाओं के बारे में शायद ही लोगों को पता चल पाता लेकिन एक न्यूज़ चैनल के पत्रकार ने इस प्रदर्शन में शामिल कुछ छात्रों के ज्ञान की जांच कर ली जो विरोध प्रदर्शन करने के लिये कांग्रेस के मुख्यालय की ओर जा रहे थे। आश्चर्य की यह बात सामने आई कि प्रदर्शन कर रहे जा रहे छात्रों में से कोई भी यह नहीं समझा पाया कि वे प्रदर्शन क्यों कर रहे थे। और तो और, उनके हाथों में जो तख्तियां थीं उनका अर्थ बतलाना तो दूर, वे उसे पढ़ तक नहीं पा रहे थे।

छात्रों को कोई जानकारी नहीं

जब पत्रकार ने युवाओं के हाथों में लगी तख्तियों पर सवाल करने शुरू किये तो पता चला कि उन्हें पता तक नहीं था कि किन मुद्दों को लेकर वे प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें केवल यह पता था कि वे कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और भाजपा के समर्थन में हैं। छात्र-छात्राओं के हाथों में जो तख्तियां थीं उनमें लिखा था- ‘पहले लेंगे आपका वोट फिर ले लेंगे मंगलसूत्र और नोट’, ‘मां-बहनों के गहनों पर नज़र न गड़ाओ’, ’70 सालों में नहीं दी दीया-बत्ती अब छीन लेंगे आधी सम्पत्ति’, ‘नो प्लेस फॉर अर्बन नक्सल’ आदि।

छात्र-छात्राएं विवादित इनहेरिटेंस टैक्स या भाजपा के कथित विकसित भारत की अवधारणा तथा वास्तविकता के बारे में कुछ भी बतला नहीं पा रहे थे। यहां तक कि कांग्रेस के जिस घोषणापत्र का वे विरोध कर रहे थे, उसे किसी ने पढ़ा तक नहीं था। जाहिर है कि वे उसके बारे में वही सब कुछ कह रहे थे जो उन्हें बताया गया था या जो वाट्सएप विवि के माध्यम से उनके मोबाइलों तक पहुंच रहा है।

WhatsApp University – जानकारी का अभाव

छात्र जो तख्तियां हाथों में लिये हुए थे, उन पर लगभग वे ही नारे लिये हुए थे जो भाजपा के होते हैं। इनमें कांग्रेस व इंडिया गठबन्धन की सरकार बनने पर लोगों का सोना और मंगलसूत्र छीन लेने की बात लिखी गयी थी। इस पर जब रिपोर्टर ने प्रश्न किये तो छात्र विषय से पूर्णत: अनभिज्ञ साबित हुए। साफ था कि उनके हाथों में ये तख्तियां पकड़ाई गयी थीं। अब यह शोध का विषय हो सकता है कि आखिर उन्हें ये नारे लिखकर किसने दिये और छात्रों से इस प्रकार का प्रदर्शन करवाने का औचित्य क्या था। फिर, क्या छात्रों की खुद की समझ इतनी भी नहीं है कि वे किसी के उकसाने पर या कहने पर ऐसा प्रदर्शन करने चले आये। निजी यूनिवर्सिटी में फीस, अधोसंरचना एवं सुविधाओं को देखें तो पता चलता है कि उसमें अच्छे-खासे खाते-पीते लोगों के बच्चे ही पढ़ सकते हैं।

राजनीतिक समझ का अभाव

अगर ऐसे शिक्षण संस्थान में पढ़ने वालों की राजनैतिक समझ ऐसी हो तो अर्द्ध शिक्षित युवाओं को बहका पाना कितना आसान है, यह भी इस प्रदर्शन को देखकर समझा जा सकता है। पिछले 10 वर्षों से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केन्द्र सरकार के दौरान युवाओं व छात्रों का जिस प्रकार से ब्रेनवाश हुआ है उसका परिणाम किस तरह की युवा पीढ़ी को पैदा कर सकता है- यह भी इस वीडियो को देखकर समझा जा सकता है। भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आईटी के जरिये जिस अज्ञानता का प्रसार किया गया है उसका यह साक्षात उदाहरण कहा जा सकता है। यह वीडियो अब खूब वायरल हो रहा है।

बीजेपी और आरएसएस के कोर वोटर

यही युवा विद्यार्थी वर्ग भाजपा-संघ का कोर वोटर है। मोदी की लोकप्रियता का आधार किस प्रकार की घृणा और विवेकहीनता पर टिकी है- यह भी इस वीडियो को देखकर जाना जा सकता है। छात्रों के साथ पत्रकार की हुई बातचीत जहां एक ओर छात्रों के सामान्य ज्ञान पर सवालिया निशान उठाती है वहीं देश की शिक्षा का स्तर क्या है- यह भी उससे जाहिर हुआ है।

बीजेपी को खुश करने की कोशिश

माना यह भी जा रहा है कि संचालकों की शह पर यह प्रदर्शन जुलूस निकाला गया था जो सम्भवत: भारतीय जनता पार्टी को खुश करना चाहते हों। ग्रेटर नोएडा में होने के नाते उत्तर प्रदेश की सरकार को भी खुश करने का इसका मकसद हो सकता है। छात्रों की राजनीति में भागीदारी में कोई बुराई नहीं है, बल्कि राजनीति में युवा शक्ति का सकारात्मक उपयोग किया जा सकता है। देश में पहले भी युवाओं व छात्रों द्वारा अनेक आंदोलन किये गये हैं जो देश के लिए परिवर्तकारी साबित हुए हैं।

मोबाइल के बाहर भी WhatsApp University

भगत सिंह इस देश के युवाओं के आदर्श हुआ करते थे और जेपी आंदोलन में युवा, छात्र नेताओं की भूमिका से सभी परिचित हैं। लेकिन शिक्षण संस्थानों द्वारा छात्रों का इस तरह से राजनैतिक इस्तेमाल किया जाना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। अगर छात्रों ने स्वस्फूर्त यह प्रदर्शन किया होता तो उन्हें निश्चित ही विषय की पूरी जानकारी होती तथा वे उन तमाम विषयों पर अधिकारपूर्वक बात करने के काबिल होते जो उनके हाथों में ली गयी तख्तियों पर लिखे हुए थे। लेकिन बुधवार को दिल्ली में निजी विवि के छात्रों के प्रदर्शन से जाहिर हो गया कि मोबाइल के बाहर भी वाट्सएप विश्वविद्यालय चलाए जा रहे हैं।

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