वैसे तो भारत के विभीन्न प्रांतों में अलग अलग किसम के मंदिर हैं. उन मंदिरों की अलग अलग कहानियां है. लेकिन आज हम जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं वो सदियों से आकर्षण का केंद्र के साथ साथ भारत के विशाल सांस्कृतिक विचारधारा का जीता जागता सबूत है. हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिर की. आज हम आपको उस मदिर से जुड़े कुछ ख़ास रहस्य और मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई कामुक मूर्तियों की असल वजह और कहानी बताएँगे कि वो मूर्तियां क्यों बनाई गई और उसका भारत के पौराणिक विचारों से क्या मेल है.
क्यों विख्यात है खजुराहो मंदिर?
विश्व पर्यटक स्थल खजुराहो वैसे तो मंदिरों के बाहर उकेरी गई कामुक कलाकृतियों के लिए जाना जाता है, लेकिन शाम ढलते ही इन मंदिरों का अलग रूप ही देखने को मिलता है. शाम होते ही जब इन मंदिरों पर ढलते सूर्य की रोशनी पढ़ती है तो ये मंदिर सोने की तरह चमकने लगते है.
खजुराहो मंदिर का रहस्य?
इस अद्भुत मंदिर का निर्माण लगभग 900 से लेकर 1330 ई. के बीच चंदेल राजाओं ने कराया था. हालांकि मंदिर निर्माण के पीछे कई इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं, लेकिन मंदिर के बाहर कामुक कलाकृतियां काम कला एवं मोक्ष को दर्शाती है. बताया जाता है, चंदेल वंश के राजाओं के शासनकाल में खजुराहो में तांत्रिक समुदाय के लोग योग और भोग दोनों को ही मोक्ष का साधन माना करते थे. खजुराहो के मंदिरों में बनीं ये मूर्तियां उनके क्रिया-कलापों की ही देन हैं.हजारों साल पहले बनाए गए यह मंदिर आज भी उसका जीता जगता सबूत है.
मान्यताएं तो ये भी है कि एक बार राजपुरोहित हेमराज की बेटी हेमवती शाम के समय झील में स्नान करने पहुंची. उस समय चंद्रदेव ने स्नान करती अति सुंदर हेमवती को देखा तो चंद्रदेव पर उनके प्रेम की धुन सवार हो गयी. उसी क्षण चंद्रदेव अति सुन्दर हेमवती के सामने प्रकट हुए और उनसे विवाह का निवेदन किया. कहा जाता हैं कि उनके मधुर संयोग से एक पुत्र का जन्म हुआ और उसी पुत्र ने चंदेल वंश की स्थापना की थी. हेमवती ने समाज के डर के कारण उस पुत्र को वन में करणावती नदी के तट पर पाला था. पुत्र को चंद्रवर्मन नाम दिया.
अपने समय मे चंद्रवर्मन एक प्रभावशाली राजा माना गया. चंद्रवर्मन की माता हेमवती ने उसके स्वप्न में दर्शन दिए और ऐसे मंदिरों के निर्माण के लिए कहा, जो समाज को ऐसा संदेश दें जिससे समाज मे कामेच्छा को भी जीवन के अन्य पहलुओं के समान अनिवार्य समझा जाए और कामेच्छा को पूरा करने वाला व्यक्ति कभी दोषी न हो.
विश्व धरोहर के रुप में घोषित इस मंदिर की मूर्तियों के अलावा मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किये गए पत्थरों के लिए भी विख्यात है. यहाँ ज्यादातर मंदिर बलुआ पत्थर एवं ग्रेनाइट से बने हुए हैं, इन पत्थरों की खासियत होती है कि जैसे ही इन पर शाम के समय सूरज की मंद रोशनी पड़ती है तो यह सोने की तरह चमक उठते है. यही वजह है कि खजुराहो के ज्यादातर मंदिर शाम ढलते ही सोने की तरह चमकते हुए दिखाई देने लगते हैं.
मंदिर दर्शन के लिए कैसे जाए?
अब सवाल ये कि जो लोग इन मदिरों को देखना चाहते हैं वो कैसे यहाँ दर्शन के लिए जाए तो रास्ता आसान है. खजुराहो सड़क, रेल एवं हवाई मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है. मंदिरों के खुलने का समय सुबह आमतौर से सूर्योदय से सूर्यास्त तक का होता है.
तो कैसा लगा भारत के इतिहास के ऐसे अध्याय के बारे में जानकर जो शायद किसी और सभ्यता से परे और बेहद अद्द्भुत है अपनी राये हमें कमेंट कर जरूर बताएं.