UP anti-conversion law: मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने ये कहते हुए कि उत्तर प्रदेश के कठोर धर्मांतरण विरोधी कानून का उद्देश्य ‘धर्मनिरपेक्षता की भावना को कायम रखना है, एक लड़की को कथित तौर पर इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करने के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज कर दी. आरोपी अज़ीम पर लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का भी आरोप है.
कोर्ट ने UP anti-conversion law को लेकर क्या कहा
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा, “धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक अधिनियम, 2021 का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना है, जो देश के सामाजिक सद्भाव को दर्शाता है. इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना है.”
उन्होंने कहा, हालांकि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरों का धर्म परिवर्तन करना ‘सामूहिक’ अधिकार है.
न्यायाधीश ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता दोनों को समान रूप से उपलब्ध है: धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति और धर्मांतरित होने वाले व्यक्ति को.”
आरोपी ने अपनी जमानत याचिका में क्या कहा था
अपनी जमानत याचिका में, आरोपी अजीम ने दावा किया कि उसे ‘झूठा फंसाया गया है.’ उसने यह भी दावा किया कि लड़की, जो उसके साथ रिश्ते में थी, ‘स्वेच्छा से’ अपना घर छोड़कर चली गई.
अजीम, जिस पर धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, ने आगे कहा कि लड़की उससे ‘विवाहित’ थी, और उसने मामले में सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयानों में पहले ही अपनी शादी की पुष्टि कर दी थी.
दूसरी ओर, सरकारी वकील ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत जमानत याचिका का विरोध किया, जिसमें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए ‘दबाव’ का उल्लेख किया गया था और धर्म परिवर्तन के बिना हुई शादी का वर्णन किया गया था.
कोर्ट ने क्यों किया जमानत देने से इनकार
हालांकि, पीठ ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जिसमें सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में शिकायतकर्ता द्वारा ‘स्पष्ट रूप से’ कहा जाना शामिल है कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार द्वारा उस पर इस्लाम धर्म अपनाने के लिए ‘दबाव’ डाला जा रहा था, और उसे कुछ इस्लामी अनुष्ठान करने के लिए ‘मजबूर’ किया जा रहा था.
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सका कि ‘विवाह’ से पहले, 2021 अधिनियम की धारा 8 के तहत धर्मांतरण की सुविधा के लिए एक आवेदन दायर किया गया था.
अंत में, न्यायमूर्ति अग्रवाल ने आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अब संशोधित अधिनियम की धारा 3 और 8 का ‘प्रथम दृष्टया उल्लंघन’ हुआ है.
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