VIVIBHA 2024: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को गुरुग्राम में भारतीय शिक्षण मंडल के तीन दिवसीय “विजन फॉर विकसित भारत-विविभा 2024” सम्मेलन में शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर हम सही रास्ते पर चलें तो भारत अगले 20 वर्षों में दुनिया में नंबर एक बन सकता है.
विकास केवल आर्थिक लाभ नहीं, मानसिक और भौतिक समृद्धि का मिश्रण होना चाहिए
भागवत ने कहा कि 16वीं शताब्दी तक देश विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक नेता था. उन्होंने कहा, “हमने कई महत्वपूर्ण खोजें कीं, लेकिन उसके बाद हम रुक गए.”
उन्होंने कहा कि हमें भारत को विश्व स्तर पर नंबर 1 बनाना चाहिए और दूसरों की नकल करने के बजाय अपने खुद के मानक स्थापित करने चाहिए. उन्होंने कहा कि सच्चा विकास केवल आर्थिक वृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मन और बुद्धि दोनों का विकास शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा, “विकास केवल आर्थिक लाभ के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें मानसिक और भौतिक समृद्धि दोनों का मिश्रण होना चाहिए.” आध्यात्मिकता और विज्ञान के बीच संबंधों पर उन्होंने कहा कि “दोनों का उद्देश्य मानवता का कल्याण है” और कहा कि मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को सांसारिक आसक्तियों का त्याग करना चाहिए. युवा शोधकर्ताओं के महत्व पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि वे 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण को ठोस आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
VIVIBHA 2024: शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए-मोहन भागवत
उन्होंने कहा कि शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए और सच्ची प्रगति तब होगी जब भारत आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनेगा. उन्होंने कहा, “अगर हम सही रास्ते पर चलते रहे तो अगले 20 सालों में हम दुनिया में नंबर वन बन सकते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मुझे समय और स्वास्थ्य प्रदान करें ताकि मैं भारत को दुनिया में नंबर वन बनते देख सकूं.”
भारत को किसी की नकल करने की जरूरत नहीं है- कैलाश सत्यार्थी
युवा शोधकर्ताओं को संबोधित करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा, “आप सभी ने चंद्रयान 3 की सॉफ्ट लैंडिंग देखी, और यह एक दिन का काम नहीं था. यह हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान में वर्षों की कड़ी मेहनत का नतीजा है.” सम्मेलन में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी बात की. उन्होंने कहा कि भारत को किसी की नकल करने की जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, “हमारे ऋषियों ने हमें यही सिखाया है…जब भी शोधकर्ता समाज, राष्ट्र और मानवता की भलाई के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ समर्पित करने के लिए दृढ़ संकल्प और समर्पण के साथ एक स्थान पर एकत्रित होते हैं, तो यह एक महान बलिदान होता है…आप जीवन में जो भी हासिल करते हैं, उसे कई गुना करके दुनिया को लौटाएँ. इससे जो आनंद मिलता है, वह भारतीय परंपरा है.”
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