Saturday, July 5, 2025

बिहार के इन गाँवों में कुछ अलग ढंग से मनती है होली, रंग गुलाल से नहीं बल्कि ….

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होली का त्यौहार पूरे देश में खुशियों की रंग बिरंगी सौगातें लेकर आता है. होली का नाम लेते ही रंग गुलाल और और मौज मस्ती याद आने लगती है. पूरे देश में तरह तरह से होली का उत्सव बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है. कहीं लठमार , कहीं फूलों की होली तो कहीं गोबर की होली लेकिन भारत के कुछ गाँव ऐसे भी है जहाँ होली मनाई तो जाती है लेकिन बेहद अलग ढंग से. जी हाँ हम बात कर रहे हैं बिहार के नालंदा ज़िले के पांच ऐसे गांवों की जहां होली मनाने की अलग परंपरा है.

कैसे मनती है होली?

बिहार के इन पांच गाँवों में होली के दिन गाँव वाले रंग गुलाल और मौज मस्ती नहीं बल्कि काफी अलग ढंग से होली का उत्सव मनाते हैं . जहाँ रंग गुलाल या फूहड़ गीतों में नहीं बल्कि ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं. यहां होली के दिन चूल्हा भी नहीं जलता है. इस दिन गाँव के हर घर में शुद्ध शाकाहारी खाना खाया जाता है. वो भी बासी खाना होता है. यहां तक कि इस दिन पूरे गांव में शराब और मांस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाता है. यह गज़ब का मामला नालंदा ज़िले के सदर प्रखंड बिहारशरीफ से सटे पतुआना, बासवन बीघा, ढिबरापर, नकतपुरा और डेढ़धरा गांव का है. यहां के लोग बताते हैं कि यह परंपरा सालों पुरानी है. जो पिछले 51 साल से ऐसे ही चली आ रही है. इस गांव के लोग बसीऑरा के दिन होली का मौज उठाते हैं.

क्यों मनाई जाती है ऐसे होली?

इस मामले में गांव के जानकार और पद्म श्री विजेता बसवन बीघा गांव के रहने वाले कपिल देव प्रसाद बताते हैं कि एक सिद्ध पुरुष संत बाबा उस ज़माने में गांव में आए और झाड़फुक करते थे. जिनके नाम से आज एक मंदिर गांव में है. जहां दूर दराज से श्रद्धालु आस्था के साथ मत्था टेकने पहुंचते हैं, लेकिन उनकी 20 साल पहले मौत हो गई. उन्होंने लोगों से कहा कि यह कैसा त्यौहार है. जिसमें लोग नशा करते हैं और फूहड़ गीत के साथ नशे में झूमते-गाते हैं. इससे तो बेहतर है कि भगवान को याद करो. वे काफी सामाजिक व्यक्ति भी थे. उनका मानना था कि इन सब से झगड़ा और फसाद नहीं होगा. इसलिए बढ़िया यह है कि आपसी सौहार्द और भाईचारे रखने के लिए अखंड पूजा करो. जिससे शांति और समृद्ध जीवन व्यतीत होगा. उसके बाद से यह परंपरा अब तक चली आ रही है.

इसमें खास बात यह है कि धार्मिक अनुष्ठान शुरू होने से पहले गाँव वाले घरों में मीठा व शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाकर तैयार कर लेते हैं. जब तक अखंड पूजा का का समापन नहीं होता, तब तक घर में चूल्हा और धुआं निकलना वर्जित रहता है. इतना ही नहीं गांव के लोग नमक के इस्तेमाल से भी बचते हैं. भले ही हर जगह होली में रंगों की बौछार हो लेकिन नालंदा के इन गाँवों में होली के दिन इस परंपरा का पालन किया जाता है.

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