Monday, December 23, 2024

Supreme Court: अडानी-हिंडनबर्ग मामले और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, क्या SC ने उड़ा दी सरकार की नींद

गुरुवार दिन की शुरुआत #supream court #adani enterprise # Hindenburg से हुई. बुधवार को भी इसमें से दो हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे लेकिन उसकी वजह थी अडानी समूह के शेयरों में देखी गई तेजी…बुधवार को अडानी समूह के लिए अच्छा दिन था. अडानी समूह ने खोया हुआ काफी पैसा वापस पा लिया था लेकिन गुरुवार को उसकी मुश्किल फिर वापस आ गई.

अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किया एक विशेषज्ञ समिति का गठन

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले में दायर 4 याचिकाओं पर सुनवाई की. वकील एमएल शर्मा, विशाल तिवारी, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और मुकेश कुमार की दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया. 6 सदस्यों की इस एक्सपर्ट कमिटी की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस अभय मनोहर सप्रे करेंगे. इस कमिटी में बैंकर केवी कामथ और ओपी भट के अलावा इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकेनी, सोमसेकरन सुंदरम, जस्टिस जेपी देवधर के नाम भी शामिल हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने सेबी की जांच की दिशा भी तय की

कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सेबी की जांच की दिशा भी तय की. कोर्ट ने कहा कि सेबी अपनी जांच 2 महीने में पूरी कर एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करे. इसके साथ ही कोर्ट (Supreme Court) ने ये भी बताया कि सेबी को किस चीज़ की जांच करनी है. कोर्ट ने सेबी से कहा कि वो इस मामले में संभावित हेरफेर या नियमों के उल्लंघन के साथ ही स्टॉक मैनिपुलेशन तो नहीं हुआ इसकी जांच करे.

सरकार ने अडानी समूह के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की जरूरत मानी थी

वैसे खुद  केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अडानी समूह के खिलाफ एक अमेरिकी शॉर्ट सेलर द्वारा लगाए गए आरोपों की सच्चाई की जांच की जानी चाहिए. इस लिहाज़ से तो सरकार ने अपना पल्ला इस मामले से झाड़ लिया है लेकिन संसद में उसकी चुप्पी और हर बात का करारा जवाब देने वाले प्रधानमंत्री का अडानी का नाम तक नहीं लेना, उसे इस मामले में पार्टी तो बना ही चुका है.

विशेषज्ञ समिति में नंदन नीलेकणि का नाम होने पर बीजेपी को हो सकता है एतराज

वैसे अडानी मामले में जांच की मांग को लेकर संसद के बजट सत्र में जोरदार हंगामा करने वाला विपक्ष कोर्ट (Supreme Court) के इस आदेश को सरकार के मुंह पर तमाचा बता रहा है. वहीं सरकार को ज्यादा चिंता कमेटी में शामिल एक सदस्य के नाम को लेकर हो सकती है. कोर्ट ने अपनी एक्सपर्ट कमिटी में इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलकेणि का नाम रखा है.  नंदन नीलेकणि के सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ अच्छे रिश्ते जग ज़ाहिर हैं. वो 2014 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. इसके अलावा यूपीए के दौर में नंदन की आधार कार्ड, यूपीआई, फास्टैग, जीएसटी जैसी तकनीकों को देश में लाने में अहम भूमिका रही है. ऐसे में उनका इस कमिटी में होना बीजेपी के विरोध का कारण बन सकता है.

सत्य की जीत होगी-गौतम अडानी

वैसे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के अडानी-हिंडनबर्ग मामले में कमेटी बनाने के फैसले पर अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ( Gautam Adani) की प्रतिक्रिया भी आ गई है. गौतम अडानी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि सत्य की जीत होगी.

अब विपक्ष को संसद सत्र के लिए तैयार करनी होगी नई रणनीति

देखा जाए तो फिलहाल अडानी मामला कमेटी बनने से ठंडे बस्ते में चला गया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश को सरकार ढाल की तरह इस्तेमाल करेगी. इसके साथ ही विपक्ष के हाथ से एक मुद्दा छिन गया है इसलिए 13 मार्च को जब संसद के बजट सत्र का दूसरा दौर शुरु होगा तब विपक्ष को सरकार को घेरने के लिए एक नया मुद्दा ढूंढने के साथ ही नई रणनीति बनानी होगी.

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर आदेश जारी

अब बात करते हैं दूसरे मुद्दे की, अभी विपक्ष अडानी-हिंडनबर्ग मामले में खुशी मना भी नहीं पाया था कि उसके लिए सुप्रीम कोर्ट से दूसरी खुशखबरी आ गई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनाव आयोग को लेकर दायर एक मामले की सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे सभी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर आदेश जारी करते हुए कहा कि अब इनकी नियुक्ति एक समिति करेगी. इस कमिटी में तीन लोग शामिल होंगे, प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता) और भारत के मुख्य न्यायाधीश.

तीन सदस्यीय समिति करेगी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति

पांच जजों की संविधान पीठ ने जिसकी अध्यक्षता जस्टिस केएम जोसेफ कर रहे थे और जिसमें जस्टिस ऋषिकेष रॉय, जस्टिस सीटी रविकुमार, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अनिरूद्ध बोस भी शामिल थे, इस पीठ  ने अपने फैसले में कहा कि, “चुनाव आयुक्तों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की एक समिति की सलाह पर नियुक्त किया जाएगा. इस समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता) और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे. यह आदेश तब तक लागू रहेगा जब तक कि संसद द्वारा इस मामले में कोई कानून नहीं बनाया जाता.”

सरकारी की गिरफ्त से बाहर हुआ चुनाव आयोग

इसके साथ ही अदालत (Supreme Court) ने सरकार से कहा कि वो चुनाव आयोग के फंडिग के लिए कंसोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया में ज़रूरी बदलाव करने के साथ ही उसके लिए एक अलग सचिवालय की आवश्यकता पर भी ध्यान दे.

कुल मिलाकर कहें कि कोर्ट ने चुनाव आयोग को पूरी तरह से सरकार की गिरफ्त से बाहर करने का फैसला सुना दिया. शीर्ष अदालत ने ये फैसला चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश करने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुनाया. कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष और कानूनी तरीके से काम करने और संविधान के प्रावधानों का पालन करने के लिए बाध्य है. पीठ ने कहा कि लोकतंत्र लोगों की शक्ति के साथ जुड़ा हुआ है और एक आम आदमी के हाथों में शांतिपूर्ण बदलाव की सुविधा प्रदान करता है.

विपक्ष करता रहा है निष्पक्ष चुनाव आयोग की मांग

पिछले कई सालों से मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और उनकी निष्पक्षता को लेकर विपक्ष सवाल उठाता रहा है. फिर चाहे मामला आचार संहिता के उल्लंघन का हो या फिर चुनावों की तारीखों के एलान का. विपक्ष लगातार कहता रहा है कि चुनाव आयोग सरकार के हाथ में कठपुतली बन गया है और वो उसकी मर्जी के हिसाब से फैसले ले रहा है. इतना ही नहीं शिवसेना विवाद यानी उद्धव और शिंदे विवाद में भी चुनाव आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगा है.

कुल मिलाकर कहें तो सुप्रीम कोर्ट के अडानी-हिंडनबर्ग विवाद पर आए फैसले से जहां सरकार को तात्कालिक तौर पर झटका लगा है वहीं चुनाव आयोग पर आया फैसला उसे लंबे वक्त तक परेशान कर सकता है. खासकर तब जब वो विपक्ष को अपने किसी फैसले में शामिल करने को तैयार नहीं हो और ऐसे में उसे इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर न सिर्फ विपक्ष बल्कि सुप्रीम कोर्ट को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा.

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