Friday, March 29, 2024

Wrestlers Protest: गंगा में बह गए होते मेडल, तो देश की इज्जत का क्या होता? अब तो चुप्पी तोड़ो सरकार

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन कर रहे पहलवानों का धैर्य अब जवाब देने लगा है. 28 मई को पुलिस के जबरन प्रदर्शन खत्म कराने और फिर सोशल मीडिया पर झूठी तस्वीरों और धमकी भरे पोस्ट्स का सामना करने के बाद अब उन्होंने आमरण अनशन और अपने मेडल गंगा में बहाने का एलान कर दिया है. बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक ने भी ट्वीट किया है. पहलवानों को गंगा में मेडल डालने से प्रशासन ने क्यों नहीं रोका. सरकार ने उन्हें क्यों नहीं मनाया. किसान नेता क्यों पहुंचे हरिद्वार ये अलग बहस है. इस बहस में पड़ने के बजाए, इस मुद्दे में राजनीति ढूंढने की बजाए, एक भारतीय की तरह इस वक्त देश का सम्मान बढ़ाने वाली बेटियों के लिए खड़े होने का वक्त है

रंगभेद के खिलाफ मोहम्मद अली ने फेंका था अपना मेडल

क्या आपको भी पहलवानों का पत्र पढ़ने के बाद अमेरिकी बॉक्सर मोहम्मद अली की याद आ गई. मोहम्मद अली जिसने रंग भेद के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए अपना मेडल नदी में फेंक दिया था. मोहम्मद अली को तो सिर्फ इतनी परेशानी थी कि एक रेस्टोरेंट ने उसके काले रंग के चलते उसे खाना परोसने से इनकार कर दिया था. मोहम्मद अली के ओलंपिक मेडल फेंकने की वो घटना आज तक स्कूल कॉलेजों में पढ़ाई जाती है. रंग भेद के खिलाफ एक खिलाड़ी की पीड़ा को लगभग आधी सदी गुजर जाने के बाद भी विश्व याद करता है. तो सोचिए अगर हमारी देश की शान साक्षी मलिक ने अपना ओलंपिक मेडल गंगा में बहा दिया होता, तो दुनिया में भारत की क्या इज्जत रह जाती. दुनिया क्या देखती और क्या जानती. ये जानेगी कि एक सरकार ने अपने एक सांसद को बचाने के लिए देश का मान बढ़ाने वाली बेटी की गुहार सुनने से इनकार कर दिया.

अगर गंगा में बहा दिया मेडल तो देश की इजाजत क्या होगा?

विदेशी मेहमानों के साथ होने वाली अभद्रता पर एफआईआर लिखकर कार्रवाई करने वाला देश अपनी बेटी के लिए एक सांसद को जेल में नहीं डाल पाया. जेल में डालने की बात इसलिए कि बृजभूषण शरण सिंह पर पोक्सो के तहत मुकदमा दर्ज है. ये एक ऐसा एक्ट है जिसमें रिपोर्ट लिखे जाने के फौरन बाद गिरफ्तारी होती है. लेकिन बृज भूषण सिंह का इतना रुतबा है कि उसके लिए कानून को दरकिनार कर दिया गया. कुछ लोग कह रहे हैं कि कोर्ट ने रिपोर्ट दर्ज करा के एक तरह से मामला बंद ही कर दिया. तो क्या कोर्ट ने कहा था कि बृजभूषण को गिरफ्तार न किया जाए. आपको याद दिला दें कि दिल्ली में मंगलवार को आबकारी नीति मामले में सीबीआई की जांच झेल रहे मनीष सिसोदिया को कोर्ट ने ये कहकर जमानत देने से इनकार कर दिया कि ये रसूख वाले हैं. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं. जांच और गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं इसलिए इन्हें ज़मानत नहीं दी जा सकती. तो क्या यही बात बृजभूषण पर लागू नहीं होती. वो सांसद है, उनके परिवार के कई लोग जिसमें उनका बेटा भी शामिल है कुश्ती संघ में बड़े पदों को हथियाए बैठा है. उसका रसूख इतना है कि उसके सामने प्रधानमंत्री मोदी की बेटी की कोई वैल्यू नहीं है. ऐसे में बृज भूषण की गिरफ्तारी तो न्याय के लिए सबसे पहली जरूरत है.

बीजेपी को अब क्यों नहीं देश के सम्मान की चिंता?

चलिए बृजभूषण को गिरफ्तार मत कीजिए लेकिन छोटी-छोटी बातों पर विपक्ष पर देश को बदनाम करने का आरोप लगाने वाली सरकार और मंत्री अब क्यों नहीं सोच रहे हैं कि इन खिलाड़ियों के मुद्दे से कितनी बदनामी होगी. गंगा में ओलंपिक मेडल बहा देने से देश की कितनी बदनामी होगी. दुनिया का मीडिया इसे कवर करेगा.

पहलवानों ने अपने पत्र में क्या लिखा?

सवाल बहुत हैं लेकिन इन सवालों से पहले उनका दर्द भी सुन लीजिए जो शायद अपनी लड़ाई में इतना टूट गए हैं कि अब अपनी जिंदगी खत्म करने की बात कर रहे हैं. तो आपको बता दें कि बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक और कई पहलवानों ने एक चिट्ठी आज अपने सोशल मीडिया अकाउंट से पोस्ट किया. इस पत्र में खिलाड़ी लिखते हैं कि, मंगलवार (30 मई) शाम छह बजे खिलाड़ी अपना मेडल हरिद्वार में गंगा में प्रवाहित कर देंगे. इस खत में लिखा है कि , “हमारे साथ 28 मई को जो हुआ वो आप सबने देखा. हम महिला पहलवान ऐसा महसूस कर रही हैं कि जैसे इस देश में हमारा कुछ बचा ही नहीं है. हमें वो पल याद आ रहे हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे. अब लग रहा है कि ये मेडल क्यों जीते थे. उन्होंने आगे लिखा, ये मेडल हमें नहीं चाहिए. हम इन मेडल को गंगा में बहाने जा रहे हैं.”

आमरण अनशन तक क्यों पहुंची बात

पहलवानों ने लिखा, “मेडल हमारी जान हैं, हमारी आत्मा हैं. इनके गंगा में बह जाने के बाद हमारे जीने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. इसलिए हम इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे. इंडिया गेट हमारे उन शहीदों की जगह है जिन्होंने देश के लिए अपनी देह त्याग दी. हम उनके जितने पवित्र तो नहीं हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त हमारी भावना भी उन सैनिकों जैसी ही थी.”

राष्ट्रपति को क्यों नहीं लौटाना चाहते पहलवान मेडल?

चिट्ठी में दुखी पहलवानों ने बताया कि उन्होंने अपने मेडल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लौटाने के बारे में क्यों नहीं सोचा. “ये सवाल सामने आया कि किसे लौटाएं. हमारी राष्ट्रपति को, जो खुद एक महिला हैं. मन ने ना कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ 2 किलोमीटर दूर बैठी सिर्फ देखती रहीं लेकिन कुछ बोली नहीं.”

प्रधानमंत्री से भी है नाराज़गी

इतना ही नहीं खिलाड़ियों ने बताया कि वो प्रधानमंत्री को भी मेडल नहीं लौटाना चाहते क्योंकि वो बृज भूषण के साथ हैं. पहलवानों ने लिखा, “हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे. मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली, बल्कि नयी संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफेदी वाली चमकदार कपड़ों में फोटो खिंचवा रहा था. उसकी सफेदी हमें चुभ रही थी. मानो कह कही हो कि मैं ही तंत्र हूं.”

दिल्ली पुलिस के व्यवहार से दुखी खिलाड़ी

इसके साथ ही खिलाड़ियों ने दिल्ली पुलिस द्वारा रविवार को की गई कार्रवाई पर भी सवाल उठाए हैं. अपनी चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि, “पुलिस ने हमें कितनी बर्बरता से गिरफ्तार किया. हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे. हमारे आंदोलन की जगह भी छीन ली और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई. क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है?”

देश के मुखिया प्रधानमंत्री कब तोड़ेंगे अपनी चुप्पी?

खिलाड़ियों का पत्र भावनाओं से भरा है. उनके आरोप सच हैं या झूठ इसकी जांच होती रहेगी. लेकिन ये सच है कि वो देश का मान हैं. इसलिए उनकी सुनवाई होनी चाहिए. सरकार को और खास कर प्रधानमंत्री को बतौर देश के नेता आगे बढ़कर अब इन खिलाड़ियों से बात करनी चाहिए. खासकर तब जब बीजेपी वसुधैव कुटुबकम के विचार में विश्वास करती है. अगर विश्व एक परिवार है तो इस देश के परिवार के अभिभावक तो खुद प्रधानमंत्री मोदी हैं. तो बतौर अभिभावक ये उनका फर्ज है कि वो देश के सम्मान के लिए आगे आएं और इस विवाद को सुलझाएं. ताकि दुनिया हमें Sexual Assault करने वालों के साथ खड़ा होने वाला देश न समझे. बल्कि अपनी बेटियों को देवियों का रूप मानने वालों की तरह ही याद रखे.

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