23 जून को पटना में होने वाली बैठक से पहले विपक्षी दलों में ही खींच-तान दैखने को मिल रही है. एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी और टीएमसी कांग्रेस को घेरने की तैयारी में है वही कांग्रेस भी इन पार्टियों को विपक्षी एकता के बड़े मकसद से जुड़ने और निजी स्वार्थ से ऊपर उठने ज्ञान देने की तैयारी में है.
दिल्ली को लेकर केंद्र के अध्यादेश पर हो पहले चर्चा-केजरीवाल
मंगलवार सुबह आम आदमी पार्टी की ओर से अपने नेता केजरीवाल का पटना बैठक से पहले विपक्षी नेताओं को लिखा पत्र सोशल मीडिया पर साझा किया गया. पत्र में लिखा था कि “पटना की बैठक से पहले अरविंद केजरीवाल जी ने विपक्षी नेताओं को लिखी चिट्ठी केजरीवाल जी का आग्रह: 23 June 2023 को Bihar में Opposition Parties की Meeting में Ordinance को Parliament में हराने पर सबसे पहले चर्चा हो Delhi का अध्यादेश एक प्रयोग, यह सफल हुआ तो केंद्र सरकार Non-BJP राज्यों के लिए ऐसे ही अध्यादेश लाकर राज्य सरकार का अधिकार छीन लेगी वह दिन दूर नहीं जब PM 33 राज्यपालों और LG के माध्यम से सभी राज्य सरकारें चलाएंगे.”
केजरीवाल ने अपने पत्र में साफ तो नहीं लेकिन इशारों में ये साफ कर कर दिया था कि कांग्रेस को अध्यादेश पर अपना स्टैंड सबके सामने साफ करना होगा. तभी आगे विपक्षी एकता की बात बन पाएगी.
ममता ने भी दिखाई थी कांग्रेस से आंख
बंगाल की मुख्यमंत्री के लिए भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करना आसान नहीं है. वो पहले कांग्रेस को कह चुकी है कि बड़े मकसद के लिए बलिदान भी देने पड़ते है. फिर पिछले हफ्ते ममता ने कांग्रेस को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि, अगर कांग्रेस (Congress) ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के साथ बंगाल में गठबंधन किया तो उसे फिर टीएमसी से किसी तरह की मदद मिलने की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए. कांग्रेस और सीपीएम के गठबंधन पर ममता का ये बयान बंगाल में पंचायत चुनावों में त्रिकोणीय मुकाबले को देखते हुए आया है. जिसमें कांग्रेस और सीपीएम एक साथ तृणमूल और भाजपा के खिलाफ गठबंधन में लड़ रहे हैं.
यानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक से पहले ही छोटे दल कांग्रेस पर दबाव बनाने लगे है कि उसे पहले उनके हितों का ख्याल करना होगा तभी गठबंधन संभव होगा.
कांग्रेस ने बनाई ममता और केजरीवाल से निपटने की रणनीति
वहीं कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने भी पटना की बैठक से पहले केजरीवाल और ममता बैनर्जी की ब्लैकमेलिंग से निपटने की रणनीति तैयार कर ली है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने जो पलटवार करने के लिए रणनीति बनाई है उसके 3 मुख्य बिंदु हैं.
1- केजरीवाल-ममता को अपने राज्यों में मोदी की तर्ज पर काम करना बंद करना होगा
बताया जा रहा है कि कांग्रेस ममता और केजरीवाल को साफ संदेश देने जा रही है कि उन्हें अपने राज्यों में शासन के तरीकों को सुधारना होगा. कांग्रेस का मनना है कि, हम सभी कहते हैं कि, मोदी सरकार तानाशाही-जांच एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल और संवैधानिक संस्थाओं पर कब्ज़ा कर रही है, ऐसे में जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं वो ऐसा नहीं करतीं ऐसा हम सभी की राज्य सरकारों को करना होगा, जिससे जनता हम में और मोदी सरकार में सीधे फर्क कर सके, जबकि पंजाब में आप और बंगाल में तृणमूल का रवैया मोदी सरकार जैसा ही है.
2-आप और तृमूल ने कई राज्यों में पहुंचाया है कांग्रेस को नुकसान
इसके अलावा कांग्रेस ममता और केजरीवाल को याद दिलाएगी कि, कैसे अलग-अलग राज्यों में चुनाव लड़कर उन्होंने बीजेपी को फायदा पहुंचाया. कैसे धारा 370, उपराष्ट्रपति जैसे मुद्दों पर ममता केजरीवाल विपक्ष से अलग स्टैंड लेते रहे हैं. जिससे बीजेपी सरकार को मदद मिली. ऐसे में काग्रेस भी केजरीवाल से साफ कहेगी कि अध्यादेश पर समर्थन चाहने से पहले वह इन सारे मसलों पर भविष्य के लिए अपना रुख साफ करें.
3-मोदी के खिलाफ नहीं, जनता की आवाज़ बनने की अपनानी होगी रणनीति
कांग्रेस की बीजेपी भगाओ रणनीति का तीसरा बिंदु है, जनता के मुद्दों पर साथ आना. उनकी आवाज़ बनना और जनता को आगे करके चुनाव लड़ना. इस बात का संकेत बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने कहा था, इस वक़्त लक्ष्य होना चाहिए मोदी सरकार के खिलाफ इकट्ठा होना और एक साथ आना, सबको छोटे छोटे और अपने इश्यूज हो सकते हैं लेकिन सबको बड़ा लक्ष्य इकट्ठा होकर लड़ने का याद रखना चाहिए फिर चाहे वो केजरीवाल जी हो, ममता हों, कांग्रेस हो, राजद हो या जेडीयू.
इसके साथ ही कांग्रेस विपक्षी दलों को ये नसीहत भी देगी कि, जैसे तरह विपक्षी एकता इंदिरा हटाओ के नारे से सामने तार-तार हुई थी, उसी तरह अगर मोदी हटाओ का नारा दिया गया तो इससे संदेश अच्छा नहीं जाएगा इसलिए बजाय मोदी हटाओं के जनता के मुद्दों, कार्यक्रमों और नीतियों पर आधारित सियासी लड़ाई लड़ी जाए. यानी महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार जैसे जनता के मुद्दों को ही चुनावों का मुद्दा बनाया जाए.
क्या पटना की बैठक में बन पाएगी मोदी सरकार के खिलाफ रणनीति?
कुल मिलाकर कहें तो पटना में होने वाली बैठक विपक्षी एकता के लिए तलवार की धार के समान है. अगर किसी भी दल ने इसमें अपने हित को आगे रखा तो विपक्षी एकता का सपना चकनाचूर हो जाएगा. और अगर अपने हितों से ऊपर उठकर विपक्ष एकजुटता के एजेंड को सेट करने में कामयाब हो जाएगा तो 2024 पीएम मोदी और उनकी सरकार के लिए अंतिम लड़ाई साबित होगा जिसमें या तो उनकी जीत होगी या पीएम मोदी के लिए जो राजनीतिक वनवास शुरु होगा उससे उभरना उनके लिए नमुमकिन ही साबित होगा.