Monday, December 23, 2024

जांच एजेंसियों की लापरवाही से बच निकले छावला रेप मामले के दोषी, सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों को पाया नाकाफी

छावला रेप केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर सब को झकझोर कर रख दिया है. बिल्किस बानो मामले के बाद ये दूसरा मौका है जब बलात्कार के दोषियो को रिहा कर दिया गया है. सब जानते है बिल्किस के दोषियो की रिहाई के पीछे राजनीतिक मंशा थी. लेकिन छावला मामले में ऐसा क्या हुआ की लोवर कोर्ट और हाईकोर्ट में फांसी की सजा पाने वाले दोषियो को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का फैसला सुना दिया. आपको बता दें छावला की पीड़िता के असली दोषी पुलिस और जांच एजेंसियां हैं. जो ऐसे साक्ष्य नहीं जुटा पाई जिससे साबित होता की दोषी ही पीड़िता के मुजरिम है. इस वजह से कोर्ट को दोषियों को बेनिफिट ऑफ डाउट देते हुए रिहा करना पड़ा.

जीने की इच्छा हुई खत्म-पीड़िता के माता-पिता
सोमवार 7 नवंबर को जब ये फैसला आया तो सब हैरान रह गए. पीडिता के माता-पिता का तो फैसले के बाद बुरा हाल था. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि अब उनकी जिंदगी जीने की इच्छा खत्म हो गई है. शाम होते होते छावला की पीड़िता के इंसाफ के लिए आवाज़े सुनाई देने लगी. महिला संगठनों ने सबसे पहले मामले को उठाया. फिर बारी आई महिला आयोग की दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा कि “यह बहुत ही डराने वाली बात है. हम ऑर्डर कॉपी पढ़ रहे हैं और दिल्ली महिला आयोग इस मामले में लीगल ओपिनियन ले रहा है. सुप्रीम कोर्ट देश का सबसे बड़ा कोर्ट है, अगर वो ऐसा निर्णय दे रहा है, तो इस पर आगे कैसी कार्यवाही हो, ताकि न्याय मिल सके, इसके लिए हम लीगल ओपिनियन ले रहे हैं. मैं चाहती हूं कि जिन लोगों ने भी इस घिनौने क्राइम को अंजाम दिया है, उन्हें मौत की सजा दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि हो सकता वे ही दोषी हों, लेकिन सबूत पूरे नहीं हैं. यह पूरी तरह से सिस्टम का फ़ेल्योर है, किसी की भी तो जवाबदेही तय होनी चाहिए. महिला आयोग इस मामले में न्याय के लिए लड़ेगा.”

न्याय दिलाने का हर संभव प्रयास करेंगे- पुष्कर सिंह धामी, सीएम उत्तराखंड
क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के फैसले का था इसलिए राजनीतिक दलों ने इसपर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा. सब ने पीडिता के परिवार के साथ हमदर्दी और ये कहकर की इंसाफ की लड़ाई में पीड़िता के परिवार के साथ है अपना पल्ला झाड़ लिया. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जहां से पीड़िता आती है ने भी इस मामले पर सिर्फ इतना कहा, “इस मामले को उच्चतम न्यायालय में देख रही वकील चारू खन्ना और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से भी बात की है. पीड़िता हमारे प्रदेश की, देश की बेटी है, उसको न्याय दिलाने के लिए हम हर संभव प्रयास करेंगे”

क्या है पूरा मामला
वैसे आपको बता दें कि ये मामला क्या था और उस मासूम लड़की के साथ क्या जुल्म किया गया था. ऐसी हैवानियत की सुनेंगे तो आपकी रुह कांप जाएगी. 2012 में 19 साल की एक लड़की के साथ छावला में गैंग रेप किया गया, उसकी आंखों फोड़ कर उसमें तेज़ाब डाल दिया गया, उसके प्राइवेट पार्ट से कांच की बोतल तक मिली थी, उसे सिगरेट से जलाए गया था. हर तरीके की यातना दी गई और उसका मर्डर कर दिया गया. इस मामले में निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट, दोनों ने माना कि यह रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर केस है और दोषियों को फांसी की सजा दी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अचानक सभी दोषियों की न सिर्फ उनकी सजा रद्द कर बल्कि उनको बरी भी कर दिया है.
मामला जानने के बाद यकीनन आपके दिल से आवाज़ आई होगी की ऐसे राक्षसों को तो फांसी से कम कुछ सजा नहीं मिलनी चाहिए. अब सवाल उठता है कि फिर सुप्रीम कोर्ट जो महिलाओं के मुद्दों पर इतना सख्त रुख अपनाता है उसने कैसे दोषियो को आजाद कर दिया.

निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित रहे आरोपी -सुप्रीम कोर्ट
तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने 80 पेज के ऑडर में बहुत कुछ कहा है लेकिन जो तीन मुख्य बाते है जिनको मद्देनज़र रखते हुए कोर्ट ने दोषियों को रिहा किया वो इस प्रकार है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि “निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित रहे आरोपी” इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि “परिस्थितियों की समग्रता और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यह मानना मुश्किल है कि अभियोजन पक्ष ने ठोस और पुख्ता सबूत जोड़कर आरोपी के अपराध को साबित कर दिया था.” साथ ही कोर्ट ने भी साफ किया कि वो किस आधार पर दोषियों को रिहा कर रहा है. कोर्ट ने कहा, ” दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए, परिस्थितियों को एक साथ मिलाकर एक श्रृंखला बनानी चाहिए ताकि इस निष्कर्ष से कोई बच न सके कि सभी मानवीय संभावनाओं के भीतर अपराध सिर्फ आरोपी द्वारा किया गया है, किसी और के द्वारा नहीं.”

पुलिस और जांच एजेंसियों की गलती से हार गया इंसाफ
यानी की मामला साफ है कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पुलिस ने अपना काम ठीक से नहीं किया. उसने ऐसे कोई सबूत नहीं जुटाए जिससे से साबित हो की आरोपियों ने ही पीड़िता का बलात्कार और हत्या की हो. हलांकि कोर्ट ने ये माना कि हो सकता है कि आरोपियों ने ये घिनौना काम किया है लेकिन पुलिस इस बात को साबित करने में पूरी तरह नाकामयाब रही है. इसलिए कोर्ट ने दोषियों को बेनिफिट ऑफ डाउट यानी संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया है.

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