मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास निकाय को घरों के ‘अमानवीय और अवैध’ विध्वंस के लिए फटकार लगाई, और अधिकारियों को याद दिलाया कि “देश में कानून का शासन है”.
पीड़ितों को 6 सप्ताह में 10 लाख मुआवजा देने के दिए आदेश
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नागरिकों के आवासीय ढांचों को इस तरह से ध्वस्त नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रयागराज में तोड़फोड़ से उसकी अंतरात्मा को झटका लगा है. साथ ही कोर्ट ने कहा, “आश्रय का अधिकार, कानून की उचित प्रक्रिया जैसी कोई चीज होती है.”
सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को छह सप्ताह के भीतर प्रत्येक मकान मालिक को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया.
Supreme Court: तोड़फोड़ को ‘अत्यधिक कठोर’ कदम बताया था
24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी तरह के बयान दिए थे, जिसमें प्रयागराज में तोड़फोड़ को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की गई थी. कोर्ट ने कहा था कि इससे उसकी अंतरात्मा को झटका लगा है.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिनके मकान ढहाए गए थे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तोड़फोड़ को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी.
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रयागराज जिले के थाना खुल्दाबाद के लूकरगंज में नजूल प्लॉट नंबर 19 के एक हिस्से पर खड़े कुछ निर्माणों के संबंध में 6 मार्च, 2021 को उन्हें नोटिस दिया गया था. याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा था कि राज्य सरकार ने गलत तरीके से मकानों को ध्वस्त कर दिया, यह सोचकर कि जमीन गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की है, जो 2023 में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था.
SC ने घरों को ध्वस्त को पहले भी “चौंकाने वाला और गलत संकेत” देने वाला बताया है
सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रयागराज में बिना उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए घरों को ध्वस्त करना “चौंकाने वाला और गलत संकेत” देता है.
राज्य की कार्रवाई का बचाव करते हुए, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने 24 मार्च की सुनवाई के दौरान नोटिस देने में पर्याप्त “उचित प्रक्रिया” का पालन करने का आश्वासन दिया था.
आर वेंकटरमणी ने बड़े पैमाने पर अवैध कब्ज़ों की ओर इशारा करते हुए कहा था कि राज्य सरकार के लिए अनधिकृत कब्ज़ों को नियंत्रित करना मुश्किल है.
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