बुधवार (10 जुलाई, 2024) को ससर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम महिलाओं के हक़ में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 सीआरपीसी के तहत मुस्लिम महिलाओं को पति से भारण पोषण की मांग Supreme Court On Alimony करने का हक़दार माना. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर प्रभावी नहीं होगा.
सभी महिलाओं पर लागू होगी धारा 125 सीआरपीसी
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक मुस्लिम व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम महिला के अधिकार को बरकरार रखते हुए ये फैसले सुनाए. इस याचिका में तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस निर्देश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने अपनी पूर्व पत्नी को 10,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था.
अदालत ने कथित तौर पर यह भी फैसला सुनाया कि अगर धारा 125 सीआरपीसी के तहत किसी भी आवेदन के लंबित रहने के दौरान, कोई मुस्लिम महिला तलाक लेती है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का सहारा ले सकती है. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सीआरपीसी सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर.”
क्या है सीआरपीसी की धारा 125?
आपको बता दें, धारा 125 सीआरपीसी वो कानून है जिसके खिलाफ शाह बानो मामले में जमकर हंगामा हुआ था. शाह बानो केस में आए फैसले को मुस्लिम समाज ने पर्सनल लॉ में दखल बताया था. जिसके बाद दबाव में आकर तबकी राजीव गांधी सरकार ने नया कानून बना मुस्लिम महिलाओं को धारा 125 के लाभ से वंचित कर दिया था.
तब भी मामला सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में आए फैसले से शुरु हुआ था जिसमें कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है, जो मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है. लेकिन मुस्लिम समाज के विरोध के चलते तब की राजीव गांधी सरकार ने इसे ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986’ के जरिए रद्द कर दिया गया था. जिसके चलते आजतक कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप झेल रही है.
हलांकि धारा 125 कानून की वैधता को 2001 में फिर बरकरार कर दिया गया था. सीआरपीसी की धारा 125 न सिर्फ पत्नी बल्कि बच्चे और माता-पिता के भरष-पोषण का भी प्रावधान करती है.
इस धारा के अनुसार कोई भी समर्थ वान व्यक्ति न सिर्फ अपनी पत्नी बल्कि बच्चे या माता-पिता के भरण-पोषण से इनकार नहीं कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो अदालत उसे भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकती है.
Supreme Court On Alimony, किस मामला में कोर्ट ने सुनाया फैसला?
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य’ मामले से संबंधित में आया है. इस मामले में याचिकाकर्ता (पति) ने अपनी पूर्व पत्नी से भरण-पोषण की मांग के खिलाफ शिकायत दायर की थी. दोनों का 2017 में तलाक हो गया था.
शुरुआत में, एक पारिवारिक अदालत ने अब्दुल समद को अपनी पूर्व पत्नी को 20,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था.
जिस फैसले को उसने तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. अब्दुल समद का कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार दंपति का तलाक हो चुका है इसलिए मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के मद्देनजर धारा 125 सीआरपीसी के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला किसी भी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार नहीं है.
इस मामले में, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भरण-पोषण को घटाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दिया. तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता पति ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.