बिहार बीजेपी की ज़बान पर सोमवार से एक ही गाना चढ़ा हुआ है. उसके नेता नीतीश कुमार के लिए बस एक ही बीत कह रहे है अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का यार ने ही लूट लिया घर यार का. असल में बीजेपी का दर्द ये भी है कि 2020 विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू के छोटी पार्टी होने के बावजूद भी उन्होंने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन नीतीश कुमार ने एहसान मानना तो दूर झटके के साथ अपना हाथ ही छुड़ा लिया. नीतीश कुमार ने ऐसी पलटी मारी की बीजेपी चारों खाने चित हो गई. गुस्से और तिलमिलाहट में बीजेपी ने नीतीश कुमार पर जनादेश के अपमान का आरोप लगा दिया. लेकिन जल्दी ही उसको ये समझ आ गया कि 2017 में जब नीतीश कुमार की गुलाटी को उसने मास्टर स्ट्रोक करार दिया था तो अब इस पलटी को जनादेश का अपमान कहना उसे शोभा नहीं देगा. बीजेपी को जैसे ही अपनी गलती का एहसास हुआ उसने विश्वासघात के आरोप को एहसान फरामोशी में बदल दिया. कहा जाने लगा की हमने तुमको सीएम बनाया तुम पीएम बनने के ख्वाब देखने लगे. बीजेपी नेता गिरीराज किशोर ने तो ये तक कह दिया कि जिस पीएम की कुर्सी का नीतीश कुमार सपना देख रहे है वह खाली नहीं है. वैसे जब नीतीश कुमार से पूछा गया कि क्या वह 2024 में पीएम पद की दौड़ में है तो उन्होंने ऐसी किसी दौड़ में होने की बात से इनकार कर दिया. हलांकि सोमवार को ही मीडिया के सवाल के जवाब में उनके साथ खड़े होकर आरजेडी नेता और अब उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को पीएम मटेरियल बताया था तब न सिर्फ मटीरियल खामोश थे बल्कि मंद-मंद मुसकुराते नज़र आ रहे थे. इसके बाद जनता दल (यू) के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पटना में मंगलवार को कहा, “यदि आप देश में शख्सियतों का आकलन करें, तो नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं. हम आज कोई दावा नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनमें प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण हैं.’’ इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल के नेता शरद यादव ने भी कहा कि नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं. यानी आग हो या न हो लेकिन नीतीश कुमार के मन में पीएम बनने की चिंगारी तो सुलग ही रही है. सवाल ये है कि क्या एक चिंगारी के लिए नीतीश कुमार ने बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ दिया. तो जैसे सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही इस कहानी के भी दो पक्ष हैं अभी तक आप गठबंधन टूटने पर बीजेपी का पक्ष जान रहे थे. लेकिन खुद कई बीजेपी के नेता भी मानते है कि इस कहानी में जेडीयू का पक्ष काफी मजबूत है.
जेडीयू पक्ष की कहानी शुरु होती है 2020 विधानसभा चुनाव से. विधानसभा सीट बंटवारे को लेकर चिराग पासवान एनडीए से नाराज़ हो गए. उन्हें उतनी सीट नहीं मिल रही थी जितनी वह चाहते थे. नतीजा ये हुआ कि उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया और अपनी मर्जी की सभी सीटो पर अपने उम्मीदवार उतार दिए अब इसे आप इत्तफाक कहें या बीजेपी-एलजेपी की साजिश कि चिराग ने अपने ज्यादातर उम्मीदवार उन सीटो पर खड़े किए जो जेडीयू के कोटे में आई थी. चिराग की नाराजगी का नतीजा जेडीयू को अपने कई सीटो से हाथ धोकर चुकाना पड़ा. दर्द तो तब जरूर हुआ होगा नीतीश कुमार को लेकिन तब वह चुप रह गए. 2020 का वह जख्म इस साल जुलाई में फिर हरा हो गया. राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने के लिए एनडीए की मॉकड्रिल में चिराग को देख जेडीयू के दिल पर सांप लोट गए. चिराग से बीजेपी की नजदीकी में उसे बीजेपी-एलजीपी की 2020 में रची गई साजिश की बू आने लगी. मामला यहीं नहीं थमा 2020 के बाद बीजेपी कोटे से बने विधानसभा अध्यक्ष और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष गाहे-बगाहे जेडीयू और नीतीश कुमार का अपमान करने से नहीं चूकते थे. इतना कम था की बीजेपी अध्यक्ष का बिहार आना हुआ और उन्होंने यहां ऐसा बयान दिया कि जेडीयू के तोते उड़ गए. जेपी नड्डा ने कहा कि बीजेपी सभी क्षेत्रीय दलों को खत्म कर देगी. शायद ये महाराष्ट्र के सफल प्रयोग का असर था कि बीजेपी अध्यक्ष इतनी बड़ी बात बोल गए. इसके बाद सामने आए वह कथित टेप जिसमें जेडीयू विधायकों को पार्टी तोड़ने के लिए करोड़ों रुपये और पद का लालच दिया जा रहा था. शायद ये टेप ही बीजेपी-जेडीयू गठबंधन पर सबसे तेज़ प्रहार कर गए. कहानी में अभी कई और अध्याय भी है लेकिन जेडीयू को विश्वासघात के आरोपों से बरी करने के लिए शायद इससे ज्यादा की जरूरत नहीं. सूत्र ये कह रहे है कि बीजेपी जानती थी कि नीतीश कुमार गठबंधन तोड़ने वाले है लेकिन उसने उन्हें मनाने की कोशिश भी नहीं की गई. तो क्या खुद बीजेपी भी नीतीश कुमार को गठबंधन तोड़ने के लिए उकसा रही थी. तो क्या खुद बीजेपी के रचा था विपक्ष की एकजुटता का प्लान ताकी बिहार में वह खुद को अकेला दिखा सहानुभूति बटोर सकें और साथ ही आरजेडी के मुसलमान प्रेम का हवाला दे हिंदू वोट अपने पक्ष में एकजुट कर सके जैसा वह यूपी चुनाव में करती नज़र आई थी.