Sunday, December 22, 2024

G-23 के नेताओं का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए झटका या मौका?

गुलाम नबी आज़ाद के पार्टी छोड़ने के फैसले और उससे पहले कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह, अश्विनी कुमार, सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल, कुलदीप विश्नोई और जयवीर शेरगिल जैसे बड़े नेताओं का पार्टी को अलविदा कहना क्या कांग्रेस के हाथ को कमज़ोर कर रहा है. सवाल उठ रहे हैं कि अगर इसी रफ्तार से नेता पार्टी छोड़ते रहे तो कांग्रेस के भविष्य का क्या होगा. वैसे तो वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने को हमेशा पार्टी के लिए नुकसानदायक ही माना जाता है. इससे पार्टी की छवि को नुकसान होने के साथ-साथ उनके पार्टी छोड़ते वक्त लगाए गए आरोप जनता के मन में पार्टी को लेकर संदेह पैदा कर देते हैं. खासकर एक के बाद एक जिस तरह जी-23 के नेता कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर आलोकतांत्रिक होने और पार्टी को संभालने और चलाने के काबिल नहीं होने के आरोप लगाते रहे हैं उससे कांग्रेस के साथ-साथ राहुल गांधी को भी विपक्ष के लिए आसान टार्गेट बना दिया है. अपनी पप्पू की इमेज को तोड़ने जब भी राहुल गांधी ने आगे कदम बढ़ाए हैं तब-तब इन पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के बयानों ने विपक्ष के हाथ में हथियार का काम किया है. नतीजा ये है कि कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ राहुल को उनके सहयोगी दल भी उन्हें एक मजबूत नेतृत्व की तरह नहीं देखते हैं. इतना ही नहीं पार्टी में सोनिया गुट और राहुल गुट की बात कर ये नेता राहुल पर सीनियर नेताओं के अपमान और अनदेखी का भी आरोप लगाते रहे हैं. हर विधानसभा, निकाय या दूसरे किसी महत्वपूर्ण चुनाव से पहले इन नेताओं के पार्टी की अंदरूनी लड़ाई को लेकर दिए गए बयान और राहुल गांधी को लेकर की गई टिप्पणियां , पार्टी को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर देती है. कई बार तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपने आप से ही लड़ रही है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि इन नेताओं का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए झटका है या मौका
बिना जनाधार के नेता
पिछले आठ महीने में वैसे तो कुल 8 नेताओं ने पार्टी छोड़ी लेकिन हम बात कर रहे हैं उन नेताओं की जो कांग्रेस के साथ कई दशकों से जुड़े हुए थे. पिछले आठ महीनों में ऐसे 4 नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ा है जो कांग्रेस की केंद्र सरकार में मंत्री रहे हैं. गुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह और अश्विनी कुमार ये वो नेता हैं जो दशकों से कांग्रेस पार्टी और नेतृत्व के वफादार रहे. सभी ने पार्टी छोड़ते वक्त एक ही आरोप लगाया कि अब पार्टी में वरिष्ठ का सम्मान नहीं है और राहुल गांधी किसी की सुनते नहीं. वैसे इन चारों नेताओं में एक बात सामान्य है कि इन नेताओं के पास सरकार चलाने का अनुभव तो है लेकिन इनका अपना जनाधार नहीं है. कांग्रेस के ये वो नेता हैं जो सड़क पर संघर्ष करते कम ही नज़र आते हैं और जब नज़र आते भी हैं तो सिर्फ राहुल गांधी के पीछे हाथ बांधे दिखते हैं. किसी मोर्चे को अकेले संभालना शायद इन्होंने सीखा ही नहीं. बात अगर गुलाम नबी आज़ाद की करें तो राज्यसभा में नेता विपक्ष होते हुए उनके बीजेपी सरकार पर हमले हमेशा नरम ही रहे. अकसर ये कहा जाता रहा कि मृदुभाषी होने की वजह से वो उस अंदाज में जवाब नहीं दे पाते जिस अंदाज में सत्ता पक्ष अपनी सफाई पेश करता है. कुल मिला कर कहें तो न सड़क पर न संसद में ये नेता दूसरों से कुछ ज्यादा संघर्ष करते नज़र आए.
कांग्रेस से नाता छोड़ने की वजह कहीं ईडी सीबीआई का डर तो नहीं
गुलाम नबी आज़ाद हो या अश्विनी कुमार दोनों को कांग्रेस ने अपने राज्य यानी हिमाचल और कश्मीर में जाकर पार्टी संभालने का मौका दिया था. गुलाम नबी आज़ाद तो कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे हैं. वहां अभी जैसे हालात हैं उसमें अगर वो पार्टी की कमान संभालते तो शायद पार्टी को नई उंचाई तक ले जा सकते थे. लेकिन पार्टी छोड़ने वाले इन नेताओं ने मुश्किल जिम्मेदारी संभालने के बजाए पार्टी को अलविदा कहना सही समझा. वैसे कैबिनेट में मंत्री रहे इन नेताओं का बीजेपी के प्रति नरम रवैया और पार्टी की किसी भी बड़ी जिम्मेदारी से भागने की वजह ये भी बताई जा रही है कि ये ईडी और सीबीआई से डरते हैं. आरोप तो ये भी लगे कि इनके सॉफ्ट होने की वजह ईडी और सीबीआई का डर है या फिर कुछ सुविधाएं हैं जिसके चलते ये नेता कांग्रेस से अपना नाता तोड़ रहे हैं. गुलाम नबी आज़ाद के बारे में तो ये चर्चा है कि राज्यसभा सदस्यता जाने के बाद भी पिछले हफ्ते ही मोदी सरकार ने उनके दिल्ली के सरकारी बंगले का आवंटन रिन्यू कर दिया है.
वरिष्ठ नेताओं का जाना कांग्रेस के लिए मौका
अकसर कांग्रेस के युवा नेता ये आरोप लगाते रहे हैं कि पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें आगे आने का मौका नहीं देते. जब वो मंच सजा देते हैं तो ये नेता माइक संभाल सारा श्रेय ले उड़ते हैं जिससे नए कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाता है. पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने तो ये ही आरोप लगाया था कि उन्हें काम नहीं करने दिया गया. ऐसे में इन नेताओं का जाना पार्टी के युवा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक मौके की तरह है. दूसरा, नए नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों में फंसने का डर भी नहीं है इसलिए वो ज्यादा उत्साह और बिना डर के पार्टी के लिए काम करेंगे.
पुराने नेताओं के जाने से नए नेताओं को पार्टी में उच्च पद मिलने की उम्मीद भी ज्यादा होगी. इसके अलावा पार्टी में जो न्यू और ऑल्ड गार्ड का झगड़ा है वो भी कम हो जाएगा. जैसे कि बताया जाता है कि माधवराज सिंधिया ने कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर नाराज़ होकर पार्टी को अलविदा कह दिया था. तो एक तरह से देखा जाए पुराने नेताओं का जाना कांग्रेस के लिए युवा उर्जा का इस्तेमाल कर एक बार फिर मज़बूत विपक्ष बनकर खड़े होने का मौका भी है .

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