Monday, December 23, 2024

Sengol: प्रधान सेवक से राजदंड तक की कहानी, जानिए सेंगोल को लेकर क्या है विवाद? बीजेपी को क्यों पसंद है नेहरू बनाम मोदी?

धर्म, सच्चाई और निष्ठा का प्रतीक सेंगोल तमिलनाडु से कैसे पहुंचा इलाहाबाद? किसने और क्यों सौंपा था पंडित नेहरू को सेंगोल? सत्ता के हस्तांतरण का हिंदू प्रतीक सेंगोल, क्यों छुपाई गई सेंगोल की कहानी? ऐसे कई आर्टिकल और वॉट्सअप मैसेज पिछले तीन दिनों में आपकी नज़रों से गुज़रे होंगे. हमने भी अपनी वेब साइट द भारत नाऊ पर सेंगोल के तमिलनाडु से इलाहाबाद पहुंचने की सरकारी कहानी छापी थी. लेकिन अब इस कहानी पर ही सवाल उठने लगे हैं. तो क्या सरकार ने सेंगोल को लेकर जो कहानी सुनाई असल में वो सच नहीं थी? क्या देश के पहले प्रधानमंत्री को हिंदू विरोधी और भारतीय परंपराओं के विरोधी के रुप में दिखाने के लिए ये पूरी कहानी गढ़ी गई थी?

नेहरू बनाम मोदी, क्यों पंडितजी को लेकर पूर्वाग्रहों से भरी है बीजेपी

मोदी सरकार का देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू को लेकर जो पूर्वाग्राह है वो जग जाहिर है. कई मौके पर प्रधानमंत्री ने देश की कई समस्याओं के लिए पंडित नेहरू को सीधा दोषी करार दिया है. इतना ही नहीं आरएसएस और कई दूसरे हिंदूवादी संगठन समय-समय पर देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू को अय्याश और हिंदू विरोधी साबित करने की कोशिश करते रहे हैं. ऐसे में अब सेंगोल को लेकर जो खबरें सामने आ रही हैं उनसे फिर एक बार ऐसा लगता है कि पीएम मोदी को पंडित नेहरू के मुकाबले खड़ा करने की कोशिश में बीजेपी ने एक पूरी झूठी कहानी ही गढ़ दी है.

कांग्रेस ने कहा सेंगोल की कहानी है फर्जी

नई संसद में लगने जा रहे राजदंड सेंगोल को लेकर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि इस बात का कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है कि इसे सत्ता हस्तांतरण के तौर पर सौंपा गया था. उन्होंने कहा, “माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू से जुड़ा कोई ऐसा दस्तावेज नहीं जो प्रमाणित करें कि यह राजदंड अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल हुआ था, इससे जुड़े सभी दावे फर्जी हैं और कुछ लोगों की दिमागी उपज हैं.”

क्या सेंगोल की कहानी है आधा सच, आधा झूठ

प्रतिष्ठित अखबार, द हिंदू ने भी इसी लाइन पर एक लेख छापा है. जिसका शीर्षक है, “सेंगोल- राजदंड के बारे में सरकार के दावों पर सबूत नाकाफी या हल्के”. द हिंदू अखबार कहता है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 25 मई को चेन्नई में पत्रकारों को संबोधित करते हुए अमित शाह के जिन दावे को दोहराया था. जिसमें उन्होंने भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को तमिलनाडु में थिरुवदुथुराई अधीनम द्वारा बनाए गए इस राजदंड को सौंपने की रस्म को वास्तव में अंग्रेजों से भारतीयों को “सत्ता के हस्तांतरण” का पवित्र प्रतीक बताया था. वह आधा सच और आधा झूठ है.

अखबार ने केंद्र सरकार की शुरू की गई वेबसाइट (www.sengol1947ignca.in) के सवाल जवाब कॉलम में दी गई जानकारियों जिनमें कहा गया है कि कैसे भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से पूछा था कि क्या सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाने की कोई प्रक्रिया है. बदले में नेहरू ने भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल सी. राजगोपालाचारी से परामर्श किया, जिन्होंने बदले में थिरुवदुथुराई अधीनम राजदंड तैयार किया, जिसे शक्ति और न्यायपूर्ण शासन के पवित्र प्रतीक के रूप में देखा जाता है. मोदी सरकार का कहना है कि राजदंड भेंट करने वालों को एक विशेष विमान से दिल्ली भेजा गया था.

सेंगोल को लेकर क्या लिखा था 1947 में अखबारों ने

द हिंदू अखबार का कहना है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि श्री अंबालावन पंडारसन्धि स्वामीगल, अधीनम के प्रमुख द्वारा भेजे गए एक प्रतिनिधिमंडल ने थेवरम के भजनों के पाठ के साथ नेहरू को राजदंड भेंट किया लेकिन सरकार के इस दावे को लेकर साक्ष्य बहुत कम हैं कि राजदंड की इस प्रस्तुति को नेताओं और तत्कालीन सरकार और प्रधानमंत्री नेहरू ने सत्ता के प्रतीकात्मक हस्तांतरण के रूप में माना था.
अखबार कहता है कि जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेंगोल की कहानी के दस्तावेजी साक्ष्य के बारे में पूछा गया, तो वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि “जितने दस्तावेजी सबूत चाहिए” उन्हें प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में पत्रकारों को दिए गए डॉकेट में शामिल किया गया है.

सरकारी दस्तावेज़ों से क्यों कमज़ोर पड़ गए सेंगोल को लेकर दावे

द हिंदू इन्हीं दिए गए दस्तावेज़ों को खँगालने के बाद कहता है कि दिए गए दस्तावेजों से मोदी सरकार के दावों की पुष्टि नहीं होती है. द हिंदू जो आज़ादी के पहले से छपता रहा है. उसके अनुसार भारतीय समाचार पत्रों की रिपोर्टों ने संक्षेप में राजदंड की प्रस्तुति की रिपोर्ट दर्ज की गई थी. लेकिन किसी ने भी इसे सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक होने की बात नहीं कही. महत्वपूर्ण रूप से, द हिंदू में छपी एक तस्वीर में दिल्ली जाने से पहले 11 अगस्त, 1947 को सेंट्रल रेलवे स्टेशन, चेन्नई में प्रतिनिधिमंडल को दिखाया गया था. यह साबित करता है कि प्रतिनिधिमंडल ने ट्रेन से यात्रा की थी न कि किसी विशेष विमान से, जैसा कि बीजेपी सरकार बता रही है.
इसके अलावा सरकार की ओर से दिए गए अन्य साक्ष्यों जैसे भाषाई राज्यों पर अंबेडकर के विचार, फ्रीडम एट मिडनाइट, पेरी एंडरसन की पुस्तक द इंडियन आइडियोलॉजी, और यास्मीन खान की ग्रेट पार्टीशन: द मेकिंग ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान के अंश शामिल हैं, इस सभी में नेहरू के धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने को लेकर आलोचनात्मक तरीके से इस सेंगोल के दिए जाने का जिक्र है, लेकिन किसी में भी सेंगोल के सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में राजदंड का उपयोग की चर्चा नहीं है.

माउंटबेटन को क्या नहीं दिया गया था सेंगोल

खास बात ये है कि किसी भी साक्ष्य में यह नहीं कहा गया है कि राजदंड को पहले प्रतीकात्मक रूप से माउंटबेटन को दिया गया था और फिर सत्ता के स्थानांतरण के प्रतीक के रूप में नेहरू को दिया गया था. इसके अलावा भी सरकारी दावों पर अखबार ने कई सवाल उठाए हैं. यानी कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की बात को अखबार काफी हद तक सही मानता है.

कांग्रेस को भारतीय परंपराओं और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है?- अमित शाह

हलांकि गृहमंत्री अमित शाह की तरफ से अब जयराम रमेश के ट्वीट के जवाब में दो ट्वीट किए गए हैं. जिनमें उन्होंने कहा है कि कांग्रेस इतिहास को झुठला रही है. अमित शाह ने ट्विटर पर लिखा, “अब कांग्रेस ने एक और शर्मनाक अपमान किया है. एक पवित्र शैव मठ, थिरुवदुथुराई अधीनम ने खुद भारत की आजादी के वक्त सेंगोल के महत्व के बारे में बताया था. कांग्रेस अधीनम के इतिहास को झूठा बता रही है! कांग्रेस को अपने व्यवहार पर विचार करने की जरूरत है.”
अमित शाह ने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा, “कांग्रेस पार्टी भारतीय परंपराओं और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है? भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में तमिलनाडु के एक पवित्र शैव मठ ने पंडित नेहरू को एक पवित्र सेंगोल दिया था लेकिन इसे ‘चलने की छड़ी’ समझकर एक संग्रहालय में भेज दिया गया था.”

क्या एक देश में कई महान नेता नहीं हो सकते ?

अगर ध्यान से देखें तो बीजेपी फिर इस मुद्दे को हिंदू अपमान से जोड़ने की कोशिश कर रही है. यानी संसद जो देश के लोकतंत्र के सम्मान और गर्व का प्रतीक है उसे लेकर भी राजनीति करने की कोशिश की जा रही है. सवाल ये भी है कि क्या पीएम मोदी को महान बताने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को नीचा दिखाना ज़रूरी है. क्या एक देश में कई महान नेता नहीं हो सकते.

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