लखनऊ। सपा Samajwadi Party ने लोकसभा आम चुनाव में अब तक के अपने इतिहास में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। उसने कुल 37 सीटें जीतीं। इस तरह सपा देश की तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। धार्मिक मुद्दों के बजाय जातीय गोलबंदी और यादवों-मुस्लिमों पर कम दांव की रणनीति से सपा को यह सफलता मिली। सपा ने पिछला लोकसभा चुनाव बसपा के साथ लड़ा था। तब उसे महज पांच सीटें मिली थीं। राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया। सपा ने गठबंधन के तहत 62 सीटों पर चुनाव लड़ा। 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट तृणमूल कांग्रेस को दी। सीट शेयरिंग की यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई। कांग्रेस के साथ साझेदारी करने के चलते सपा मतदाताओं को यह मनोवैज्ञानिक संदेश देने में सफल रही कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प मौजूद है।
परिवार की एकजुटता का Samajwadi Party को हुआ फायदा
2019 के चुनाव में पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह ही सपा से अलग थे, लेकिन इस बार परिवार की एकजुटता से भी अच्छा संदेश गया। सपा ने प्रत्याशी तय करने में पीडीए फार्मूले का भी पूरा ध्यान रखा। अपना आधार वोट माने जाने वाले यादवों और मुस्लिमों से ज्यादा कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशी उतारे। ब्राह्मण व ठाकुर समेत सामान्य जाति के प्रत्याशियों को भी प्रतिनिधित्व दिया। अखिलेश का यह दांव बिल्कुल सही बैठा और पार्टी को अप्रत्यशित सफलता मिली। अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों से खुद को और अपनी पार्टी को दूर रखा। बहुत ही सधे अंदाज में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर सीधे कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।