इलाहाबाद
कानून की दुनिया में एक कहावत है, देर से मिलने वाला न्याय भी अन्याय के समान है(justice delayed is justice denied). यही सवाल इलाहाबाद हाइकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में उठाया. कोर्ट ने दुष्कर्म के एक आरोपी को यह कहते हुए रिहा कर दिया कि जिस आरोप में आरोपी पिछले 21 साल से सजा काट रहा है उसका केस 14 साल तक न्यायालय के समक्ष आया ही नहीं .
आरोपी के खिलाफ रेप का आरोप साबित नहीं हुआ था, इसके बावजूद वो 21 साल जेल में रहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 14 साल से सुनवाई के लिए कोर्ट में मुकदमा न लगने पर रेप केस के मामले में 21 साल से जेल में बंद दोषी को बरी कर दिया. उम्रकैद की सजा भुगत रहे आरोपी को हाइकोर्ट के फैसले से बड़ी राहत मिली .मामले में आरोपी के वकील का कहना था कि मेडिकल रिपोर्ट और दूसरे साक्ष्यों से दुष्कर्म का आरोप साबित नहीं होता है. कोर्ट ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए रिहाई का निर्देश दिया .
यह आदेश न्यायमूर्ति डा. के जे ठाकर एवं न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने कानपुर देहात के अल्ताफ की आपराधिक अपील पर पारित किया.
यही नहीं आरोपी अल्ताफ को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि 21 साल बिताने के बाद भी उसे दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत क्षमा करने पर विचार नहीं किया गया, जबकि अधिकारियों को स्वयं बिना कोर्ट के आदेश के ऐसी कार्यवाही करनी चाहिए थी.
मामले के अनुसार रेप पीड़िता के पति ने 9 फरवरी 2001 को कानपुर देहात के थाना अकबरपुर में प्राथमिकी दर्ज कराई थी जिसके बाद आरोपी की गिरफ्तारी हुई थी, और वो तब से जेल में था.