Thursday, February 6, 2025

रामपुर विधानसभा उपचुनाव: क्या आज़म खान को सता रहा है हार का डर?

उत्तर प्रदेश का रामपुर अपने तेज़ चाकू और आज़म खान की चाकू जैसी तेज़ ज़बान के लिए जाना जाता रहा है. संसद से सड़क तक आज़म खान के बयान विरोधियों के हौसले चीरने की ताकत रखते थे. विवादों का भी आज़म खान के साथ चोली-दामन का साथ रहा है. फिर चाहे पीएम मोदी को पकिस्तान का एजेंट कहने का मामला हो या फिर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को आरएसएस के कार्यक्रम में जाने को उनको मिले भारत रत्न से जोड़ कर दिए गए बयान का मामला हो. आज़म खान महिलाओं पर कि गई अपनी विवादित टिप्पणियों के लिए हमेशा आलोचनाओं से दो-चार हुए है. जयाप्रदा की खाकी अंडरवियर की बात हो या लोकसभा में अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठी रमा देवी की आंखों में आंखें डाल कर देर तक देखते रहने वाला बयान, आज़म खान की ज़बान ही उनकी पहचान रही है.

क्या रामपुर चुनाव में आज़म खान को हार नज़र आ रही है?
लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में ज़बान से ज्यादा आज़म खान की आंखें चर्चा में हैं. वो आंसू चर्चा में है जो वो अपने पर हो रहे जुल्म की दास्तान सुनाने के लिए बहा रहे हैं. 27 महीने जेल में बिताने के बाद अब आज़म खान का दर्द अकसर जनसभाओं में झलक जाता है. रामपुर संसदीय सीट की हार के बाद विधायकी का जाना और अब विधानसभा चुनाव में हार का डर आज़म खान को भावुक कर रहा है. क्या आज़म खान को लग रहा है कि 1970 में रामपुर से शुरू हुआ सियासी सफर थम जाएगा. क्या रामपुर की हार आज़म खान की डूबती राजनीतिक कश्ती में आखिरी छेद कर देगी. क्या रामपुर में आज़म खान को हार साफ नज़र आ रही है. क्या लोकसभा के बाद बीजेपी रामपुर विधानसभा का चुनाव भी जीतने वाली है.

इस्लाम में खुदकुशी हराम है इसलिए जिंदा हूं – आज़म खान
रामपुर विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नज़र है. इस चुनाव में समाजवादी नेता आजम खान की साख दाव पर लगी है. चुनाव प्रचार के दौरान दिए भाषणों के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. ऐसे ही एक वीडियो में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान रोते हुए बोल रहे हैं कि इस्लाम में खुदकुशी हराम है, इसलिए मैं जिंदा हूं.

वीडियो में आज़म खान एक चुनावी सभा को संबोधित करते नज़र आ रहे हैं. वो कहते हैं कि मेरी मौत चाहते हो तो मार दो मुझे. मुझे यहां गोली मार दो. खुदा की कसम वो मौत मेरी जिंदगी की तकलीफों से सस्ती होगी. तुम्हें मालूम है, हम जुल्म के कितने पहाड़ सह रहे हैं. हमपर हंसो, बेच दो अपना जमीर, बेच डालो इनके टके के लिए और बता डालो उन अफसरों को जो हमारी बर्बादी चाहते हैं. ये जलसा नहीं है. तुमसे इंसाफ लेने आया हूं.”

इतने भावुक क्यों हो रहे हैं आज़म खान
पहले 90 से ज्यादा मामलों में आज़म खान का 27 महीने जेल में रहना, फिर विधायकी रद्द होना और अब मतदान के अधिकार का जाना, ऐसा लगता है एक के बाद एक लगे झटकों ने आज़म खान को तोड़ दिया है. वो अपने और अपने परिवार के भविष्य को लेकर आशंकित हैं और ये ही दर्द और डर उनके बयानों में नज़र आ रहा है. कुछ दिन पहले आज़म खान ने कहा था ‘मैं तो इस बात का इंतजार कर रहा हूं कि किस दिन मुझे देश निकाला मिलेगा क्योंकि अब एक ही जुल्म बाकी रह गया है कि मुझे हिंदुस्तान से निकाला जाए.” ये बयान आज़म खान ने रामपुर पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए दिया था. इतना ही नहीं आज़म खान चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठा चुके हैं. आजम खान ने कहा कि “हम इलेक्शन कमीशन से आग्रह करेंगे कि भारतीय जनता पार्टी के कैंडिडेट को जीता हुआ घोषित कर दे” गलियों में दहशत है. यह कहा जा रहा है कि एसपी को अगर वोट दिए तो घर खाली करा दिए जायेंगे…”

1977 के बाद पहला मौका है जब रामपुर से आज़म खान या उनका परिवार चुनावी मैदान में नहीं है.
वैसे जिस चुनाव के लिए आज़म खान इतना गिड़गिडा रहे हैं, आंसू बहा रहे हैं. वो 1977 के बाद का पहला ऐसा चुनाव है जब खुद आज़म खान या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव में प्रत्याशी नहीं हैं. जैसा कि सब जानते हैं हेट स्पीच मामले में 3 साल की सजा मिलने के बाद आज़म खान की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी. जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव की नौबत आई. अंदाज़ा ये लगाया जा रहा था कि आजम खान की गैर मौजूदगी में इस सीट से या तो उनकी पत्नी तंजीम फातिमा, या बड़ा बेटे अजीब आजम और राजनीति में सक्रिय उनकी बहू सिद्रा को प्रत्याशी बनाया जाएगा लेकिन आज़म खान ने इनसब के ऊपर अपने वफादार आसिम रजा को चुना.
1977 के बाद ये पहला मौका है जब समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के परिवार का कोई सदस्य इस सीट से चुनाव नहीं लड़ रहा है. आज़म खान 1970 में रामपुर से विधायक चुने गए थे. वह 1970 से लेकर 2022 तक 12 बार विधानसभा के चुनाव लड़ चुके हैं. इसमें से 10 बार उनकी जीत हुई है और 2 बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा है. शुरुआती दौर में रामपुर की सीट पर कांग्रेस का दबदबा माना जाता था. 1980 से लेकर 1993 के बीच 5 विधानसभा चुनाव में लगातार उन्होंने जीत हासिल की है लेकिन 1996 का चुनाव कांग्रेस के अफरोज अली खान ने जीता था. हारे हुए आजम खान को तब उनकी पार्टी ने राज्यसभा में भेजा था. इसके बाद 2002 से 22 के बीच 5 चुनाव हुए जिसमें लगातार आजम खान ने जीत हासिल की. आजम खान ने 2019 का लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता. जिसके बाद उन्होंने रामपुर विधानसभा सीट से इस्ताफा दिया और अपनी पत्नी तंजीम फातिमा को उम्मीदवार बनाया. तंजीम फातिमा ने इस सीट से जीत हासिल की थी. उनकी विधायकी के दौरान ही आजम खां पर 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए और उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हुई. इस बीच अदालत ने उनके बेटे विधायक अब्दुल्लाह आजम और पत्नी तंजीम फातिमा को ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भी भेज दिया. खुद आज़म खान भी 27 महीने सीतापुर जेल में रहने के बाद रिहा हुए और उन्होंने फिर 2022 में विधानसभा का चुनाव लड़ा जिसमें उनकी जीत भी हुई. लेकिन फिर हेट स्पीच मामले में फैसला आने के बाद उनकी विधायक रद्द कर दी गई और फिर उपचुनाव का एलान हुआ.

क्या 8 दिसंबर को आज़म खान की राजनीतिक का सूरज डूब जाएगा?
वैसे इन सबके बीच ये बात भी सच है कि रामपुर में आज़म खान और उनके परिवार की पकड़ भी ढीली हुई. रामपुर संसदीय सीट की हार, पुराने साथी और मीडिया प्रभारी फसाहत शानू का उन्हें छोड़ बीजेपी में चले जाना. खराब सेहत के चलते पिछले कुछ महीनों में 2 बार दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती होना. दोस्त और साथी मुलामय सिंह यादव का निधन जिनके अंतिम दर्शन करने आज़म खान बीमारी की हालत में भी पहुंच गए थे, अखिलेश यादव का जेल में मिलने नहीं आना, आज़म खान के विद्रोही हो जाने की खबरें .ये वो सब वाकये हैं जो आज़म खान की जिंदगी में पिछले 2-3 साल में बहुत तेजी से गुजरे और शायद इन सब चीजों ने उनके आत्मविश्वास को हिला दिया. इसलिए इस बार के विधानसभा चुनाव प्रचार में उनका अंदाज वैसा नहीं है जैसा 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज होने पर था. तब एक जनसभा में उन्होंने कहा था मुझपर मुर्गी चोरी नहीं डकैती का मुकदमा दर्ज कराया है….अगर कराना ही था तो ताज महल या कुतुब मीनार की चोरी का मुकदमा दर्ज कराते.

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