लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी Rahul Gandhi ने बुधवार को कहा कि मूल ईस्ट इंडिया कंपनी 150 साल पहले खत्म हो गई थी, लेकिन उसके बाद पैदा हुआ डर वापस आ गया है, क्योंकि एकाधिकारवादियों की नई नस्ल ने उसकी जगह ले ली है। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि “प्रगतिशील भारतीय व्यापार के लिए एक नया सौदा एक ऐसा विचार है जिसका समय आ गया है”.
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इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में गांधी ने कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को चुप करा दिया और यह चुप कराने का काम उसकी व्यापारिक क्षमता ने नहीं, बल्कि उसकी पकड़ ने किया. उन्होंने कहा कि कंपनी ने दब्बू महाराजाओं और नवाबों के साथ साझेदारी करके, उन्हें रिश्वत देकर और धमकाकर भारत का गला घोंट दिया.
उन्होंने कहा, “इसने हमारे बैंकिंग, नौकरशाही और सूचना नेटवर्क को नियंत्रित किया. हमने अपनी स्वतंत्रता किसी दूसरे देश के हाथों नहीं खोई; हमने इसे एक एकाधिकारवादी कॉर्पोरेशन के हाथों खो दिया, जो एक दमनकारी तंत्र चला रहा है.”
उन्होंने दावा किया कि मूल ईस्ट इंडिया कंपनी 150 साल पहले खत्म हो गई थी, लेकिन उसके बाद जो डर पैदा हुआ था, वह फिर से वापस आ गया है.
नेता विपक्ष ने कहा, एकाधिकारवादियों की एक नई नस्ल ने इसकी जगह ले ली है, जो अपार संपत्ति अर्जित कर रहे हैं, जबकि भारत बाकी सभी के लिए कहीं अधिक असमान और अनुचित हो गया है. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “हमारे संस्थान अब हमारे लोगों के नहीं हैं, वे एकाधिकारवादियों के इशारे पर चलते हैं. लाखों व्यवसाय नष्ट हो गए हैं और भारत अपने युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने में असमर्थ है.”
“अपना भारत चुनें: निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा या एकाधिकार? “- Rahul Gandhi
एक्स पर लेख साझा करते हुए गांधी ने कहा, “अपना भारत चुनें: निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा या एकाधिकार? नौकरियां या कुलीनतंत्र? योग्यता या सम्पर्क? नवाचार या धमकी? धन बहुतों के लिए या कुछ लोगों के लिए?”
उन्होंने अपने विचार साझा करते हुए कहा, “मैं इस विषय पर लिखता हूं कि क्यों व्यापार के लिए नया सौदा सिर्फ एक विकल्प नहीं है. यह भारत का भविष्य है.”
गांधीजी ने अपने लेख में इस बात पर जोर दिया कि ‘भारत माता’ अपने सभी बच्चों की मां हैं। उन्होंने कहा कि उनके संसाधनों और शक्ति पर एकाधिकार तथा कुछ चुने हुए लोगों के लिए बहुतों को खुलेआम नकारने से वह आहत हुई हैं.
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उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि भारत के सैकड़ों प्रतिभाशाली और गतिशील कारोबारी नेता एकाधिकारियों से भयभीत हैं. क्या आप भी उनमें से एक हैं? फोन पर बात करने से डरते हैं? क्या आप इस बात से डरते हैं कि एकाधिकारवादी सरकार के साथ मिलकर आपके क्षेत्र में घुसकर आपको कुचल देंगे? क्या आप इस बात से डरते हैं कि आयकर, सीबीआई या ईडी के छापे आपको अपना कारोबार उन्हें बेचने के लिए मजबूर कर देंगे? क्या आप इस बात से डरते हैं कि जब आपको इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, तब वे आपको पूंजी से वंचित कर देंगे? क्या आप इस बात से डरते हैं कि वे बीच में ही खेल के नियम बदल देंगे और आप पर हमला कर देंगे?”
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गांधी ने कहा कि इन कुलीन समूहों को व्यवसाय बताना भ्रामक है, क्योंकि जब कोई उनके साथ प्रतिस्पर्धा करता है, तो वह किसी कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहा होता, बल्कि वह भारतीय राज्य की मशीनरी से लड़ रहा होता है.
गांधी ने कहा, “उनकी मुख्य क्षमता उत्पाद, उपभोक्ता या विचार नहीं हैं, बल्कि भारत की शासकीय संस्थाओं और नियामकों को नियंत्रित करने और निगरानी करने की उनकी क्षमता है. आपके विपरीत, ये समूह तय करते हैं कि भारतीय क्या पढ़ते और देखते हैं, वे इस बात को प्रभावित करते हैं कि भारतीय कैसे सोचते हैं और क्या बोलते हैं.”
उन्होंने कहा कि आज सफलता का निर्धारण बाजार की ताकतें नहीं करतीं, बल्कि सत्ता संबंध करते हैं. कांग्रेस नेता ने कहा, “आपके दिलों में डर है. लेकिन उम्मीद भी है. ‘मैच फिक्सिंग’ करने वाले एकाधिकार समूहों के विपरीत, सूक्ष्म उद्यमों से लेकर बड़ी कंपनियों तक, आश्चर्यजनक ‘प्ले-फेयर’ भारतीय व्यवसायों की एक बड़ी संख्या है, लेकिन आप चुप हैं. आप एक दमनकारी व्यवस्था में बने हुए हैं.”
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गांधी ने पीयूष बंसल का उदाहरण दिया, जो बिना किसी राजनीतिक संपर्क वाले पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं, जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में व्यवसाय शुरू किया था. बंसल ने 2010 में लेंसकार्ट की सह-स्थापना की, जिसने आईवियर क्षेत्र को नया रूप दिया, गांधी ने कहा, आज लेंसकार्ट पूरे भारत में हजारों लोगों को रोजगार प्रदान करता है.
उन्होंने कहा, “फिर फ़कीर चंद कोहली को ही लीजिए, जिन्होंने मैनेजर के तौर पर 1970 के दशक में टाटा कंसल्टेंसी का निर्माण किया था. यह डर पर महत्वाकांक्षा की जीत थी, आईबीएम और एक्सेंचर जैसी दिग्गज कंपनियों से उनके घर में ही मुकाबला करने का साहस था. टीसीएस और अन्य अग्रदूतों ने वैश्विक आईटी सेवाओं को एक बुटीक प्रक्रिया से औद्योगिक प्रक्रिया में बदल दिया. मैं बंसल या दिवंगत एफसी कोहली को व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं जानता. यह अच्छी तरह से हो सकता है कि उनकी राजनीतिक प्राथमिकताएं मेरी पसंद से अलग हों. तो क्या हुआ?”
उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि युवा वर्ग से टाइनोर, इनमोबी, मान्यवर, जोमैटो, फ्रैक्टल एनालिटिक्स, अराकू कॉफी, ट्रेडेंस, अमागी, आईडी फ्रेश फूड, फोनपे, मोग्लिक्स, सुला वाइनयार्ड्स, जसपे, जीरोधा, वेरिटास, ऑक्सीजो, एवेंडस जैसी कंपनियां और पुराने वर्ग से एलएंडटी, हल्दीराम, अरविंद आई हॉस्पिटल, इंडिगो, एशियन पेंट्स, एचडीएफसी समूह, बजाज ऑटो और बजाज फाइनेंस, सिप्ला, महिंद्रा ऑटो, टाइटन जैसी कंपनियां – जिनमें से अधिकांश को मैं व्यक्तिगत रूप से शायद ही जानता हूं – उन घरेलू कंपनियों का एक छोटा सा नमूना हैं, जिन्होंने इनोवेटेड (नवाचार) किया है और नियमों के अनुसार काम करना चुना है.”
गांधी ने कहा कि उन्हें यकीन है कि उन्होंने सैकड़ों ऐसे नाम छोड़ दिए होंगे जो इस सूची में और भी बेहतर फिट बैठते.
मेरी राजनीति हमेशा कमज़ोर और बेज़ुबानों की रक्षा के लिए-Rahul Gandhi
उन्होंने कहा-“मेरी राजनीति हमेशा कमज़ोर और बेज़ुबानों की रक्षा करने के बारे में रही है. मैं गांधी जी के शब्दों से प्रेरणा लेता हूं कि ‘पंक्ति’ में आखिरी बेज़ुबान व्यक्ति की रक्षा करनी चाहिए. इस दृढ़ विश्वास ने मुझे मनरेगा, भोजन का अधिकार और भूमि अधिग्रहण विधेयक का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया. मैं नियमगिरि के प्रसिद्ध टकराव में आदिवासियों के साथ खड़ा था. मैंने तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ़ अपने किसानों के संघर्ष का समर्थन किया. मैंने मणिपुर के लोगों का दर्द सुना.”
उन्होंने कहा, “लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मैं गांधीजी के शब्दों की पूरी गहराई को समझने से चूक गया था. मैं यह समझने में विफल रहा कि ‘रेखा’ एक रूपक है, वास्तव में समाज में कई अलग-अलग ‘रेखाएं’ हैं. आप जिस ‘रेखा’ में खड़े हैं, वह व्यवसाय की है, उसमें आप ही शोषित हैं, वंचित हैं.”
गांधी ने कहा कि उनकी राजनीति का लक्ष्य ऐसे व्यापारियों को वह सब प्रदान करना होगा, जिससे उन्हें निष्पक्षता और काम करने की स्वतंत्रता से वंचित रखा गया है.
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उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को सभी अन्य की कीमत पर एक व्यवसाय का समर्थन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, व्यापार प्रणाली में बेनामी समीकरणों का समर्थन तो बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकारी एजेंसियां व्यवसायों पर हमला करने और उन्हें डराने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार नहीं हैं.
गांधी ने कहा, “ऐसा कहने के बावजूद, मेरा मानना है कि डर को आपसे हटाकर इन बड़े एकाधिकारवादियों में नहीं डाला जाना चाहिए. वे बुरे व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि हमारे सामाजिक और राजनीतिक माहौल की कमियों का नतीजा हैं. उन्हें जगह मिलनी चाहिए और आपको भी. यह देश हम सभी के लिए है.”
सौजन्य-इंडियन एक्सप्रेस
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