Saturday, April 12, 2025

राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति के लिए भी आरक्षित विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय, 3 महीने में लेना होगा फैसला : Supreme Court

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय Supreme Court ने कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर, उसे भेजे जाने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए.

8 अप्रैल को ही 10 विध्यकों को मंजूरी दे चुका है-Supreme Court

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को 415 पृष्ठों के फैसले में 10 विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिन्हें तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रख लिया था.
उन्होंने सभी राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए एक समयसीमा निर्धारित की और कहा, “हम गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समयसीमा को अपनाना उचित समझते हैं और निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर उस तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है, जिस दिन ऐसा संदर्भ प्राप्त होता है.” शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी देरी के मामले में, राज्य सरकार को उचित कारण बताया जाना चाहिए.
यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लेते हैं और राष्ट्रपति उस पर अपनी स्वीकृति रोक लेते हैं, तो राज्य सरकार अदालत में कार्रवाई कर सकती है.

3 महीने में नहीं लिया फैसला तो कोर्ट करेगा समिक्षा

संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल प्रस्तुत विधेयक को स्वीकृति दे सकते हैं, या स्वीकृति रोककर उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकते हैं. राज्यपाल ‘पूर्ण वीटो’ का उपयोग नहीं कर सकते हैं. संविधान में स्वीकृति प्रदान करने के लिए समय अवधि का उल्लेख नहीं है, लेकिन किसी विधेयक को “अनावश्यक रूप से लंबे समय तक” विलंबित करना “राज्य की कानून बनाने वाली मशीनरी में बाधा उत्पन्न करने” के रूप में माना जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय ने समय-सीमा निर्धारित की और कहा कि इसका अनुपालन न करने पर राज्यपालों की निष्क्रियता न्यायालयों द्वारा न्यायिक समीक्षा के अधीन हो जाएगी.
न्यायालय ने कहा, “राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर, राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को मंजूरी न दिए जाने या आरक्षित रखे जाने की स्थिति में, राज्यपाल से ऐसी कार्रवाई तत्काल करने की अपेक्षा की जाती है, जो अधिकतम एक महीने की अवधि के अधीन है.” पीठ ने कहा, “राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत मंजूरी न दिए जाने की स्थिति में, राज्यपाल को अधिकतम तीन महीने की अवधि के भीतर एक संदेश के साथ विधेयक को वापस करना चाहिए.” पीठ ने कहा कि राज्यपाल विधेयकों पर बैठकर “पूर्ण वीटो” या “पॉकेट वीटो” की अवधारणा को नहीं अपना सकते, क्योंकि उनकी संवैधानिक शक्तियों का मनमाने ढंग से उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

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