Parliament Session: समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मंगलवार रात को वक्फ अधिनियम में संशोधन करने वाला विधेयक लोकसभा के सदस्यों के बीच प्रसारित किया गया. पीटीआई के अनुसार, इस कानून का नाम बदला जाना तय है, साथ ही इसमें ‘दूरगामी’ बदलाव भी देखने को मिलेंगे, जिसमें मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिमों को ऐसे निकायों में प्रतिनिधित्व देना शामिल है.
वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995’ रखा जाना तय है.
Parliament Session: आरएसपी करेगी वक्फ अधिनियम का विरोध
आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने कहा, “उन्होंने (सरकार ने) पहले ही एक नए नाम और कई संशोधनों के साथ विधेयक को प्रसारित कर दिया है, जो मौजूदा वक्फ बोर्ड और परिषदों को शक्तिहीन कर रहे हैं. यह देखना बहुत दिलचस्प है कि गैर-मुस्लिमों को भी वक्फ बोर्ड में शामिल किया गया है. यह संविधान के अनुच्छेद 26 में परिकल्पित धार्मिक स्वतंत्रता है और यह एक विशेष धर्म या समुदाय के अधिकार का उल्लंघन है. यह मौलिक अधिकारों के खिलाफ है… इसलिए, हम इसका कड़ा विरोध करेंगे.”
आरजेडी-एसपी पहले ही कर चुकें है वक्फ अधिनियम का विरोध
इससे पहले आरजडी, समाजवादी पार्टी वक्फ अधिनियम को लेकर अपना रुख साफ कर चुकीं है.
तेजस्वी यादव ने साफ कहा था कि, “केंद्र सरकार जनहित के काम नहीं करती, उन्हें महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी से कोई मतलब नहीं है… वे सिर्फ ध्रुवीकरण, हिंदू-मुसलमान करके अपनी राजनीति करना चाहते हैं. भाजपा के लोगों को पहले बताना चाहिए कि जो आरक्षण हमने बढ़ाया उसे वे 9वीं अनुसूचि में क्यों नहीं डाल रहे? बिहार के विशेष राज्य के दर्जे के वादे का क्या हुआ?”
वहीं, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि, “यह सरकार पक्षपात कर रही है, कुछ वर्गों के साथ अन्याय कर रही है. सरकार बनने के बाद सरकार जनता की होती है लेकिन यह सरकार चुन-चुनकर कुछ वर्गों के साथ पक्षपात कर रही है.”
सूफी संगठन ने केंद्र की वक्फ बोर्ड विधेयक का किया समर्थन
हलांकि ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल ने मंगलवार को वक्फ बोर्डों की शक्तियों पर अंकुश लगाने के केंद्र के कथित कदम का समर्थन किया. एक बयान में, एआईएसएससी के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि इस विधेयक की लंबे समय से प्रतीक्षा थी और देश भर की दरगाहें इस कदम का समर्थन कर रही हैं.
एआईएसएससी के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मौजूदा वक्फ अधिनियम में दरगाहों का कोई उल्लेख नहीं है. वक्फ बोर्ड दरगाह की परंपराओं को मान्यता नहीं देते हैं क्योंकि हमारी कई परंपराएं शरिया में नहीं हैं, इसलिए हम एक अलग दरगाह बोर्ड की मांग करते हैं.”