कोटा:कोचिंग और कॉम्पिटिशन के नाम पर लगातार बढ़ रही स्टूडेंट्स की खुदकुशी की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट Supreme Court का बड़ा बयान आया है. इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोचिंग संस्थानों को इसका दोषी ठहराने से साफ इनकार किया है, उलटा बच्चों के माता-पिता को इसका जिम्मेदार ठहराया है. सुप्रीम कोट के बयान के मुताबिक, कोटा में पढ़ रहे छात्रों के माता-पिता की उनसे ज्यादा उम्मीदें ही, उन्हें अपना जीवन समाप्त करने के लिए प्रेरित कर रही है.
Supreme Court ने जनहित याचिकाओं पर की सुनवाई
मुंबई के एक डॉक्टर अनिरुद्ध नारायण मालपानी ने एक जनहित याचिका दायर की थी. अदालत उसी जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें उन्होंने कहा बच्चों को “वस्तु” के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्हें स्वार्थी लाभ के लिए तैयार करके छात्रों को मौत के मुंह में धकेलने के लिए कोचिंग संस्थानों को दोषी ठहराया गया था. इसे लेकर अधिवक्ता मोहिनी प्रिया द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कोटा में आत्महत्याओं ने सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन यह घटना सभी निजी कोचिंग संस्थानों के लिए आम है और ऐसा कोई कानून या विनियमन नहीं है जो उन्हें जवाबदेह ठहराए. समस्या अभिभावकों की है, कोचिंग संस्थानों की नहीं. पीठ में शामिल जस्टिस एसवीएन भट्टी ने कहा कि यह आत्महत्याएं कोचिंग इंस्टिट्यूट की वजह से नहीं हो रही है, बल्कि इसलिए हो रही हैं, क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते.
आजकल परीक्षाओं में प्रतिस्पर्धात्मक काफी बढ़ गई
इसके जवाब में पीठ ने कहा कि, हममें से ज्यादातर लोग अपने बच्चों को कोचिंग संस्थानों में नहीं रखना चाहेंगे, मगर आजकल परीक्षाओं में प्रतिस्पर्धात्मक काफी बढ़ गई है. इसी के साथ ही बच्चों से माता-पिता की उम्मीदें भी काफी बढ़ गई है, जो उनपर बोझ बन गई है. इसके साथ ही न्यायालय ने याचिकाकर्ता को राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का सुझाव भी दिया, क्योंकि याचिका में जिस आत्महत्या की घटना का जिक्र है वह काफी हद तक कोटा से संबंधित हैं. इस वर्ष अबतक राजस्थान के कोटा जिले में लगभग 24 आत्महत्याओं की सूचना मिली है.
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