मणिपुर में बड़े पैमाने पर विरोध और हिंसा हो रही है. अधिकारियों ने देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए हैं और सेना को बुला लिया गया है. पड़ोसी राज्यों के साथ साथ अब बिहार जैसे राज्य भी अपने लोगों को लेकर चिता जताने लगे है. बिहार के सीएम मणिपुर हिंसा पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने मणिपुर से बिहार के लोगों की सुरक्षित वापसी का समुचित इंतजाम करने के निर्देश दिया है.
3 मई से पूरे मणिपुर में हिंसा का दौर जारी
3 मई से मणिपुर में हिंसा हो रही है. सशस्त्र भीड़ गांवों पर हमला कर रही है, घरों में आग लगा दी जा रही है, दुकानों में तोड़फोड़ की जा रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि सैकड़ों लोग मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
ATSUM की आह्वान पर जुटी हजारों की भीड़
सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि मणिपुर जल उठा. तो इस मामले की जड़ में मेइती समुदाय और इसका विरोध करने वाले अन्य जनजातीय समूह है. मेईती समुदाय की मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए. हिंसा शुरू हुई 3 मई को जब मणिपुर के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (ATSUM) द्वारा आहूत जनजातीय एकजुटता मार्च के लिए चुराचांदपुर के टोरबंग क्षेत्र में मेइती को एसटी वर्ग शामिल किए जाने के विरोध में हजारों लोग शामिल हुए थे.
अब सवाल ये की वास्तव में मैतेई कौन हैं? वह अनुसूचित जनजाति का दर्जा क्यों मांग रहे हैं? अन्य आदिवासी समूह इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
मैतई आबादी के अनुपात में कर रहे हैं हिस्सेदारी की मांग
तो आपको बता दें मेइतेई मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है. वे राजधानी इंफाल में प्रमुख हैं और आमतौर पर मणिपुरी कहलाते हैं. 2011 की अंतिम जनगणना के अनुसार, वे राज्य की आबादी का 64.6 प्रतिशत हैं, लेकिन मणिपुर के लगभग 10 प्रतिशत भूभाग पर ही उनका कब्जा हैं.
दूसरी ओर, नागा और कुकी के रूप में जाने जाने वाले आदिवासी हैं, जिनकी आबादी लगभग 40 प्रतिशत है, लेकिन वे मणिपुर की 90 प्रतिशत भूमि उनके पास है.
मणिपुर की 90 % भूमि पर नागा-कुकी का वर्चस्व
बात अगर धर्म की करें तो ज्यादातर मैतेई हिंदू हैं, जबकि नागा और कुकी-ज़ोमिस मुख्य रूप से ईसाई हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, मणिपुर में हिंदुओं और ईसाइयों की लगभग समान आबादी है, यानी दोनों लगभग 41 प्रतिशत है.
बहुसंख्यक समुदाय होने के अलावा, मेइती लोगों का मणिपुर की विधानसभा में भी अधिक प्रतिनिधित्व है. ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 40 इंफाल घाटी क्षेत्र से हैं – ये वो क्षेत्र है जिसे ज्यादातर मैतेई लोगों ने बसाया है.
आज तक, नागा और कुकी-ज़ोमी जनजातियों की 34 उप-जनजातियाँ सरकार की अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, लेकिन मेइती नहीं हैं. हालांकि, मेइती लंबे समय से अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग कर रहे हैं, उनका तर्क है कि इसे बाहरी लोगों की आमद और “घुसपैठ” से बचाने की जरूरत है.
जमीन की लड़ाई ने तबाह हो रहा है मणिपुर
असल में इस संघर्ष की नीव 2012 में पड़ गई थी. जब मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति के महासचिव के भोगेंद्रजीत सिंह ने कहा था कि, “भारत का कोई भी नागरिक, जिसमें हमारे अपने पहाड़ी लोग भी शामिल हैं, इंफाल में आकर बस सकते हैं.”
इस एलान से मेइती समुदाय नाराज गया था उसका कहना है कि आदिवासी इंफाल घाटी में ज़मीन खरीद रहे हैं, लेकिन उन्हें पहाड़ियों में जाने की अनुमति नहीं है.
लेकिन हाल फिलहाल में उच्च न्यायालय के मेइती को एसटी में शामिल करने को लेकर सरकार को दिए निर्देश के बाद विवाद एकदम से भड़क गया.
हिंसा के लिए दोनों पक्ष एक-दूसरे को बता रहे हैं जिम्मेदार
हिंसा को लेकर दोनों तरफ के लोग अपनी अलग कहानी सुना रहे है. एटीएसयूएम ने चुराचांदपुर के तोरबंग क्षेत्र में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकालने के बाद हिंसा भड़की. ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन निहसियाल ने हिंसा के बारे में कहा कि मार्च समाप्त होने के एक घंटे बाद, मैतेई लोगों का एक समूह बंदूकें लहराते हुए कुकी गांवों में घुस गया और उनके घरों में आग लगा दी. जबकि, मैतेई समुदाय का कहना है कि कुकी ही मैतेई गांवों में घुसे, घरों में आग लगा दी, संपत्तियों में तोड़फोड़ की और उन्हें भगा दिया.
साफ शब्दों में कहें तो लड़ाई संसाधनों और ज़मीन पर अधिकार की है. मेतई जहां आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी की मांग कर रहे है. वहीं आदीवासी जल, जंगल और ज़मीन पर अपना अधिकार छोड़ने या बांटने तैयार नहीं है.
ये भी पढ़ें- Karnataka Election: मतदान से पहले कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर चलाया हैशटैग #BJPRateCard, जानिए…