लोकतंत्र को अगर सबसे आसान शब्दों में किसी ने परिभाषित किया है तो वो हैं अब्राहम लिंकन, जिनके मुताबिक लोकतंत्र का मतलब है सरकार जो जनता से हो, जनता के द्वारा हो और जनता के लिए हो यानी (Democracy is a government of the people, by the people and for the people’) तो 28 मई को लोकतंत्र के इतने महत्वपूर्ण दिन पर जनता के द्वारा बनाई सरकार तो जश्न मना रही होगी. लेकिन जनता से चुना गया विपक्ष मौजूद नहीं होगा. और जिस जनता के लिए ये सरकार बनी थी वो नए संसद भवन के बाहर अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रही होगी.
क्या होगी 28 मई की तीन प्रमुख तस्वीरें
28 मई 2023, देश के इतिहास में ये एक विशेष दिन होगा. एक ऐसा दिन जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने नए संसद भवन का उद्घाटन होता देखेगा. ये मौका होगा आजादी के बाद हुई देश की तरक्की, लोकतंत्र की मजबूती और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए किए गए हमारे नेताओं के संघर्षों और बलिदानों का जश्न मनाने का. लेकिन क्या हम ऐसा कर पाएंगे…ये सवाल इसलिए कि उस दिन जो तस्वीर हमारे सामने होगी उसमें एक होगी पीएम मोदी की जो नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे होंगे…..दूसरी तस्वीर होगी खाली पड़ी विपक्षी कुर्सियों की जो इस उद्घाटन समारोह का विरोध कर रहे होंगे और तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण तस्वीर होगी. संसद के बाहर की जहां महिला पहलवान अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले को लेकर इंसाफ की मांग कर रही होंगी. जी हां देश की 19 विपक्षी पार्टियों ने 28 मई के कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला कर लिया है.
किन 19 पार्टियों ने किया नई संसद के उद्घाटन के बहिष्कार का एलान
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक), जनता दल (यूनाइटेड), आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा, नेशनल कांफ्रेंस, केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची (वीसीके), एमडीएमके और राष्ट्रीय लोकदल ने संयुक्त रूप से बहिष्कार की घोषणा की है.
इसके साथ ही एक विरोध कर रही इन पार्टियों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है. बयान काफी लंबा है लेकिन जो इस बयान की सबसे महत्वपूर्ण बाते हैं वो इस प्रकार है. बयान में कहा गया है कि ‘राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नए संसद भवन का उद्घाटन करने का पीएम मोदी का निर्णय न केवल राष्ट्रपति का घोर अपमान है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो इसके अनुरूप प्रतिक्रिया की मांग करता है.
हम इस निरंकुश प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे-विपक्ष
विपक्ष का कहना है कि, “जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से निकाल दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता. हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि हम इस निरंकुश प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे और अपना संदेश सीधे भारत के लोगों तक ले जाएंगे.”
यानी विपक्ष ने बिना लाग लपेट साफ कर दिया है कि वो पीएम मोदी के द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल नहीं होगा. विपक्ष के तर्कों को अगर दरकिनार भी कर दिया जाए तो दो ऐसी बातें हैं तो संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों कराने की मांग को बल देती है.
क्यों राष्ट्रपति को ही करना चाहिए था नई संसद का उद्घाटन
पहली ये कि राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं. इसलिए संसद का उद्घाटन उनका अधिकार है. दूसरा ये कि प्रधानमंत्री देश के नेता होने के साथ-साथ अपनी पार्टी के प्रतिनिधि होते हैं. वो चुनावों में अपनी पार्टी का प्रचार करते हैं जबकि राष्ट्रपति दलगत राजनीति से ऊपर होती हैं.
खैर ये तो बात हुई आदर्श स्थिति की. अगर बात राजनीति की भी कर लें तो नई संसद का उद्घाटन एक ऐसा मौका भी है जब भारत दुनिया को अपने लोकतंत्र की ताकत दिखा सकता था. उसके जश्न की तस्वीरों से विदेशी धरती पर भारत का डंका क्या खूब बजता लेकिन अब अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संसद भवन के उद्घाटन पर विपक्ष के बहिष्कार की खबरों से भरा होगा. हो सकता है इसे प्रधानमंत्री मोदी की तानाशाही और अहंकार भी कहा जाए. यानी जिस मौके पर लोकतंत्र में हमारी प्रतिबद्धता दिखाई जाती, अब उसका बिखराव नज़र आएगा.
पहलवानों का प्रदर्शन लगाएगा संसद भवन की शान पर ग्रहण
दूसरी तस्वीर संसद भवन के बाहर की होगी. 23 मई को दिल्ली में कुश्ती महासंघ अध्यक्ष के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों ने 28 मई को नए संसद भवन के सामने महिला महापंचायत करने का फैसला किया है. जंतर मंतर से इंडिया गेट तक मार्च के समापन के बाद मंगलवार को पहलवान विनेश फोगाट ने पत्रकारों से कहा, “हमने 28 मई को नई संसद के सामने शांतिपूर्ण महिला महापंचायत आयोजित करने का फैसला किया है.”
यानी देश का सम्मान बढ़ाने वाली महिलाएं जब यौन हिंसा के खिलाफ इंसाफ मांगने निकलेंगी तो तस्वीरें सुखद तो नहीं होंगी. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले संसद भवन के निर्माण को मोदी सरकार विकास की यात्रा में मील के पत्थर की तरह पेश करना चाहती थी. पर विपक्ष का बहिष्कार इसे सिर्फ एक विवाद बना कर छोड़ देगा. सरकार ने फिलहाल तो विपक्ष के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए विपक्षी पार्टियों को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है.
अब भी फैसला बदल खेल पलट सकते है मोदी
हलांकि बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान इस टकराव को बढ़ा सकते हैं. जैसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का बयान जिन्होंने कहा कि, “बहिष्कार तो होना ही था. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि भवन का निर्माण इतनी जल्दी पूरा हो जाएगा. सिर्फ अपना चेहरा बचाने के लिए बहिष्कार का नाटक कर रहे हैं.”
वैसे अभी भी समय बाकी है, प्रधानमंत्री चाहें तो खुद पीछे हट कर , राष्ट्रपति या लोकसभा के स्पीकर से इसका उद्घाटन करवा कर, अपनी सरकार के इस महत्वपूर्ण काम को विवाद से निकाल विकास की तस्वीर के रूप में पेश कर सकते हैं. अगर पीएम ऐसा करते हैं तो वह न सिर्फ अपनी विनम्र छवि बना पाएंगे बल्कि विपक्ष की बाउंसर पर जीत का छक्का भी लगा सकते हैं.
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