नई दिल्ली । पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऐसा कदम उठाया है, जिसकी गूंज इस्लामाबाद की सत्ता तक सुनाई दी है। भारत सरकार ने पहली बार सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है। यह वहीं समझौता है, जो 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था और दशकों तक समझौते को दोनों देशों ने निभाया, चाहे हालात युद्ध जैसे क्यों न रहे हों। लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के निर्णय ने पाकिस्तान को हिला दिया है। पाकिस्तान के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत ने सिंधु नदी के पानी को रोकने या मोड़ने की कोशिश की, तब पाकिस्तान अपनी पूरी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है, जिसमें परमाणु हथियारों का उपयोग शामिल है। भारत सरकार के कदम को पाकिस्तान ने युद्ध की कार्रवाई करार देकर चेतावनी दी है कि अगर जल आपूर्ति पर कोई भी खतरा मंडराया, तब इस्लामाबाद तुरंत प्रतिक्रिया देगा। जुलाई से इस संकट का असर दिख सकता है, और यह कदम पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था और पानी की आपूर्ति के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।
मोदी सरकार के फैसले ने पाकिस्तान की चिंता को चरम पर पहुंचा दिया है। सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब जैसी पश्चिमी नदियों से अधिकतर पानी मिलता है। यही पानी पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था की रीढ़ है। भारत के इस फैसले से डर है कि अब उसकी खेतों को सींचने वाली धाराएं सूख सकती हैं। पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा, खासकर पंजाब और सिंध प्रांत, इन नदियों पर पूरी तरह निर्भर है। यदि भारत जल प्रवाह को सीमित करता है या मोड़ता है, तो पाकिस्तान में खाद्य संकट के हालात भी पैदा हो सकते हैं।
पाकिस्तानी मीडिया और रक्षा विशेषज्ञों ने इतना तक कह दिया कि अगर भारत ने डैम बनाना शुरू किया या जल को रोकने की कोई कोशिश की, तब पाकिस्तान सैन्य कार्रवाई कर सकता है।
भारत के इस कदम से पाकिस्तान में बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी है। भारत हर साल मानसून से पहले पाकिस्तान को बाढ़ संबंधी आंकड़े उपलब्ध कराता रहा है। अगर भारत यह डेटा शेयर करना बंद करता है, तब पाकिस्तान बिना किसी पूर्व चेतावनी के प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ सकता है। तीन साल पहले आई भीषण बाढ़ में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही बुरी तरह लड़खड़ा चुकी है। अब यदि भविष्य में बाढ़ की जानकारी समय पर नहीं मिली, तब हालात और बदतर हो सकते हैं। भारत के इस निर्णय को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह बात सामने आ रही है कि यह फैसला सिर्फ एक जल समझौते को लेकर नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ भारत की नई नीति का प्रतीक है। पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवादी संगठनों को शरण देने के आरोपों से घिरा रहा है और बार-बार चेतावनी के बावजूद आतंकी हमलों में शामिल रहा है। अब भारत ने सीधे उसकी जीवनरेखा-पानी- को निशाना बना दिया है।
पाकिस्तान के पूर्व सिंधु जल आयुक्त जमात अली शाह ने बयान में कहा है कि भारत एकतरफा इस संधि को रद्द नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक स्थायी समझौता है और इसके लिए दोनों देशों की सहमति आवश्यक है। हालांकि भारतीय अधिकारियों का तर्क है कि भारत ने पूरी तरह रद्द नहीं किया, बल्कि स्थगित किया है, यानी जब तक पाकिस्तान अपनी आतंक-समर्थन की नीति नहीं बदलता, तब तक सहयोग की कोई गुंजाइश नहीं है। भारत ने संकेत दिए हैं कि यह स्थगन पश्चिमी नदियों पर चल रही भारत की जल परियोजनाओं को तेज़ी देने के लिए भी रास्ता खोलता है। पाकल दुल, रतले, किरू और सावलकोट जैसे डैम और पनबिजली प्रोजेक्ट्स अब प्राथमिकता के साथ पूरे हो सकते हैं, जिससे पाकिस्तान को भविष्य में पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
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