Friday, November 8, 2024

CASTE CENSUS: राहुल गांधी ने बीजेपी को उनके ही मुद्दे पर दी पटखनी, क्या ओबीसी की गिनती बताएंगे मोदी?

जितनी आबादी, उतना हक’, क्या यही होने जा रहा है 2024 का नारा? क्या ये नारा खोल देगा सत्ता के द्वार? क्या सेट हो गया है 2024 का एजेंडा? क्या राहुल बीजेपी को उसी के मुद्दे पर घेर सकेंगे? इन सभी सवालों के जवाब तब मिलेंगे जब जाति जनगणना पर बीजेपी अपने पत्ते खोलेगी.

राहुल गांधी ने बीजेपी को उनके मुद्दे पर घेरा

रविवार 16 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार की रैली में मोदी सरनेम पर टिप्पणी के मामले में जवाब देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अगर पीएम मोदी खुद को ओबीसी मानते हैं और ओबीसी समाज के हितैषी हैं तो 2011 में यूपीए सरकार के समय हुए जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करें. राहुल ने कहा जब विपक्ष अडानी मामले पर जेपीसी-जेपीसी बोल रहा था तो बीजेपी ओबीसी-ओबीसी बोल रही थी. अब अगर बीजेपी कहती है कि उसे ओबीसी समाज की चिंता है और इसके बाद भी वो जाति जनगणना के आंकड़े नहीं बताती है तो यह ओबीसी समाज का अपमान होगा. राहुल गांधी ने एससी, एसटी को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने और आरक्षण पर 50% की अधिकतम सीमा को खत्म करने की मांग भी कर डाली. कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाने के साथ ही साथ एक नारा भी दिया है ‘जितनी आबादी, उतना हक’.

नीतीश कुमार करा रहे है बिहार में जाति जनगणना

वैसे अगर देखें तो ये मांग कोई नई नहीं है. बिहार में तो इस साल के शुरूआत में ही जाति जनगणना शुरू कर दी गई है. पिछले हफ्ते इस जनगणना के दूसरे चरण में खुद सीएम नीतीश कुमार ने जनगणना अधिकारियों को अपनी जानकारियां उपलब्ध कराई थी. बिहार में तो एक लंबे समय से जाति जनगणना की मांग हो रही है. कई बार वहां का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली आकर प्रधानमंत्री से भी मिला लेकिन जब केंद्र सरकार नहीं मानी तब नीतीश कुमार ने महागठबंधन की नई सरकार में अपने दम पर जाति जनगणना शुरू करवा दी. इसी तरह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी जाति जनगणना की मांग की थी. सब जानते हैं कि जाति जनगणना को लेकर बीजेपी सहज नहीं है. इसके साथ ही सभी को ये भी पता है कि बीजेपी के हिंदुत्व का अगर कोई तोड़ है तो वो जाति आधारित राजनीति ही है.

मंडल का विरोध किया, अब जाति जनगणना का विरोध करेगी बीजेपी?

जब मंडल कमीशन लागू हुआ था उसका सबसे ज्यादा फायदा भी आरजेडी, समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों को ही हुआ था. तब बीजेपी आरक्षण के खिलाफ थी लेकिन इस बार बीजेपी जाति जनगणना का खुल कर विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकती. उसे पता है कि इसका विरोध मतलब ओबीसी और आदिवासी वोट से हाथ धोना. जो बीजेपी बिलकुल नहीं चाहेगी. इसलिए बिहार में जब ये मुद्दा उठ रहा था तब बीजेपी नेता दबी आवाज में जाति जनगणना को देश को तोड़ने वाला और समाज में असंतुलन पैदा करने और अराजकता बढ़ाने वाला बता रहे थे. बीजेपी के इस तर्क पर विपक्ष का कहना है बीजेपी जो हिंदू-मुसलिम की राजनीति करती है उससे भी तो समाज में नफरत फैलता है और अराजकता बढ़ती है. फिर जब धर्म की राजनीति अच्छी है तो जाति की क्यों नहीं.

वैसे ऐसा नहीं है कि बीजेपी हमेशा से जाति जनगणना के खिलाफ थी. बीजेपी के नेता, गोपीनाथ मुंडे ने 2011 की जनगणना से ठीक पहले 2010 में संसद में कहा था, “अगर इस बार भी जनगणना में हम ओबीसी की जनगणना नहीं करेंगे, तो ओबीसी को सामाजिक न्याय देने में और 10 साल लग जाएंगे, हम उन पर अन्याय करेंगे.” इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी खुद को ओबीसी बताते हैं लेकिन जाति जनगणना के मुद्दे पर वो हमेशा शांत रहते हैं.

जाति जनगणना से बीजेपी को डर क्यों लगता है?

अब सवाल उठता है कि आखिर जाति जनगणना को लेकर सत्तारूढ़ दल में इतनी हिचक क्यों है. तो जानकारों का मानना है कि भारत में ओबीसी आबादी कितनी है, इसका कोई ठोस प्रमाण फिलहाल नहीं है. मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है. हालांकि, मंडल कमीशन ने साल 1931 की जनगणना को ही आधार माना था. केंद्र सरकार अभी भी जाति के आधार पर कई नीतियां तैयार करती है जिसका आधार 1931 की जनगणना है. ताजा उदाहरण नीट परीक्षा का ही है, जिसमें मोदी सरकार ने ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने की बात कही है.

यानी की नीतियों के सही निर्धारण के लिए जाति जनगणना ज़रूरी है तो फिर सवाल उठता है कि सरकार इसके खिलाफ क्यों है. तो माना जाता है कि अगर ओबीसी आबादी जिसे अभी तकरीबन 52 प्रतिशत माना जाता है अगर जाति जनगणना में वो मात्र 40 प्रतिशत ही निकलती है तो ओबीसी नेता जाति जनगणना के निष्पक्ष होने पर सवाल उठा देंगे. और अगर ये बढ़कर 60 प्रतिशत होती है तो फिर जैसा कि नारा दिया जा रहा है जितनी आबादी, उतना हक की तर्ज पर बढ़े हुए आरक्षण की मांग होने लगेगी. इसके साथ ही जो जातियां जनगणना में कमज़ोर पाई जाएंगी उनको राजनीतिक दल अपना निशाना बना लेंगे जिससे सबका विकास वाले मंत्र का पालन करना मुश्किल हो जाएगा.

क्या जाति से टूटेगा धार्मिक ध्रुवीकरण का चक्रव्यूह

इसके साथ ही बीजेपी जो हिंदू एकता की बात कहती है वो जाति जनगणना से बिखर जाएगी. जैसा कि उम्मीद है कि ब्राह्मण जो वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊपर हैं, नंबर में कम होने के बाद भी सबसे ज्यादा संपन्न पाए जाएंगे. वैसे ही क्षत्रिय और वैश्य भी. ऐसे में समाज के निचले पायदान पर रहने वाला दलित जो गिनती में ज्यादा होने के बाद भी सबसे दबा कुचला पिछड़ा निकलेगा तो समाज में खलबली मच जाएगी. इसलिए बीजेपी कतई नहीं चाहती कि धर्म से हटकर मामला जाति पर जाए लेकिन विपक्ष भी जाति कार्ड की ताकत को बहुत अच्छे से जानता है और वो इसे इस बार 2024 का मुख्य मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश करेगा.

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