प्रधानमंत्री मोदी 22 जून 2023 को अमेरिका दौरे पर जाने वाले हैं. इस यात्रा के दौरान वो व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति बाइडेन के साथ ऑफिशयल डिनर में भी शामिल होंगे. यानी ये एक और मौका होगा जब प्रधानमंत्री देश को यकीन दिलायेंगे कि दुनिया में कैसे भारत का डंका बज रहा है. लेकिन प्रधानमंत्री के इस दौरे से पहले अमेरिका द्वारा जारी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2022 की रिपोर्ट, G20 के कश्मीर में आयोजन पर आपत्ति और ग्लोबल मीडिया वॉचडॉग रिपोर्ट्स में भारत का 3 खतरनाक देशों में शामिल होना ऐसे कुछ मुद्दे हैं जो पीएम मोदी के विश्व गुरु बनने के सपने पर पानी फेर सकते हैं.
पीएम के अमरीका दौरा से पहले उठे कई सवाल
प्रधानमंत्री मोदी के लिए 2019 की तरह 2024 आसान नहीं होने वाला है. पीएम के हर कदम पर विपक्ष उन मुद्दों को गंभीरता से जरूर उठाएगा जो मोदी मैजिक को काउंटर करते है. ऐसे में पीएम का अमेरिका दौरा भी काफी विवाद और चर्चा में रहने वाला है. खासकर तब जब इस दौरे से पहले ही अमेरिका, यूएन और ग्लोबल मीडिया वॉचडॉग ने भारत में प्रेस की आज़ादी, अल्पसंख्यकों के नरसंहार और कश्मीर में मानव अधिकारों से जुड़े मामलों को लेकर भारत पर सवाल उठा दिए हैं.
इसके साथ राहुल गांधी भी पीएम के अमेरिका दौरे के मज़े को किरकिरा कर सकते हैं. लेकिन इससे पहले कि हम बताएं की राहुल गांधी ऐसा क्या करने जा रहे हैं कि पीएम का अमेरिकी दौरे का मज़ा खराब हो सकता है. पहले आपको बताते हैं सोमवार को आई अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2022 की अमेरिकी विभाग की रिपोर्ट की.
अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी विभाग की रिपोर्ट करा सकती है किरकिरी
तो इस सोमवार यानी 15 मई को अमेरिकी विदेश विभाग की एक रिपोर्ट जारी की गई. इस रिपोर्ट में ईसाई, मुस्लिम, सिख, हिंदू दलित और स्वदेशी समुदायों सहित भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर “लगातार हो रहे टारगेटेड हमले” पर रोशनी डाली गई है. अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2022 की रिपोर्ट में रूस और चीन का भी नाम है. अमेरिकी होलोकॉस्ट संग्रहालय की प्रारंभिक चेतावनी परियोजना में सबसे ज्यादा सामूहिक हत्या हो सकने वाले संभावित 162 देशों में भारत को 8 वें स्थान पर रखा गया है. अधिकारी ने कहा कि अपनी रिपोर्ट में, विदेश विभाग ने “मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार, लिंचिंग और अन्य घृणा फैलाने वाली हिंसा के लिए खुले आह्वान सहित अमानवीय बयानबाजी” का जिक्र भी किया है.
इसके अलावा धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों में शामिल लोगों के लिए दण्ड से मुक्ति और यहां तक कि क्षमादान जैसे मामलों की भी चर्चा की गई है. जैसे बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों का छोड़ा जाना. सीधे शब्दों में कहें तो रिपोर्ट मानती है कि दुनिया के 162 देशों में से भारत तीसरे नंबर का देश है जहां सांप्रदायिक दंगे और अल्पसंख्यकों का नरसंहार होने की संभावना सबसे ज्यादा है.
आपको फिर बता दें कि अमेरिका के विदेश विभाग की ये रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के एक महीने पहले आई है.
कश्मीर पर यूएन की टिप्पणी से भी बढ़ी भारत की टेंशन
अब बात जी 20 के कार्यक्रम के कश्मीर में आयोजित करने और उसपर आई यूएन के प्रतिनिधि की टिप्पणी की. आपको बता दें 22 और 24 मई को श्रीनगर में पर्यटन पर G20 वर्किंग ग्रुप की बैठक आयोजित करने का प्लान है.
अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फर्नांड डी वारेन्स ने इसी योजना के लिए नई दिल्ली की आलोचना की है. वारेन्स ने आरोप लगाया कि भारत G20 की बैठक श्रीनगर में करा के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दिखाना चाहता है कि कश्मीर में सब सामान्य है. जबकि कई लोग जम्मू-कश्मीर पर भारत के कब्जे को “सैन्य कब्जे के रूप में” देखते हैं. इतना ही नहीं वारेन्स ने एक ट्वीट में कहा कि बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के दौरान जम्मू-कश्मीर में जी20 बैठक आयोजित करना “भारत द्वारा लोकतांत्रिक और अन्य अधिकारों के क्रूर और दमनकारी तरीकों से सामान्य बनाने के प्रयासों को समर्थन देने के समान होगा” ट्वीट में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर की स्थिति की निंदा और सिर्फ निंदा की जानी चाहिए, न कि इस बैठक के जरिए उसे दबाने और नजरअंदाज करने की कोशिश.
पाकिस्तान ने भी उठाए थे श्रीनगर में जी 20 बैठक पर सवाल
वैसे भारत ने यूएन के प्रतिनिधि के इन आरोपों का मुंह तोड़ जवाब दे दिया है. भारत ने मंगलवार को वारेन्स के ट्वीट के जबाव में वारेन्स पर भारत के जनादेश का उल्लंघन करने, गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम करने और मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया. भारत ने ये भी साफ किया कि G20 अध्यक्ष के रूप में, देश के किसी भी हिस्से में अपनी बैठकों की मेजबानी करना भारत का विशेषाधिकार है. वैसे श्रीनगर में जी 20 की बैठक का इस्लामाबाद भी विरोध करता रहा है. उसका कहना है कि कश्मीर पाकिस्तान और भारत के बीच विवाद का क्षेत्र है. जिसके जवाब में नई दिल्ली ने इस्लामाबाद के विरोध को खारिज करते हुए दोहराया कि पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए क्षेत्र सहित पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था और रहेगा.
ग्लोबल मीडिया वॉचडॉग रिपोर्टर्स में भी पिछड़ा भारत
इसी तरह बात अगर ग्लोबल मीडिया वॉचडॉग रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) की करें तो, यहां भी भारत पिछले साल के मुकाबले 11 पायदान लुढक कर 161 पर पहुंच गया है. यानी दुनिया के 180 देशों में से प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर भारत जो 2022 में 150वें स्थान पर था वो अब 161 पर आ गया है. इससे भी बुरा ये है कि रिपोर्ट ने भारत को उन देशों के साथ रखा है जहां प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति ‘समस्याग्रस्त’ कैटेगोरी से गिर कर ‘बहुत खराब’ वाली श्रेणी में आ गई है. इसमें ताजिकिस्तान, तुर्की और भारत को रखा गया है.” यानी इस बार जब पीएम अमेरिका जाएंगे तो कश्मीर, अल्पसंख्यकों पर जुल्म से लेकर प्रेस की आज़ादी जैसे मुद्दों पर उनको विदेशी मीडिया घेरेगा. हलांकि इतिहास देखें तो पीएम प्रेस वार्ता करने से बचते ही नज़र आते हैं. लेकिन जैसा कि हमने शुरू में कहा था कि अगर पीएम विदेशी मीडिया से बच भी गए तो उन्हें भारत में राहुल गांधी के साथ तुलना का सामना तो करना ही पड़ेगा.
पीएम से पहले राहुल करेंगे अमेरिका की यात्रा
दरअसल पीएम के अमेरिका जाने से ठीक पहले राहुल गांधी 31 मई को 10 दिवसीय यात्रा के लिए यूएसए पहुंचेंगे. खबरों में ये भी बताया गया है कि राहुल वहां 4 जून को न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में 5,000 एनआरआई की रैली करेंगे. इसके अलावा स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पैनल डिस्कशन और स्पीच के लिए वाशिंगटन और कैलिफोर्निया भी जाएंगे. साथ ही राहुल गांधी अमेरिकी राजनेताओं और उद्यमियों से मिलने के लिए भी तैयार हैं.
यानी पीएम से कुछ हफ्ते पहले ही राहुल अमेरिका पहुंच कर सियासी माहौल को गर्मा चुके होंगे. ऐसे में इस बार पीएम मोदी का विदेशों में इंडिया शाइनिंग दिखाने का प्लान इतना आसान नहीं होगा. यानी इस बार विदेशी धरती पर होगा राहुल बनाम मोदी मुकाबला.
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