भाषा विवाद के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने सोमवार को कहा कि तमिल भाषा को भी सुप्रीम कोर्ट में अदालती भाषा के रूप में इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए. स्टालिन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट में तमिल भाषा में बहस की अनुमति दी जानी चाहिए और यह मांग लंबे समय से की जा रही है. उन्होंने जजों से इस मुद्दे पर समर्थन का अनुरोध किया. हालांकि, उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि फैसले तमिल भाषा में भी दिए जा रहे हैं.
दरअसल, स्टालिन लंबे समय से तमिल भाषा का मुद्दा उठा रहे हैं. उन्होंने हमेशा से तमिल भाषा को केंद्र सरकार के प्रशासनिक और आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की वकालत की है. वह तमिलनाडु में हिंदी थोपने का लगाचार विरोध करते आए हैं. स्टालिन का कहना है कि तमिलनाडु किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वे किसी भी भाषा को तमिल पर हावी होने की अनुमति नहीं देंगे.
तीन-भाषा नीति का विरोध करते हैं स्टालिन
दरअसल, स्टालिन और उनकी पार्टी डीएमके तमिलनाडु में दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) का समर्थन करते हैं. वे केंद्र सरकार की तीन-भाषा नीति का विरोध करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह तमिल भाषा और संस्कृति को कमजोर कर सकती है. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह हिंदी को गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर थोपने की कोशिश कर रही है.
हिंदी केवल एक ‘मुखौटा’ है- स्टालिन
उन्होंने यह भी कहा था कि हिंदी केवल एक ‘मुखौटा’ है और इसके पीछे संस्कृत को बढ़ावा देने की मंशा है. डीएमके ने 1937-39 और 1965 में हिंदी विरोधी आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने तमिलनाडु की भाषाई पहचान को मजबूत किया. स्टालिन इन आंदोलनों की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई (अण्णा) ने 1968 में दो-भाषा नीति को कानून बनाया था.